राजस्थान चुनाव: अपनों पे सितम, गैरों पर करम...

Saturday, Dec 01, 2018 - 09:14 AM (IST)

जयपुर (मुकेश चौधरी): कांग्रेस को प्रदेश की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर गैरों से ज्यादा खतरा और डर अपनों से सता रहा है। एक हिंदी फिल्म का चर्चित गाना इस पर बखूबी बैठता है 'अपनों पे सितम, गैरों पर करम...'। इन विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर युवा उम्मीदवारों को अपनों से डर सता रहा है। यह डर उन वरिष्ठ नेताओं से है, जिनकी पकड़ उन क्षेत्रों में काफी मजबूत है। कभी ये नेता यहां से टिकटों की कतार में थे, लेकिन टिकट वितरण के बाद तवज्जो नहीं मिलने से अब अंदरखाने खफा माने जा रहे हैं। अधिकांश सीटों पर युवा उम्मीदवारों की इन बुर्जगों से तालमेल नहीं बैठा पाने की बात भी सामने आई है और इन इलाकों में ये नेता अभी सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में, इन इलाकों में वोटों पर खासा असर पडने का डर भी कांग्रेस उम्मीदवारों को है।



कमजोर दिख रहा कांग्रेस का प्रचार
जयपुर, अलवर, अजमेर, भरतपुर, बीकानेर, कोटा, झालवाड़, गंगानगर जैसे इलाकों में टिकट वितरण के बाद जो घमासान दिखा, उससे कांग्रेस की अंदरूनी कलह और आपसी गुटबाजी खुलकर सामने आ गई। हालांकि, टिकट मांगने वाले ये प्रत्याशी वरिष्ठ नेताओं की समझाने के बाद फिलहाल अपने कदम पीछे खींच चुके हैं, लेकिन अंदर कसक अब तक बरकरार दिख रही है। ऐसे में, कांग्रेस को उन इलाकों में सींचने वाले ये नेता अपने इलाकों में चुनाव से दूरी बनाकर मौन होकर बैठ गए हैं, जिस कारण कांग्रेस का प्रचार इन इलाकों में कमजोर दिख रहा है। जबकि इसके मुकाबले भाजपा जोर-शोर से प्रचार कर रही है। हालांकि, कुछ जगहों पर बीजेपी के हालात भी ऐसे ही हैं, वहां उसे भी चिंता सता रही है।



जयपुर में कांग्रेस को सबसे ज्यादा खतरा
सूत्रोंं की मानें तो जयपुर की सभी विधानसभा क्षेत्रोंं में कांग्रेस के लिए उन अपनों से अंदरखाने खतरा दिख रहा है, जो टिकट नहीं मिलने से खुलेआम अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। ये नेता खुद को पहले से ही इस क्षेत्र में विधानसभा उम्मीदवार के रूप में प्रचारित करते आ रहे थे। ऐसे में, इनकी नाराजगी कांग्रेस के वोटों पर असर डाल सकती है। सांगानेर में वरिष्ठ नेताओं की दूरी की चर्चाएं कांग्रेसियों में हैं। इन नेताओं ने पार्टी प्रचार से दूरी बना रखी है तो कुछ नेता जयपुर जिले से बाहर के कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में जा चुके हैं। विद्याधर नगर में तो कांग्रेस से बागी हुए विक्रमसिंह शेखावत पार्टी के वर्तमान प्रत्याशी के सामने खुलकर उनकी बेचैनी बढ़ा रहे हैं, जबकि टिकट के दूसरे दावेदारों ने पार्टी प्रत्याशी के प्रचार से दूरी बना रखी है।



