भाजपा ने पीठ में छुरा घोंपा: नायडू

Tuesday, Jun 05, 2018 - 09:52 AM (IST)

नेशनल डेस्कः 2018 के साथ ही भारतीय राजनीति के पटल पर नरेंद्र मोदी सरकार को जिन्होंने सबसे पहले पटखनी देने की ठानी है, उनमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू सबसे आगे हैं। पहले राज्य के विघटन के मुद्दे और फिर राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक सहायता न मिलने के कारण ‘नारा  नायडू’ को लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है और मोदी सरकार उनके रास्ते में बाधा डाल रही है। इन्हीं मुद्दों को लेकर नायडू से विजयवाड़ा में पंजाब केसरी-नवोदय टाइम्स संवाददाता अकु श्रीवास्तव  ने बात की। नायडू को बरसों से देख रहे राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि नायडू के 40 साल के करियर में उन लोगों ने कभी किसी और के प्रति इतना गुस्से में नहीं देखा जितना नायडू आज भारतीय जनता पार्टी की शीर्ष जोड़ी से हैं।

आखिर ऐसा क्या हुआ जो आपने भाजपा से नाता तोड़ दिया?
भाजपा ने जो हमसे वायदे किए, वे पूरे नहीं किए। वायदे तो पूरे नहीं किए साथ ही हमारे खिलाफ षड्यंत्र की भी कोशिशें की गईं। हमारा राज्य तोड़ा गया। मान लिया हमने। पर हमसे उस समय जो वायदे किए गए, उनकी पूरी तरह अनदेखी की गई। पिछले चुनाव के दौरान हमसे सभाओं तक में विशेष राज्य के दर्जे के वायदे किए गए। नए राज्य में हमारे पास कुछ भी नहीं था। हैदराबाद को संवारा हमने, लेकिन अब वह तेलंगाना के हिस्से में चला गया। हमारे पास कोई बड़ा उद्योग नहीं। और तो और आंध्र में कोई बड़ा शहर नहीं। नई राजधानी के लिए जितनी हमें आर्थिक सहायता की जरूरत है, उसका एक हिस्सा भी हमें नहीं मिला। राज्य की एकमात्र लाइफ लाइन पोलावरन के लिए भी आर्थिक सहायता के नाम पर बहुत नहीं मिला। सबसे बड़ी समस्या तो बांध और नहर बनने के दौरान पुनर्वास को लेकर हो रही है। इसमें बड़ी धनराशि की जरूरत है और केंद्र पल्ला झाड़ रहा है जबकि राज्य पुनर्गठन आयोग के अनुसार केंद्र को हमें सहायता देनी ही होगी।

आखिर आपने प्रधानमंत्री से बात क्यों नहीं की? आपसे उनके संबंध भी ठीक रहे हैं।
बात। आप लोगों को पता नहीं है। आम तौर पर मैं दिल्ली कम ही जाता हूं। खास तौर से अटल जी के शासन के दौरान तो काफी कम ही गया पर राज्य टूटने के बाद सिर्फ अपनी योजनाओं के लिए मैं दिल्ली में खूब भटका हूं। नीति आयोग से लेकर विभिन्न मंत्रालयों तक। कानून के जानकारों से लेकर पी.एम.ओ. तक। तीन साल में मैं 29 दफे दिल्ली गया। पर सबने लगता है कि काम न करने की कसम-सी खा ली थी। पी.एम. ने खुद विशेष राज्य के दर्जे के लिए घोषणाएं की थीं लेकिन बाद में हमें ठेंगा ही मिला।

विशेष राज्य का दर्जा तो तकनीकी रूप से ही नहीं दिया जा सकता? विशेष राज्य के दर्जे के लिए जो मापदंड हैं , उसमें न ही आंध्र सीमांत राज्य है और न ही पहाड़ी इलाका।
तो फिर यह बात क्यों की गई थी। तब कानून कौन से थे। अब कहा जा रहा है कि संभव नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि हमसे ज्यादा बुरी स्थिति वाले राज्य भी ऐसी ही मांग करेंगे। बिहार का उदाहरण दिया जा रहा है, लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग के अनुसार तो हमें यह सुविधा दी जा सकती है। विकृत राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं किया जा रहा है। दरअसल भाजपा नए पार्टनर तलाश रही है।

