Bihar Election : कौन है अति पिछड़ा वर्ग? 2010 में 63% मतदाताओं ने NDA को दिया था वोट
punjabkesari.in Wednesday, Sep 24, 2025 - 04:57 PM (IST)

नैशनल डैस्क : बिहार में चुनावी सरगर्मी तेज है और सभी प्रमुख दल अपनी-अपनी रणनीति के तहत अति पिछड़ी जातियों (EBC) को साधने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य की राजनीति में यह वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता है क्योंकि 36% आबादी के साथ यह बिहार का सबसे बड़ा सामाजिक समूह है। परंपरागत रूप से इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है। हालांकि इस बार महागठबंधन भी इस वर्ग को आकर्षित करने के लिए विशेष एजेंडा तैयार कर रहा है। बताया जा रहा है कि महागठबंधन, अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट की तर्ज पर, "EBC एक्ट" लाने का वादा कर सकता है। साथ ही पंचायती राज और नगरीय निकाय चुनावों में EBC आरक्षण की सीमा 20% से बढ़ाकर 30% करने की घोषणा की तैयारी है।
कौन है अति पिछड़ा वर्ग?
अति पिछड़ा वर्ग कौन है, इसे समझने के लिए इतिहास पर नजर डालना जरूरी है। राष्ट्रीय अति पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष विजय चौधरी बताते हैं कि संविधान सभा में ही पिछड़े वर्ग को दो हिस्सों में बांटने की चर्चा हुई थी। बाद में मुंगेरीलाल कमीशन ने 35 जातियों को पिछड़ा और 93 जातियों को अति पिछड़ा वर्ग के रूप में चिह्नित किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने इस रिपोर्ट को लागू करते हुए अति पिछड़ों को 12% और पिछड़ों को 8% आरक्षण दिया। इससे विशेषकर भूमिहीन और मजदूर वर्ग की जातियों को सीधा फायदा मिला।
नीतीश कुमार ने इस वर्ग को साधने के लिए लगातार पहल की। 2005 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने पंचायत और निकाय चुनावों में 20% आरक्षण लागू किया। यह कदम बिहार को देश का पहला ऐसा राज्य बनाता है जिसने अति पिछड़ों को राजनीतिक भागीदारी का ठोस अवसर दिया। इसके साथ ही प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना शुरू की गई और जिलों में OBC छात्रों के लिए छात्रावास खोले गए। अति पिछड़ा वर्ग से नेताओं को विधान परिषद, राज्यसभा और मंत्रिमंडल में भी शामिल किया गया। 2005 में नीतीश ने JDU कोटे से रामनाथ ठाकुर, दामोदर रावत, हरि प्रसाद साह और विश्वमोहन कुमार जैसे नेताओं को मंत्री बनाया।
2010 में 63% अति पिछड़े मतदाताओं ने NDA को वोट दिया
राजनीतिक विश्लेषण बताते हैं कि नीतीश कुमार की इसी रणनीति ने उन्हें सत्ता के केंद्र में बनाए रखा। CSDS के सर्वे के अनुसार, 2005 के चुनाव में 57% और 2010 में 63% अति पिछड़े मतदाताओं ने NDA को वोट दिया। परिणामस्वरूप 2010 में NDA ने 243 में से 206 सीटें जीती थीं। यहां तक कि पिछड़े, अति पिछड़े और अन्य समूहों के सम्मिलित "पचफोरना" वोट ने NDA को 58% का समर्थन दिया था।
लेकिन अब स्थिति बदल रही है। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी इस वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं। कांग्रेस ने "संविधान सुरक्षा सम्मेलन" कराकर और राहुल गांधी ने गया में अति पिछड़ा छात्रों से संवाद करके उन्हें लुभाने की कोशिश की। राजद ने पहली बार अति पिछड़ा वर्ग से मंगनीलाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा संदेश दिया। राहुल गांधी आरक्षण की सीमा बढ़ाने और EBC कोटे को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की भी बात कर रहे हैं। जाहिर है, आने वाले चुनाव में अति पिछड़ा वर्ग बिहार की सियासत का सबसे बड़ा फैक्टर साबित होने जा रहा है।