इस झील में है करोड़ों का खजाना, छूने वाला हो जाता है अंधा (देखें तस्वीरें)

Tuesday, May 19, 2015 - 05:19 PM (IST)

मंडी (पुरुषोत्तम शर्मा): हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। इसके पीछे यहां पर हजारों देवी-देवताओं की तपोस्थली होना है। इन देवी-देवताओं में एक देव हैं कमरूनाग, जिन्हें हिमाचल के सबसे बड़े देवता का नाम और पूजा जाता है। देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी कहा जाता है। जब भी लम्बे समय तक बारिश नहीं होती तो मंडी जनपद के कई देवताओं के कारकून व हारीयान देवता से बारिश करवाने के लिए खास पूजा अर्चना करते हैं। जब कारिंदे देवता की पूजा करते हैं तो देवता खुश होकर इलाके में बारिश करवाता है। 


कमरूनाग झील पर हर साल 14 जून को मेला लगता है। इस मेले की के दौरान आसपास और देश के दूसरे हिस्सों से भी हजारों लोग आते हैं। लोगों की आस्था इतनी ज्यादा है की लोग देवता से मांगी मन्नत के पूरा होते ही झील में सोना-चांदी, जेवर और लाखों रुपए की नगदी चढ़ाते हैं। इस झील से सोना-चांदी बाहर नहीं निकला जाता है। कहा जाता है कि इस झील से देवता का खजाना भी कोई चुरा नहीं सकता क्योंकि यहां एक आदमी ने सोना चुराने के लिए झील के मुहाने पर छेद करके सारा पानी बाहर निकालना चाहा था पर वह आदमी पानी में ही फंस गया और जान से हाथ धो बैठा। 

माना जाता है कि इस झील में करोड़ों का सोना-चांदी है जिसकी रक्षा स्वयं कमरूनाग करते है। ऐसी भी मान्याता है कि यहां पांडवों ने अपनी सारी सम्पति झील में देवता कमरूनाग को समर्पित की थी। 1911 में एक अंग्रेज अधिकारी ने भी आपातकाल के दौरान झील से सोना चांदी व नगदी निकालने की कोशिश की थी लेकिन देवता की शक्ति से उसे आधो रास्ते में ही पेट दर्द शुरू हो गया और वह मरने से बचा। 
 

बाद में जब अंग्रेज अधिकारी वापस इंग्लैंड लौटा तो वहां कमरूनाग उसे सपने में आए और उसने देवता को मानना शुरू किया जिसके बाद कोई ब्रिटिश सेना ने झील से सम्पति निकालने की कोशिश नहीं की। कुछ दशक पूर्व एक चोर गिरोह के सदस्य ने गुपचुप चोरी का प्रयास किया लेकिन पकड़े जाने के बाद उसी दिन से वह फिर अंधा हो गया।    


ऐसे पहुंचे कमरूनाग
कमरूनाग घाटी मंडी शहर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है जहां पहुंचने के लिए 6 घंटे का पैदल रास्ता चड़ना पड़ता है। पूरी घाटी अपने आप में अपार प्राकृतिक सौन्दर्य लिए हुए है। झील पर सर्दियों में बर्फबारी भी होती है जिस कारण साल में 3 महीने के लिए यहां जाना लगभग बंद होता है। 

देव कमरूनाग का वर्णन महाभारत से
महाभारत काल के योधा का रूप हैं देव कमरूनाग, कहा जाता है कि रत्तन यक्ष नाम के योधा ने विष्णु की पूर्ति आगे रखकर कमरू विद्या सीखी और अनेक सिद्धियां हासिल की। महाभारत में कौरवों और पांडवों ने अनेक योधाओं को अपनी अपनी तरफ से लड़ने का निमंत्रण भेजा लेकिन किसी ने भी रत्तन यक्ष को नहीं बुलाया। तो इस से आहात हुए देव ने अपने पिता का आशीर्वाद लिया और कहा की वो युद्ध क्षेत्र में जो दल हार रहा होगा वो उसकी तरफ से लड़ेंगे। 


देव में इतनी शक्तियां थी की वो जिस तरफ से भी लड़ते वो जीतते। इसका ज्ञान सिर्फ  कृष्ण को था तो वो भेष बदलकर कमरूनाग को मिले और उनसे पूछा की आप कहां जा रहे हैं। देव के युद्ध में जाने की बात को लेकर कृष्ण ने उन्हें परीक्षा देने को कहा और कहा की आप अगर शक्तिशाली है तो पेड़ के सभी पत्तों में एक तीर से छेड़ करके दिखाओ। इसी दौरान कृष्ण ने चालाकी से कु छ पते अपनी बगल व पैरों इत्यादि में छुपा दिए और जब कमरूनाग ने पेड़ पर तीर चलाए तो सारे पत्तों पर छेद हो गया और वहीं जो पत्ते कृष्ण ने अपने पैरों और बगल में छुपाए थे उनमें भी छेद हो गए थे। 


इससे कृष्ण काफी चिंतित हो गए की कहीं कमरूनाग कौरवों की तरफ से युद्ध न लड़ ले तो उन्होंने देव से पूछा की तुम किसकी पूजा करते हो। जब कमरूनाग ने कहा की विष्णु की तो, कृष्ण ने वहीं अवतार लेते हुए उनसे गुरुदक्षिणा की मांग की। बदले में कृष्ण ने देव से उनका सर मांग लिया। देवता ने हामी भरी और कहा की उनकी एक इच्छा है की उन्हें युद्ध देखना है और उनका सर ऐसे जगह पर लगाया जाए जहां से सारा युद्ध क्षेत्र दिखे। 


जब युद्ध शुरू हुआ तो कमरूनाग का सर ऊंचे स्थान पर लगा दिया गया। उनके कटे सर में भी इतनी ताकत थी की जिस तरफ  सर का मुंह होता वहां तबाही हो जा रही थी। इस बात का पता जब कृष्ण को चला तो उन्होंने पांडवों से उनकी पूजा अर्चना करने को कहा और उनकी मूर्ति की स्थापना करने की कहा। पांडवों ने देवता से वादा किया की अगर वो कौरवों का नाश करते हैं तो राज्यभिषेक उनसे करवाया जाएगा। युद्ध के बाद कमरूनाग ने कृष्ण से अलग राज्य मांगा और पांडवों ने उन्हें यहां कमरू पहाड़ी पर स्थापित किया और कृष्ण ने उन्हें शरीर दिया। 

 

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