अयोध्या रामभूमि विवाद: SC में 30 सेकंड चली सुनवाई, करोड़ों लोग करते रहे फैसले का इंतजार

Friday, Jan 04, 2019 - 03:51 PM (IST)

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दायर अपीलों पर अब सुनवाई 10 जनवरी को होगी और यह सुनवाई तीन न्यायाधीशों की नई खंड़पीठ करेगी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने आज इस मामले में सुनवाई करते हुए महज 30 सेकंड में यह कहा कि मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी को होगी। कोर्ट की कार्रवाई मात्र एक मिनट तक ही चली और इस दौरान दोनों पक्षों की तरफ से कोई भी बहस नहीं हुई। अभी तक यह तय नहीं है कि नई पीठ में कौन से न्यायाधीश होंगें और नई पीठ यह भी तय करेगी कि मामले की सुनवाई रोजाना की जाएगी या नहीं।
 

अधिवक्ताओं को नहीं मिला अपनी बात रखने का मौका
सुनवाई के लिए मामला सामने आते ही प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला है और इस पर आदेश पारित किया। अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे और राजीव धवन को अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं मिला। अब अयोध्या भूमि विवाद मामले को आगे ले जाने के लिए तीन सदस्यीय एक पीठ का गठन किया जाएगा। इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्ष 2010 के आदेश के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर हुई हैं। उच्च न्यायालय ने इस विवाद में दायर चार सिविल वाद पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था। 


 

क्यों नहीं हो रहा लम्बा इंतज़ार ?
1528 में मुग़ल हमलावर बाबर के जनरल मीर बाकी ने अयोध्या में राम मंदिर को तोड़कर बाबर की शान में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। तब से अब तक तकरीबन 500 साल होने को आए हैं। साल 1885  से राम वादी के रूप में अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। 30 सितंबर 2010 को  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या में  विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। हाइकोर्ट ने तीनों पक्षों- रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में 2.77 एकड़ जमीन को बराबर बांटने का आदेश दिया। फैसले के खिलाफ हिंदू महासभा तथा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट के फैसले आए को 9 साल होने वाले हैं। अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इसे प्राथमिकता का मुद्दा नहीं माना है। अगर कुछ वर्षों के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ भी जाता है तो इसकी क्या गारंटी है कि फैसला सभी पक्षों  होगा? कानूनी प्रक्रिया लम्बी भी खिंच सकती है।

क्या हैं मोदी सरकार के पास विकल्प ?

इस चुनावी मौसम में राम मंदिर को लेकर सियासी बुखार चढऩा लाजमी है। विपक्ष के साथ-साथ बीजेपी के अपने लोगों का मानना है कि जब एससी एसटी एक्ट के समय  मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ संसद में कानून पास करा सकती है तो राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले  पर आश्रित क्यों है?

  • पहला : शीत सत्र में राम मंदिर के निर्माण के लिए बिल लाए ताकि राम मंदिर पर कानून बन सके।
  • दूसरा : मोदी सरकार संसद में संयुक्त सत्र  बुलाकर राम मंदिर  बिल को साधारण बहुमत से पास करवा सकती है।
  • तीसरा : अगर सरकार चाहे तो राम मंदिर के लिए विशेष सत्र भी बुला सकती है।
  • चौथा: सबसे सरल उपाय, शीत सत्र के बाद सरकार राम मंदिर पर अध्यादेश ला सकती है।

vasudha

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