जानें,पोर्न के खिलाफ अभियान चलाने वाले इस शख्स के बारे में

Tuesday, Aug 04, 2015 - 02:32 PM (IST)

नई दिल्लीः  भारत में पोर्न वेबसाइटों पर बैन लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इनकार करने के बाद भी उम्मीद न छोड़ने वाले  कमलेश वासवानी ने आखिर अाज जीत हासिल कर ली है। पोर्न पर प्रतिबंध को लेकर इंदौर के वकील कमलेश वासवानी ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी ।

वासवानी ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत के दौरान मोदी सरकार तथा सुप्रीम कोई का पोर्न वेबसाइटों को बैन करने को लेकर धन्यवाद किया है। उन्होंने कहा कि मैं हैरान हूं कि अभी तक याचिका पर फैसला भी नहीं अाया अौर सरकार ने साईट्स को बैन कर दिया।  वासवानी ने  कहा कि ये वेबसाइट्स 80 प्रतिशत महिलाओं और बच्चों  को प्रभावित करती हैं लेकिन इस मुद्दे को कोई उठा नहीं सकता। उन्होंने कहा कि मैं 2013 से इस फैसले के अाने का इंतजार कर रहा था लेकिन देर आए दुरुस्त आए।

डॉक्टर की जगह बन गया वकील 

43 वर्षीय  वकील ने बताया कि वे वास्तव में डाक्टर बनना चाहते थे। मैडीकल प्रवेश परीक्षा के लिए 5 बार परीक्षा देने  पर भी मैं असफल रहा । उन्होंने सिवल सेवाओं के लिए भी तैयारी की  लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिली। इसके बजाय, 1998 में इंदौर उच्च न्यायालय में  कानून के लिए दाखिला लिया। अपनी मां के कैंसर कारण सिविल जज बनने का रास्ता भी छोड़ना पड़ा।

 कई अौर वेबसाइटों को अवरोधित करने की जरूरत

वासवानी अनुसार कई अौर एेसी वेबसाइट्स है जिन्हें अवरोधित करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में आगामी सुनवाई  सोमवार को होनी है जिसमें वासवानी की टीम अधिक ''चौंकाने वाला'' वीडियो प्रस्तुत करेगी । उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि वह जो भी कर रहे हैं उसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी जी के अाभारी हैं।  उन्होंने कहा कि वह केवल यौन स्पष्ट सामग्री के खिलाफ है जो सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अवैध है।

उन्होंने कहा कि पोर्न के भी कई प्रकार हैं ।  खजुराहो में भी यही सब है लेकिन मैं कभी वहां गया नहीं। उसका इशारा सीधा बारहवी सदी के हिन्दू और जैनी मंदिरों की और था जहां मूर्तियां आपत्तिजनक दिखाई देती हैं।   हैरानी की बात यह भी है के वासवानी भंगार गाओं मध्य प्रदेश के 300 किलो मीटर के दायरे मैं पला बढ़ा है।

ज्ञात हो भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तु ने घर पर पॉर्न देखने पर लगने वाले बैन को संविधान के ''आर्टिकल 21 का उल्लंघन'' बताया था जिसके तहत हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मिलता है।

दत्तु ने कहा था कि इस तरह के आदेश पास नहीं किए जा सकते। उन्होंने कहा था, ''ऐसे अंतरिम आदेश यह कोर्ट पास नहीं कर सकती। कोर्ट में कोई भी आकर कह सकता है, ''देखिए! मैं वयस्क हूं और आप किस बिना पर मुझे मेरे घर की चारदीवारी में पॉर्न देखने से रोक सकते हैं? यह संविधान के आर्टिकल 21 यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।'' हां कुछ कदम उठाए जाने चाहिएं क्योंकि समस्या गंभीर है। केंद्र सरकार को इस पर मत बनाना होगा, देखते हैं वह क्या तय करती है।''जिसके बाद केंद्र सरकार ने 800 से ज्यादा पोर्न वेबसाइटों को बैन कर दिया।

 
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