BJP से अलग होने का खतरा मोल नहीं ले सकती शिवसेना

Tuesday, Jul 02, 2019 - 11:58 AM (IST)

नई दिल्ली: बिहार में जनता दल यूनाइटेड और महाराष्ट्र शिवसेना भाजपा की सहयोगी दल हैं लेकिन आए दिन इनके भाजपा विरोधी तेवर की चर्चा होती रहती है। जमीनी हकीकत यह है कि वर्तमान हालात में दोनों ही दलों के पास भाजपा के साथ बने रहने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव के समय भी इनका गठबंधन बरकरार रहेगा। महाराष्ट्र में इसी साल तथा बिहार में 2020 में विधानसभा के लिए चुनाव होना है। बिहार में जदयू के मुखिया नीतीश कुमार भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में तीन तलाक, एनआरसी तथा आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों पर कत्तई सहमत नहीं है। वे इस पर खुलकर अपना विरोध भी जताते रहते हैं। 

सी से कई बार यह अटकलें लगनी शुरु हो जाती है कि नीतीश कुमार इस बार विधानसभा चुनाव में फिर से भाजपा से अलग हो सकते हैं। वर्ष 2010 में बिहार में भाजपा व जदयू ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था जिसमें भाजपा को 91 (वोट16.49 फीसद) तथा जदयू को 115 सीटें (वोट 22.58 फीसद) मिली थीं। 2014 में लोकसभा चुनाव के समय जदयू भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ी तो उसका वोट छह फीसदी घट गया। प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से जदयू को सिर्फ 2 सीटें ही हासिल हुई। दूसरी ओर भाजपा को लोकसभा चुनाव में 22 सीटों पर जीत हासिल हुई और वोट सोलह से बढ़कर 40 फीसदी तक पहुंच गया। वर्ष 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के समय जदयू ने कांग्रेस व राजद के साथ महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने भी कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में एक बार फिर जदयू का वोट प्रतिशथ 16.83 फीसद पहुंच गया तथा वह सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही। 

भाजपा 24 फीसद वोट पाकर भी प्रदेश में तीसरे नम्बर की पार्टी रह गई। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जदयू भाजपा साथ थे। 17 सीटों पर जदयू ने चुनाव लड़ा तथा 16 पर जीत हासिल की। प्रदेश में उसका वोट बैंक भी बढ़कर 21 फीसदी पहुंच गया। इस तरह भाजपा की मदद से उसे छह फीसदी ज्यादा वोट मिले। महाराष्ट्र में 2009 में भाजपा व शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। 288 विधानसभा सीटों में से भाजपा 14 फीसद वोट के साथ 46 सीट तथा सेना 16 फीसद वोट के साथ 44 सीटें हासिल की थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा सेना से आगे निकल गई। 

Anil dev

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