9 का अंक अमित शाह के लिए 'लकी नंबर' लेकिन इस बार 9 की तारीख ने कराया दुखद अनुभव

Wednesday, Aug 09, 2017 - 06:52 PM (IST)

नई दिल्ली:  बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का 9 के अंक से गहरा नाता है। चाहे इसे लक्की नंबर कहें या संयोग उनका हरेक बड़ा काम इसी तारीख को शुरू हुआ। नौ अगस्त की दोनों तारीखें अमित शाह के लिए खासी अहम हैं। एक से सफर शुरू हुआ दिल्ली का तो दूसरी से सफर शुरू हुआ संसद का लेकिन इस बार उनका गुड़लक नंबर उन्हें मायूष कर गया।
राज्य की राजनीति से निकलकर दिल्ली पहुंचे
2014 में जब अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व दिया गया। वो 9 की ही तारीख थी। पिछले तीन से पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह ने एक शानदार पारी संभाली। लगातार अथक परिश्रम से पार्टी को जीत के बाद जीत दिलाते गए। जहां नहीं जीते, वहां और तरीकों से जीत उनके कोटे में दर्ज होती गई। एक सफल अध्यक्ष और एक कुशल प्रबंधक के तौर पर अमित शाह अजेय बने हुए हैं। 

हालांकि यह संयोग ही रहा कि उनका अध्यक्ष बनना 8 अगस्त के लिए तय हुआ था और वो अध्यक्ष बने 9 अगस्त को। यही बात ठीक तीन साल बाद फिर से देखने को मिली। अमित शाह राज्य की राजनीति से निकलकर दिल्ली आए तो उन्हें दायित्व संगठन का दिया गया लेकिन अब तीन साल बाद उन्हें अब संसद सदस्य बनने का पुरस्कार मिला। 

पहले की तरह इस पुरस्कार की तारीख भी 8 अगस्त तय थी लेकिन दिनभर के राजनीतिक घटनाक्रम में गिनती आगे बढ़ती रही और जबतक उनके जीतने की घोषणा होती। तब तक नौ अगस्त शुरू हो चुका था। 
इसलिए जीत से निकली उत्साह की हवा 
अमित शाह संसद की राजनीति में अपने अभेद्य दुर्ग से अपनी जीत को एक बड़े संदेश में बदलना चाहते थे। इसलिए यह तय किया गया कि गुजरात से राज्यसभा को कांग्रेस मुक्त करके इस जीत को ऐतिहासिक बना दिया जाए। इसी कॉन्फिडेंस में उन्होंने कांग्रेस के शख्स का रथ रोक लिया। जिसे कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है। इसके चलते अमित शाह ने अहमद पटेल की हार को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया लेकिन इस उधेड़बुन में नियति पटेल के साथ रही और सरकारी अमलों की ताकत लोकतंत्र की संख्या गणित के आगे बौनी साबित हो गई। एेसे में अमित शाह जीत तो गए लेकिन इस जीत से उत्साह की हवा निकल चुकी थी। 

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