अपने से दूसरे विधानसभा क्षेत्र में प्रचार
कांग्रेस के इन जमीनी नेताओं का गुस्सा पार्टी से बागी होकर सामने नहीं आया तो अपरोक्ष रूप से दिख रहा है। हवामहल से विधायक और पूर्व मंत्री बृजकिशोर शर्मा जयपुर के दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय हैं, वे पहले ही साफ कह चुके हैं कि हवामहल में प्रचार नहीं करेंगे। वहीं, किशनपोल से ज्योति खण्डेलवाल और गिरिराज खण्डेलवाल की दूसरे इलाकों में सक्रियता ज्यादा दिख रही है। झोटवाडा से टिकट मांग रहे एक नेता पूर्व में बागी हो चुके हैं और अब उनसे भी भितरघात का खतरा वर्तमान प्रत्याशी को बना हुआ है। सिविल लाइन्स में भी कई नेता अपने की बजाए दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

टिकट देते समय पूछा भी नहीं
कांग्रेसियों को दर्द इस बात से भी ज्यादा है कि जिन उम्मीदवारों को टिकट दिया, उस दौरान उनसे पूछा भी नहीं गया। ऐसे में, अब टिकट मिलने के बाद इन नेताओं का आक्रोश मौन रहकर सामने आ रहा है। इन नेताओं का उस क्षेत्र में वोटर्स पर मजबूत पकड़ के कारण कांग्रेस का प्रचार का ग्राफ रंग नहीं पकड़ पाया है। बीजेपी में भी जयपुर में कई इलाकों में वरिष्ठ नेता प्रचार से गायब दिख रहे हैं। 

बीकानेर में कल्ला को खुली चुनौती
बीकानेर में यशपाल गहलोत का टिकट बीडी कल्ला समर्थकों के भारी विरोध और उफान के बाद काट दिया गया। इसके बाद गहलोत समर्थकों की ओर से कल्ला का खुलकर विरोध किया जा रहा है। इसके विरोध में घरों की दीवारों पर भी अजीबोगरीब शब्द लिखे जा रहे हैं। कांग्रेस के कई नेताओं की बीडी कल्ला की तरह चुनौती अपनों से मिल रही है हालांकि, बीडी कल्ला का इस क्षेत्र में वोटर्स में बड़ा दबदबा है। ऐसे में, यह विरोध उनको कितना नुकसान पहुंचाता है, इसका आकलन नतीजे के बाद ही सामने आएगा।

20 से 25 साल पार्टी में खपाए अब उपेक्षा
कांग्रेस के इन नेताओं की नाराजगी इसलिए भी ज्यादा दिख रही है कि इन नेताओं की अब तक पूछ उन इलाकों में नहीं दिख रही है। युवा उम्मीदवारों का तालमेल इनसे नहीं दिख पा रहा है। ऐसे में, पूछ नहीं होने से यह नेता खामोश हैं और इसका सीधा लाभ जयपुर में भाजपा को मिल रहा है, पिछली बार जिसके सारे प्रत्याशी जीते थे। जयपुर में संघ की जबरदस्त सक्रियता के कारण बीजेपी प्रत्याशी अपनी स्थिति को मजबूत मान रहे हैं, जबकि कांग्रेस में चर्चा है कि उनके अग्रिम संगठन तक चुनाव में खुद को झोंक नहीं पाए हैं। युवा उम्मीदवार अपने कार्यालयों में यह भी कहते दिखाई दे रहे है कि वे प्रचार करें या इन वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी दूर करने में समय लगाएं।

सत्ता विरोधी लहर का भरोसा
कांग्रेस के प्रत्याशियों या कांग्रेस के नेताओं के प्रचार में एक बात आम सामने आ रही है कि सत्ता विरोधी लहर का लाभ उनको मिलेगा। हालांकि, सत्ता विरोधी लहर किस इलाके में कितनी है, और इस सरकार के विकास कार्य उन इलाकों में और विधायकों की सक्रियता उन इलाकों में कितना प्रभाव डाल रही है, उससे तय होगा कि कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का लाभ कितना मिल पाया। कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता दबी जुबान में कह रहे कि कांग्रेस का प्रचार अभी जोर नहीं पकड़ पाया है। ऐसे में, बड़े नेताओं के हवाई दौरे कितनी जान फूंकते हैं और मतदाताओं को कितना प्रभावित कर पाते हैं, यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा।

Anil dev

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