बांग्लादेशी सैक्सवर्कर ने मोदी को लिखी मर्मस्पर्शी चिट्ठी,  रूला देगी पूरी घटना

Sunday, May 07, 2017 - 01:49 PM (IST)

ढाकाः बांग्लादेश की एक सैक्सवर्कर ने मोदी  से मदद मांगी है। बांग्लादेश कीएक गारमैंट फ़ैक्ट्री में 9,000 रूपए मासिक वेतन पर काम करने वाली तलाक़शुदा महिला आयशा (बदला हुआ नाम) को उसके ही एक सहकर्मी ने भारत में अच्छी नौकरी का लालचदेकर फंसा लिया। उस व्यक्ति पर भरोसा कर, बिना माँ-बाप को बताए, दलाल के माध्यम से वो मुंबई पहुँचीं, मगर वहाँ  सहकर्मी ने मात्र 50 हज़ार रूपए में उसे एक नेपाली औरत को बेच दिया, जो एक वेश्यालय चलाती थी।  इसके बाद आयशा को जबरन देह-व्यापार करना पड़ा, और मुंबई से बेंगलुरु तक अलग-अलग शहरों में देह-व्यापार के अड्डों से होती हुई, अलग-अलग लोगों के चंगुलों में फँसने के बाद, अंततः पुणे का रेड लाइट इलाक़ा में पहुंच गई। 

वहीं से कुछ दिन पहले पुणे पुलिस ने उसे छुड़ाया और एक ग़ैर-सरकारी संस्था के सुपुर्द कर दिया। इस संस्था के लोगों ने ही मुंबई में बांग्लादेशी उच्चायोग से जुड़े दफ़्तर के साथ संपर्क किया और आयशा के घरवालों का नाम-ठिकाना बताया। जल्दी जाँच-पड़ताल पूरी हुई और आयशा को उनके देश वापस भेजने की व्यवस्था और तैयारी की गई। अगर सब कुछ ठीक रहा तो वो 15 मई को बांग्लादेश लौट भी जाएँगी। आयशा की कहानी में मोड़ तब आया जब भारत से बांग्लादेश लौटने से पहले उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक मर्मस्पर्शी चिट्ठी लिखी। उसमें लिखा है कि उसने भारत में अपने ग्राहकों से टिप में मिले कुछ पैसे बचा रखे हैं, मगर उनमें से अधिकतर 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट हैं, जो रद्द हो गए हैं। अत्यंत कष्ट और कलंक उठाकर कमाए गए उनके कुछ हज़ार रूपयों को यदि प्रधानमंत्री मोदी बदलवा दें, तो वो उनकी कृतज्ञ रहेंगीं।

इस भावुक चिट्ठी का रेस्क्यू फ़ाउंडेशन की रूपाली शिभारकर ने हिन्दी में अनुवाद किया, फिर हाथ से लिखी उस चिट्ठी को आयशा की ओर से प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीट कर दिया गया। मोदी और सुषमा नियमित रूप से अपने ट्वीट चेक करते हैं, और सुषमा स्वराज तो अक्सर मुश्किल में फंसे लोगों की मदद करती रही हैं, इसी उम्मीद से आयशा ने चिट्ठी लिखी। उनकी इस चिट्ठी पर भारत के कई समाचार माध्यमों ने रिपोर्ट की। रेस्क्यू फ़ाउंडेशन की प्रमुख त्रिवेणी आचार्य ने   बताया,"हमने जब पुलिस की मदद लेकर आयशा को बचाया, तो उसे एक कपड़े में उस इलाक़े से बाहर लाना पड़ा। उसके बाद कोर्ट-कचहरी-दूतावास की भागदौड़ के कारण उन्हें वहाँ से अपना सामान लाने का मौक़ा ही नहीं मिला।"

लेकिन 31 दिसंबर को नोट बदलने की समय सीमा समाप्त होने के बाद आयशा के ये पैसे बेकार हो गए। पुणे के कटराज घाट स्थित रेडलाइट इलाक़े से आयशा को बाहर निकालने में शहर की पुलिस कमिश्नर रश्मि शुक्ला ने व्यक्तिगत दिलचस्पी ली थी। वो कहती हैं, "इस असहाय बांग्लादेशी लड़की के इतने कष्ट से कमाए गए पैसों के बर्बाद होने की बात सोचकर बहुत बुरा लग रहा है। उसकी चिट्ठी के बाद शायद केंद्र सरकार कुछ मदद करे. लेकिन अगर वो नहीं भी हो पाया, तो हम ये प्रयास करेंगे कि उसके बांग्लादेश लौटने से पहले उसे कुछ आर्थिक मदद दी जा सके।"  10,000 हज़ार रुपए शायद कई लोगों के लिए कोई बहुत बड़ी रकम न हो, मगर आयशा के लिए उनका मोल बहुत ज़्यादा है।और अगर उनकी वापसी से पहले भारत सरकार उनके नोटों को बदल सके, तो ये न केवल आयशा के लिए आर्थिक मदद भर होगी, बल्कि ये उनकी आगे की ज़िंदगी के लिए एक अमूल्य स्मृति बनकर भी रह जाएगी।
 

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