तो क्या भाजपा अपने सहयोगी दलों से ठीक से व्यवहार नहीं करती?
अब उनके साथ है ही कौन? उनका रवैया सहयोग का रहा ही नहीं। सहयोगी दलों की जमीन पर भारतीय जनता पार्टी अपनी जमीन बनाना चाहती है। शिवसेना का रवैया आप देख ही रहे हैं, जो गाली देती है। अकाली दल को भी ऐसा ही महसूस होता है कि उनके वोट बैंक पर भाजपा आंख लगाए है। हमारे साथ तो जो किया, वह तो दुश्मन भी नहीं करता। हम उनके साथी थे। हमारे वोट बैंक पर उन्होंने निगाह गड़ाई। और तो और यह सोच कर काम करा जा रहा है कि अगले चुनाव में हमारे विरोधी के साथ गठबंधन किया जाए। भाजपा ने तो हमारी पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है।

क्या केंद्र ने आंध्र के हितों की अनदेखी की गई?
 हमारे हित देखे ही नहीं गए। हमारे नए राज्य को पैसा देने में खासी कंजूसी की जा रही है। आखिर गुजरात की एक योजना के लिए खूब पैसा दे दिया जाता है और हमारी लाइफ लाइन नहर के लिए जो कभी पैसा दिया भी जाता है, वापस ले लिया जाता है। हम अपनी नई राजधानी अमरावती को जैसा बनाना चाह रहे हैं, वैसा तो देश में कोई शहर होगा ही नहीं। चंडीगढ़ और गांधीनगर भी नहीं। लेकिन यह सब सहायता के बिना संभव नहीं है। फिर भी हम काम पूरा करेंगे।

लेकिन आपकी नाराजगी तो अमित शाह के साथ ज्यादा है?
आखिर अमित शाह होते कौन हैं राज्य के खर्चे के बिलों पर आपत्ति करने वाले। उन्होंने कह दिया कि सरकार को इसलिए पैसा नहीं दिया जा रहा क्योंकि बिल फर्जी हैं।
वह सरकार हैं क्या? कोई वित्त मंत्री कहे। प्रधानमंत्री कहे तो समझ में आता है। तिरुपति मंदिर के फंड के सरकार के उपयोग के बारे में उनका बयान बेहूदा है। मैं इसका खंडन करता हूं। ऐसे थोड़े मित्रों के  साथ सरकार चलती है।

मोदी सरकार के चार साल पर क्या कहना चाहेंगे?
कोई सरकार है भी क्या? योजना दर योजना पर काम नहीं। इस सरकार ने देश को बांट- सा दिया है। उत्तर-दक्षिण में। दक्षिण में अभी तक एक ही राज्य ऐसा था जो हिंदी का विरोध खुले आम करता था। राष्ट्रीय नीतियों पर भी उसका रवैया अलग होता रहा है। पर अब लगता है कि केंद्र की नीतियों की वजह से अन्य राज्य भी ऐसे ही रास्ते पर चल सकते हैं।

आपका कांग्रेस के प्रति रवैया बड़ा नरम दिख रहा है?
उनके प्रति हमारा रवैया पहले जैसा ही है। तेलगू देशम का जन्म ही कांग्रेस विरोध पर हुआ है। हम किसी भी हाल में उनसे समझौता  नहीं कर सकते।

भाजपा के साथ आप जाएंगे नहीं। कांग्रेस से दोस्ती नहीं। अगले चुनाव में  करेंगे क्या?
तीसरा मोर्चा ही विकल्प है। हम एक राय रखने वाले लोगों के साथ सरकार बनाएंगे। तीसरा मोर्चा ही देश का समग्र विकास कर सकता है। काफी दल ऐसे हैं जो अलग-अलग राज्यों में प्रभावी हैं जो न कांग्रेस को चाहते हैं और न ही भाजपा की नीतियों को पसंद करते हैं।

लेकिन केंद्र में भाजपा या कांग्रेस, किसी के साथ जाना पड़ेगा?
यह एक हाइपोथैटिकल सवाल है और मैं किसी ऐसे सवाल का जवाब नहीं देना चाहता। जब हालात जैसे होंगे, किया जाएगा।

Seema Sharma

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