घरेलू सेवकों के लिए पुख्ता कानून?

Sunday, Jul 26, 2015 - 10:52 PM (IST)

उत्तर-पश्चिम दिल्ली के रानी बाग इलाके में 11 जुलाई को अपने दोस्त की नौकरानी के साथ बंदूक की नोक पर बलात्कार करने के आरोपी एक असिस्टैंट सब-इंस्पैक्टर को गिरफ्तार करके न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया परंतु घरेलू नौकर-नौकरानियों पर अत्याचार करने या उन्हें प्रताडि़त करने का यह कोई एकमात्र मामला नहीं है। 

हाल ही में एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी की एक उच्चाधिकारी दिल्ली के पॉश इलाके वसंत कुंज के अपने घर में अपनी नौकरानी की बेरहमी से पिटाई करने के मामले में सुर्खियों में रही। करीब 2 वर्ष पूर्व एक राजनेता की पत्नी द्वारा अपनी नौकरानी को लोहे की छड़ से बुरी तरह पीटने का मामला भी खबरों में रहा था। 
 
चाहे कोई हाई-प्रोफाइल केस हो या फिर लाखों मध्यवर्गीय घरों में इन ‘अदृश्य’ श्रमिकों पर होने वाले दुखद अत्याचार, घरेलू सेवकों की सुरक्षा के लिए हमारे देश में कोई पुख्ता कानून ही नहीं  होने के कारण इस प्रकार के अपराध आम हैं। 
 
इसके बावजूद भारत में लाखों महिला श्रमिकों के लिए बतौर घरेलू सेवक काम करना आजीविका कमाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है तथा देश में इनकी संख्या में 75 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। इसका एक मुख्य कारण झारखंड तथा छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के गरीब गांवों से दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों में काम की तलाश में आने वाली प्रवासी महिलाएं हैं। 
 
2009 में सरकार ने घरेलू सेवकों संबंधी एक राष्ट्रीय नीति की रूपरेखा तैयार की थी। इसमें न्यूनतम वेतन, काम के तय घंटे तथा परिस्थितियां, सामाजिक सुरक्षा, यूनियन बनाने एवं कौशल विकसित करने का अधिकार आदि मुद्दे शामिल थे परंतु इसे कैबिनेट की सहमति कभी नहीं मिली। 
 
असमान वेतन के मामले में देश में चली आ रही चिरकालिक परम्परा के कारण अक्सर महिलाओं को सबसे कम वेतन से ही संतुष्टï होना पड़ता है। 
 
अब ये परिस्थितियां सुधर सकती हैं यदि सरकार श्रम मंत्रालय की ताजा सिफारिशें स्वीकार कर ले। इसके अंतर्गत काम की शर्तें तथा परिस्थितियां तय की जानी हैं ताकि घरेलू सेवकों के अधिकार सुरक्षित किए जा सकें। 
 
यह कदम अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन की बैठक में गत मास भारत द्वारा किए गए इस वायदे के अनुरूप उठाया गया है कि भारत स्वयं को एक असंगठित वर्कफोर्स वाले देश से संगठित वर्कफोर्स वाले देश में बदलेगा। 
 
इस संबंध में की गई सिफारिशों में यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि सभी नियोक्ता अपने पास मासिक वेतन पर कार्य करने वाले घरेलू सेवकों को बाकायदा नियुक्ति लैटर जारी करें। इससे उन्हें ‘सहायक’ या ‘परिवार के अंग’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकेगा और वे नियुक्त कर्मचारियों के रूप में अधिकारों एवं सम्मान सहित  कार्य कर सकेंगे। इससे उनके पास कार्य के तय घंटों तथा साप्ताहिक छुट्टी का अधिकार होगा। कोई पुख्ता आंकड़े तो नहीं हैं परंतु एक अनुमान के अनुसार इससे 50 लाख घरेलू सहायकों को लाभ पहुंचेगा। 
 
अन्य सिफारिशों में न्यूनतम वेतन, बुनियादी स्वास्थ्य तथा स्वच्छता संंबंधी मूल सुविधाएं, मैर्टिनटी लीव, स्वास्थ्य संबंधी अन्य सुविधाएं और शारीरिक व यौन शोषण से सुरक्षा भी शामिल हैं। अचानक कार्य से निकालने की शिकायतें दूर करने का प्रावधान भी शामिल होगा। 
 
हालांकि, अन-ऑर्गेनाइज्ड सोशल सिक्योरिटी एक्ट 2008 तथा सैक्सुअल ह्रासमैंट अगेंस्ट वूमैन एट वर्कप्लेस एक्ट ऑफ 2013 तथा न्यूनतम वेतन के प्रावधान भी मौजूद हैं परंतु वर्कफोर्स के प्रमाणित नहीं होने तथा उन्हें कोई आधिकारिक स्टेटस प्राप्त नहीं होने के कारण उन्हें पूरी तरह से लागू करना संभव नहीं था।
 
वास्तव में इसमें परिवारों की सुरक्षा भी निहित है क्योंकि घरेलू नौकरों द्वारा किए जाने वाले अपराध भी लगातार वृद्धि पर हैं। इस कानून से गार्डों, रसोइयों, पहरेदारों जैसे सेवकों की पृष्ठभूमि की विस्तृत जांच को अनिवार्य बना देना वांछित है और इस मामले में उंगलियों के निशान लेने का नियम भी लागू किया जा सकता है। 
 
हालांकि पाश्चात्य जगत में इस प्रकार की नीति लागू है परन्तु घरेलू उपकरणों और सेवाओं की उपलब्धता के कारण घरेलू नौकर रखने का रुझान बहुत कम है। अत: हो सकता है कि निकट भविष्य में भारतीयों से भी या तो कानून के अनुसार चलने और अधिक मानवीय आचरण अपनाने के लिए, नौकरानियों को बेहतर वेतन देने और उनसे उचित व्यवहार करने के लिए कहा जाए या फिर हम भी पश्चिमी जीवन शैली अपना कर घरेलू उपकरणों पर अधिक निर्भरता रखने लगें।
 
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