समय से पहले आम चुनाव कराने के लिए भाजपा तैयार कर चुकी अपना गणित

punjabkesari.in Wednesday, Feb 07, 2018 - 08:39 AM (IST)

नई दिल्ली: अगले लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2019 में प्रस्तावित हैं लेकिन हाल ही में कुछ ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुई हैं जिनसे अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा लोकसभा चुनाव समय से पहले भी करवा सकती है। इसी सप्ताह राजस्थान उप-चुनाव के नतीजों और बीते 4 सालों में अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में हुई राजनीतिक घटनाओं ने राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर विवश कर दिया है। साल 2014 में भाजपा मिशन-272 के चुनावी अभियान के आर्कीटैक्ट राजेश जैन के हाल ही में प्रकाशित एक लेख 12 कारणों से लोकसभा चुनाव समय से पहले होने के संकेत दे रहे हैं।

जैन ने हालिया घटनाओं से 6 कारण और 6 संदर्भों की सूची दी है और 1 साल पहले चुनाव कराने का आकलन राजेश जैन का है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण तर्क 2014 के मुकाबले भाजपा के चुनावी प्रदर्शन में गिरावट की प्रवृत्ति का है इसलिए समय पूर्व चुनाव भाजपा के लिए लाभदायक हैं। 2014 के आम चुनावों के बाद इन 4 सालों में 15 राज्यों के चुनाव हुए। इन राज्यों के चुनाव में मतदाताओं की वरीयताओं से पता चला कि कोई भी मतदाता भाजपा के संभावित प्रदर्शन को ठुकरा सकता है।

1 साल के बदले मिल सकती है 5 वर्ष की सत्ता
मोदी सरकार लोकसभा चुनाव वक्त से पहले 2018 में करा ले इसके पीछे जो वजह हो सकती है वह यह है कि 2018 तक भाजपा को कहीं से कोई चुनौती मिलती नहीं दिख रही है। सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। भाजपा इस माहौल को एक अवसर के रूप में भुना सकती है। पार्टी में शीर्ष स्तर पर कहा जा रहा है कि अगर 1 साल की सत्ता का मोह छोड़ने के बदले 5 साल की सत्ता मिल जाती है तो वह कहीं ज्यादा फायदेमंद रहेगा।

215 से 225 सीटें मिलने का अनुमान
एक अन्य कारण भाजपा की राज्यवार स्थिति का है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि भाजपा गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में 40 से 50 सीटें हार सकती है। यू.पी. में भी 71 सीटें फिर से हासिल करना मुश्किल है। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भाजपा नगण्य है। भाजपा आंतरिक रूप से मानती है कि उसे 215 से 225 सीटें ही मिलेंगी। इसके अलावा इस साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा को नुक्सान होता है या कहें कि वह चुनाव हारती है तो उन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
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अनुमान के पीछे का तर्क
2014 के आम चुनाव में भाजपा ने लोकसभा की 543 सीटों में से 282 पर विजय हासिल की थी। 2014 के आम चुनाव के बाद भारत के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में चुनाव हुए हैं। 2014 के चुनावों में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 191 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद के राज्य के चुनाव में इसका प्रदर्शन 146 सीटों की संख्या के बराबर है, जो 45 सीटें कम है। दूसरे शब्दों में 15 राज्यों के चुनावों के बाद भाजपा की लोकसभा सीटों की संख्या 237 है, जोकि 2014 की 282 सीटों के मुकाबले 45 कम है। साल 2014 में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 1,171 विधानसभा सीटों को जीता था लेकिन बाद के राज्य चुनावों में यह केवल 854 विधानसभा सीटों पर जीत पाई जिसके कारण विधानसभा सीटों में लगभग एक तिहाई का नुक्सान हुआ। यहां तक कि वोट शेयर के मामले में 2014 के चुनावों में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 39 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी हासिल की जो कि अब 29 प्रतिशत रह गई है। अगर भाजपा की मौजूदा गिरावट का रुख जारी है तो भाजपा 4 राज्यों में 20 अन्य लोकसभा सीटों पर हार सकती है।

वोटर्स के मूड से बदल सकती है आम चुनाव की तस्वीर
साल 2018 राजनीतिक नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण है। दरअसल इस साल 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके साथ ही ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि मुमकिन है कि साल के आखिर तक कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा के चुनाव भी करवा लिए जाएं। इस साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्य भी शामिल हैं। इन राज्यों में लोकसभा की 93 सीटें आती हैं।

2014 के नतीजों पर अगर गौर करें तो पता चलता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में इन 93 सीटों में से 79 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। जाहिर-सी बात है कि लोकसभा चुनाव से पहले यहां होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों के जरिए राज्य के वोटर्स के मूड का पता भी चलेगा, जिसके जरिए बहुत कुछ 2019 की तस्वीर बनती दिखने लगेगी। इन 4 राज्यों में से 3 भाजपा शासित हैं। अगर भाजपा इन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो 2019 में सत्ता में वापसी की उसकी राह बहुत आसान बनती नहीं दिखेगी।

उधर कांग्रेस के लिए ये चुनाव उसकी वापसी के एक बड़े मौके के रूप में होंगे।  इसके अलावा उत्तर-पूर्व के 4 राज्यों, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में भी चुनाव इसी साल हैं। बेशक यहां से महज 6 लोकसभा सीटें ही हैं, भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नारे के मद्देनजर इन 4 राज्यों के चुनाव पार्टी के लिए अहम हैं। असम और मणिपुर जीतकर भाजपा उत्तर-पूर्व में पहले ही धाक जमा चुकी है। उत्तर-पूर्व के इन 4 राज्यों में मिजोरम और मेघालय में कांग्रेस की सरकार है तो त्रिपुरा में वामदल की सरकार है। वहीं नागालैंड में भाजपा समॢथत नैशनल पीपल्स फ्रंट सत्तारूढ़ है।


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