नजरिया: चुनावी बेला में BJP पर मुद्दों का घेरा

Thursday, Sep 13, 2018 - 05:44 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): चार साल तक न खाऊंगा न खाने दूंगा के नारे और खुद के साथ-साथ भारत की स्वच्छता की मुहिम चलाने वाली बीजेपी चुनावी बेला में  कई विवादों में घिरती नजर आ रही है। एक के बाद एक कई मुद्दे उसके सामने अचानक मुंह बाए खड़े हो गए हैं। राफेल डील को लेकर बुरी तरह घिरी केंद्र सरकार की स्थिति ऐसी हो गयी है कि वायुसेना प्रमुख के बयानों तक का सहारा लेकर नई परम्पराओं को जन्म दिया जा रहा है। वैसे, यह कम दिलचस्प नहीं है कि सरकार के बजाए राफेल पर वायुसेना प्रमुख आधिकारिक सफाई दे रहे हैं। वायुसेना प्रमुख की इस बात में दम  हो सकता है कि राफेल बेहतरीन लड़ाकू विमान है। लेकिन असली सवाल तो उसकी कीमत को लेकर है, न कि क्षमता को लेकर। और कीमत यानी डील पर सफाई तो सरकार की ही बनती है। 



ऐसे में, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद लगाया गया कांग्रेस का वह आरोप कि बीजेपी सेना का भी सियासीकरण कर रही है, अब कहीं न कहीं सही दिखने लगा है। ऊपर से शाही कर्जदार विजय माल्या ने यह कहकर सरकार को कटघरे में ला दिया है कि लंदन छोडऩे से पहले वे वित्त मंत्री अरुण जेतली से मिले थे और उन्हें लंदन जाने की सूचना तक दी थी। माल्या के इस खुलासे के बाद जहां कांग्रेस ने बीजेपी पर पूरे जोश से हमला बोल दिया है, वहीं बीजेपी के खुद के नेता भी किन्तु-परन्तु कर रहे हैं। जाहिर है, ऐसे में संबित पात्रा और रविशंकर प्रसाद का मीडिया मैनेजमेंट कम पड़ता दिख रहा है। 



अरुण जेतली ने यह माना है कि माल्या ने उनसे मिलने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने उसे झिड़ककर बैंकों के पास जाने को कहा था। इस स्वीकारोक्ति के बाद मामला और संजीदा हो गया है, क्योंकि इससे पहले जब भी माल्या का जिक्र आया है, तब कभी जेतली ने ऐसी बात जाहिर नहीं की थी। जबकि कांग्रेस पहले ही दिन से बीजेपी पर आरोप लगाती रही है कि उसने जानबूझकर माल्या को भागने का मौका दिया। ऐसे में, सरकार निश्चित तौर पर बैकफुट पर है। हालांकि, माल्या के बयान और राहुल गांधी के लंदन दौरे के बीच संबित पात्रा सम्बन्ध कायम करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन संबित पात्रा की गंभीरता से भी अब यह राष्ट्र परिचित है। जाहिर है कि वे बयानवीर ही हैं और जनता ऐसे बयानवीरों को कितना तरजीह देती है, यह भी सर्वविदित है। 



उधर, जेतली को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है। ऐतिहासिक हार के बावजूद जनाब को वित्त मंत्रालय सौंपने पर पार्टी के भीतर तो सुगबुगाहट थी ही, नोटबंदी ने उनकी यह लोकप्रियता बुलंदियों पर पहुंचा दीं। नोटबंदी को लेकर जो हालिया बयान रिजर्व बैंक का आया है, उसने भी रही-सही कसर पूरी कर दी है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, नोटबंदी के दौरान हजार और पांच सौ के जितने नोट प्रचलन में थे, उनमे से 99.3 फीसदी वापस आ गए हैं। अभी नेपाल और भूटान से नोट आने बाकी हैं। और जो सूचना आ रही है, उसके अनुसार नोट आए तो सौ फीसदी से अधिक नोट वापस आएंगे। यह अचम्भा भी बीजेपी का सर दर्द बढ़ाएगा। 



वहीं, राहुल की रिलीजियस पॉलिटिक्स से घबराई बीजेपी की चिंता अब उसकी संपत्ति मानी जाने वाली संतों की फौज बढ़ा रही है। बाबा रामदेव अपना बिजनेस सेट हो जाने के बाद साइड पर सटक लिए हैं। यही नहीं, उन्होंने काले धन और पेट्रोल-डीजल को लेकर एक आध बयान भी दाग दिया है। ऊपर से मध्य प्रदेश के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर संतों ने केंद्र की नीतियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है। जो भूमिका पिछली बार रामदेव ने मोदी के लिए निभाई थी, उसके विपरीत भूमिका में देवकी नंदन दिख रहे हैं। ये सब स्थितियां श्रेयस्कर नहीं हैं। बीजेपी की राज्य सरकारों के खिलाफ तो पहले से मुद्दों की भरमार है। चाहे शिवराज चौहान जैसे पुराने जमे हुए मुख्यमंत्री हों या फिर जमने की कोशिश कर रहे जयराम। चाहे महारानी वसुंधरा हों या चावल वाले बाबा रमन सिंह। सबके खिलाफ एक से बढ़कर एक मुद्दे हैं। ऐसे में, एकमात्र मोदी सरकार का साफ़ दामन ही पार्टी की पूंजी था। लेकिन जिस तरह से अब चिंताओं की बौछार आई है, वो निश्चित ही विस्तारित अध्यक्ष अमित शाह के लिए परेशानियां लाने वाली है।  

    
 

Anil dev

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