पदम पुराण में भी वर्णन है पुरमंडल के बिल्वकेश्वर धाम का, अतिक्रमण मुक्त करवाने की हो रही मांग

Monday, Sep 28, 2020 - 06:05 PM (IST)

साम्बा (संजीव): बिल्वकेश्वर धाम माता पार्वती की वह तपोस्थली है यहां उन्होंने बिल्व पर्वत पर कठोर तप द्वारा औघड़दानी शिव को केवल एक बार नहीं अपितु दो बार पति रूप में प्राप्त किया था। पहले भगवान शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को इस स्थान पर पत्नि रूप में वरण किया और फि र उन्ही माता सती ने यज्ञकुण्ड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। देवऋ षि नारद की सलाह पर देवी पार्वती ने शिव भगवान को पति रूप में पाने के लिये बेलपत्रों से घिरे मनोरम बिल्व पर्वत पर बहुत ही कठोर तपस्या की। कहते हैं कि यहां माता पार्वती केवल बेलपत्ऱ खाकर अपनी भूख को शांत किया करती थीं। परन्तु जब पीने के पानी की समस्या आई तब देवताओं के आग्रह पर स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जलधारा प्रकट की जो आज भी इस स्थान सें 40 से 50 कदम की दूरी पर गौरी कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि माता पार्वती इसी गौरी कुण्ड में स्नान करतीं तथा यहां का जल पिया करती थीं। भगवान भोले शंकर इस कठोर तपस्या से प्रसन्न हुऐ और माता पार्वती इसी स्थान पर दोबारा उनकी अद्र्धांगिनी बनीं। 


    जैसा कि पदम पुराण में वर्णित है कि पुरमण्डल से दक्षिण दिशा की ओर बिल्वकेश्वर नामक लिंग है। इस लिंग का पंचामृत से पूजन करने पर अनन्त यज्ञ का फ ल प्राप्त होता है। तीर्थराज पुरमण्डल से लेकर उत्तरवाहिनी तक आठ लिंगों की श्रिंखला में क्रमानुसार खडगेश्वर तथा भूतेश्वर के मध्य गाँव नन्दक में पांचवां स्थान बिल्वकेश्वर महादेव का है। अत्यंत सुन्दर तथा रमणीक गांँव नन्दक में देविका नदी के दाहिने तट पर भगवान विल्वकेश्वर जी विराजमान हैं। इस परिसर में भगवान विल्वकेश्वर मन्दिर के इलावा माता नन्दकेश्वरी, राधाकृष्ण जी, शनिदेव तथा महाजन बिरादरी के कुलदेवताओं के मन्दिर भी हैं। इनके साथ ही गौरी कुण्ड के रूप में कोई 25 मीटर की दूरी पर बहुत ही सुन्दर तथा मीठे जल की एक बावली भी है। परन्तु आजकल यह बावली तथा इस के साथ की भूमि अतिक्रमण का शिकार हो गई हैं। जम्मू से पुरमण्डल सडक़ मार्ग पर नन्दक गंाव के शुरू होते ही विल्वकेश्वर परिसर का दृश्य आंखो के  सामने आ जाता है। अविश्वसनीय परन्तु सत्य कि बिल्वकेश्वर धाम अर्थात गांव नन्दक के लोगों का प्राचीनकाल सें आय का मुख्य स्त्रोत केवल बेलपत्र ही रहा है। क्योंकि राजा महाराजाओं के समय पुरमण्डल से लेकर उत्तरवाहिनी तक जितने भी मन्दिर हैं, उन में पूजा एक ही समय हुआ करती थी और इन मन्दिरों में अक्षत फू ल चन्दन के इलावा बेलपत्र का चढ़ाना अनिवार्य था और बेलपत्र की पूरी आपूर्ति गाँव नन्दक से ही होती थी और वह प्रथा आज भी चल रही है। 


कहा जाता है कि जिन कंवारी कन्याओं का विवाह न हो रहा हो या फि र उनके विवाह में किसी प्रकार की अढ़चन आ रही हो, बिल्वकेश्वर महादेव मन्दिर में आकर गौरी कुण्ड में स्नान कर भोले भंडारी का देविका जल से अभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने भर से आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। साथ ही कन्याओं को मन चाहे वर की प्राप्ति भी होती है। 


    स्थानीय समाजसेवी जवाहर ललाल बडू ने विल्वकेश्वर धाम के धार्मिक महत्व तथा सुन्दरता को ध्यान में रखते हुए सभी संबन्धित अधिकारियों से प्रार्थना की है कि इस स्थान की सुध लें और इसेे अतिक्रमण से मुक्त करवाकर आने वाले यात्रियों के लिये यहां संपर्क मार्ग, मनोरंजन पार्क, रेस्टहाउस तथा एक रेस्टोरेन्ट बनवाने के लिये कदम उठाए जाएं ताकि यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को स्वच्छ, शान्त तथा प्रदूषण रहित वातावरण उपलब्ध करवाया जा सके और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिले।

Monika Jamwal

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