JP Nadda: लेकिन शाह तो शाह ही रहेंगे

Tuesday, Jan 21, 2020 - 11:18 AM (IST)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी की कमान संभालने वाले जगत प्रकाश (जे.पी.) नड्डा ने बीते 5 सालों में भाजपा में कई जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी को शानदार जीत दिलाकर उन्होंने जो करिश्मा किया, उसने उन्हें आज इस ऊंचाई पर पहुंचा दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा मुख्यालय से पूरे भारत में पार्टी के अभियान की निगरानी की थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नड्डा उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव प्रभारी बनाए गए थे। भारतीय जनता पार्टी को उसे उसके सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा कर करीब छह साल अध्यक्ष रहे अमित शाह ने पार्टी की कमान अब पूरी तरह कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंप दी है। उनके नेतृत्व में पार्टी ने जो तरक्की की है, वह आश्चर्यजनक है। भले ही उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया है मगर पार्टी पर उनकी छाप लंबे समय तक बनी रहेगी... 

सबसे बड़ी ताकत: तत्काल फैसला
अमित शाह से अक्सर उनके साथी यह सवाल पूछते हैं कि आप लंबे समय से चले आ रहे मसलों पर इतनी जल्दी फैसला कैसे ले लेते हैं? इस पर उनका जवाब रहता है कि अगर मैं तत्काल फैसला नहीं लूंगा तो कभी काम नहीं कर पाऊंगा। मेरी कार्यशैली मेरे स्वभाव के अनरूप है। पहले तत्काल फैसला लो और फिर कड़ी मेहनत करो ताकि फैसला सही साबित हो। 
 

इसलिए कहलाए चाणक्य
कठिन दौर को बदला
अमित शाह ने जैसे ही भाजपा की कमान संभाली थी, पार्टी दिल्ली और बिहार का चुनाव हार गई। पार्टी के भीतर यह कानाफूसियां शुरू हो गईं। इसके बाद अमित शाह ने जमीनी स्तर पर कार्य शुरू करने की ठानी। पार्टी कैडर में नई जान डाली। 
 

दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाया
2014 में पार्टी के सदस्यों की संख्या 2 करोड़ थी जो 2019 में बढ़कर 10 करोड़ हो गई। सदस्यों की संख्या के हिसाब से भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनी और इसका श्रेय अमित शाह को जाता है। 


जीत की कथाएं
पूर्वोत्तर में परचम
अमित शाह के नेतृत्व में पूर्वोत्तर के द्वार असम में भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई। इसके बाद तो पूरे पूर्वोत्तर में परचम लहराने का रास्ता खुल गया। अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस से सत्ता छीनी।  मणिपुर भी भगवा रंग में रंग गया। तिरपुरा में 25 साल से चली आ रही माकपा सरकार को सत्ता से बाहर किया। सहयोगियों की मदद से नगालैंड और मेघालय पर भी कब्जा किया गया। 
 

बंगाल में सेंध
पश्चिमी बंगाल जहां तृणमूल पार्टी और वाम दलों का दबदबा था अमित शाह बड़ी सेंध लगाने में कामयाब रहे। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार यहां से 18 सीटें जीतीं।  
 

हार में भी जीत
हिंदी पट्टी के मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भले ही भाजपा विधानसभा चुनाव हार गई थी, मगर लोकसभा चुनाव में पार्टी ने इन राज्यों में एक तरह से क्लीनस्वीप किया। 
 

बुजुर्गों की सेवानिवृत्ति
अमित शाह के कार्यकाल में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन जैसे कई वरिष्ठ और बुजुर्ग नेताओं को वोट की सक्रिय राजनीति से अलग किया गया। कुछ को मार्ग दर्शक मंडल में डाला। 
 

कुछ फैसले पड़ रहे थे भारी
गृहमंत्री बनने के बाद भी पार्टी अध्यक्ष पद उनके पास था। ऐसे में उनके कुछ फैसले पार्टी को भारी भी पड़ रहे थे। हाल ही में राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) प्रस्ताव पर उनके बयान ने देश के अल्पसंख्यकों को असुरक्षा की भावना दी और नाराज कर दिया। इसके खिलाफ आंदोलन जारी है।  महाराष्ट्र में पार्टी के हाथ आई सत्ता निकल गई और झारखंड में हार मिली।
 

वैज्ञानिक फार्मूला : 4 करोड़ वोट दिलाए  
2019 में पार्टी को बड़ी जीत दिलाने के लिए अमित शाह ने एक वैज्ञानिक और तर्क संगत फार्मूला तय किया। जमीनी स्तर तक पन्ना प्रमुखों की नियुक्ति की गई। पार्टी ने जो 10 करोड़ सदस्य बनाए थे उनसे 4 करोड़ वोट भाजपा को मिले। 
 

ताकत के तीन मंत्र

  • घर-घर कर तक पार्टी को पहुंचाने के लिए न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं बल्कि संघ से भी कार्यकर्ता लेकर काम शुरू किया।  
  • हर कार्यकर्ता का काम तय कर दिया गया। उससे उस काम का पूरा ब्यौरा भी तय समय पर देना होता था। 
  • पंचायत से लेकर सांसद तक हर चुनाव जीतने के लिए कार्यकर्ताओं को पूरा जोर लगाने के लिए तैयार किया।
     


करीब 8 लाख किलोमीटर यात्राएं
पार्टी को मजबूत करने के लिए अमित शाह ने देश के हर हिस्से में यात्राएं कीं। अगस्त 2014 से सितम्बर 2018 तक 49 महीनों में  पार्टी कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने 7,90,000 किलोमीटर की यात्राएं कीं। इस तरह उन्होंने रोज 519 किलोमीटर से ज्यादा यात्रा की। 

Anil dev

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