अयोध्या पर फैसला सुनाने वाले जस्टिस बोबड़े बोले, कुर्सी से उठते ही भूल जाता हूं अदालती बातें

Sunday, Nov 10, 2019 - 02:18 PM (IST)

नई दिल्ली: अयोध्या जैसे अत्यधिक दबाव वाले मामलों में मैराथन सुनवाई करने वाली पीठ में शामिल न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे का कहना है कि वे इन मामलों की सुनवाई को सहजता से लेते हैं और उनको इन सब चीजों से ज्यादा तनाव नहीं होता है। जब अदालत का माहौल गर्म होता है, दोनों पक्षों के वकीलों की ओर से तर्कों की बौछार हो रही होती है, तो ऐसे में स्वयं को तनाव-मुक्त रखने को लेकर बोबडे ने कहा कि सुनवाई के बाद जब मैं सीट से उठता हूं, तो मैं उस पल को भूल जाता हूं, जिससे मुझे तनाव नहीं होता।

शनिवार को अयोध्या भूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति बोबडे को मामले की सुनवाई पूरा होने के दो दिन बाद और फैसले से सिर्फ 10 दिन पहले भारत का अगला प्रधान न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 29 अक्तूबर को सीजेआई के रूप में उनकी नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर किए। इस महीने की शुरुआत में एक इंटरव्यू में तनाव कम करने से संबंधित पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं उस क्षण को भूल जाता हूं जब मैं सीट से उठता हूं। मैं बस उसे भूल जाता हूं। न्यायमूर्ति बोबडे 18 नवंबर को भारत के अगले चीफ जस्टिस के रूप में शपथ लेंगे।

देश के 47वें सीजेआई होंगे जस्टिस बोबडे
महाराष्ट्र के एक वकील परिवार से आने वाले न्यायाधीश ने आधार प्रकरण सहित कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की है। वह देश के 47वें सीजेआई होंगे।

23 अप्रैल, 2021 तक रहेंगे देश के चीफ जस्टिस
जस्टिस बोबडे अगस्त 2017 में निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली संविधान पीठ के भी सदस्य थे। निजता का सवाल आधार योजना की सुनवाई के दौरान उठा था और फिर इसे नौ सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया गया था। शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश 63 वर्षीय न्यायमूर्ति बोबडे वर्तमान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई का स्थान लेंगे जो 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। न्यायमूर्ति बोबडे 23 अप्रैल, 2021 तक देश के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे। कानून मंत्रालय ने न्यायमूर्ति बोबडे की देश के नए प्रधान न्यायाधीश पद पर नियुक्ति संबंधी अधिसूचना जारी की थी। न्यायमूर्ति बोबडे करीब 17 महीने इस पद पर रहेंगे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने स्थापित परपंरा के अनुरूप अपने उत्तराधिकारी के रूप में शीर्ष अदालत के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति बोबडे की नियुक्ति की सिफारिश केंद्र से की थी।

कई मामलों पर की सुनवाई

  • अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बैंच में रहे शामिल और सर्वसम्मति से सुनाया फैसला
  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने वाली तीन सदस्यीय आंतरिक समिति की अध्यक्षता भी न्यायमूर्ति बोबडे ने ही की थी। इस समिति में दो महिला न्यायाधीश भी थीं। शीर्ष अदालत की एक पूर्व कर्मचारी ने यह आरोप लगाया था।
  • न्यायमूर्ति बोबडे उस तीन सदस्यीय पीठ के भी सदस्य थे जिसने 2015 में स्पष्ट किया था कि आधार कार्ड नहीं रखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को बुनियादी सेवाओं और सरकारी सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने हाल ही में क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के कामकाज का संचालन करने वाली प्रशासकों की समिति को अपना काम खत्म करने का निर्देश दिया ताकि बीसीसीआई के संचालन के लिए नए सदस्यों का निर्वाचन हो सके। शीर्ष अदालत ने ही प्रशासकों की इस समिति की नियुक्ति की थी।

1978 में शुरू की वकालत
नागपुर में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक और फिर कानून की शिक्षा पूरी की। न्यायमूर्ति बोबडे ने 1978 में महाराष्ट्र बार काउन्सिल में पंजीकरण कराने के बाद बंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में वकालत शुरू की। वह 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता बनाए गए थे। न्यायमूर्ति बोबडे की 29 मार्च 2000 को बंबई हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश पद पर नियुक्ति हुई। वह 16 अक्तूबर 2012 को मप्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और 12 अप्रैल 2013 को पदोन्नति देकर उन्हें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनाया गया।

Seema Sharma

Advertising