क्या मोदी सरकार उठाएगी नेताजी की रहस्यमय मौत से पर्दा?

Sunday, Apr 19, 2015 - 11:21 AM (IST)

नई दिल्ली: भारत माता के अमर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े कुछ दस्तावेजों के अंश सामने आने के बाद देशवासियों के मन में एक बार फिर यह सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार उनकी रहस्यमयी मौत से निकट भविष्य में पर्दा उठ पाएगा। नेताजी की मात्र 48 वर्ष की उम्र में 18 अगस्त 1945 को ताइवान के फोरमोसा में एक विमान दुर्घटना में मौत होने की बात कही गयी है। इसकी जांच के लिए सरकार अब तक तीन आयोग गठित कर चुकी है। आजादी से पहले भी गवर्नर जनरल लार्ड माउटबेटन ने एक जांच समिति गठित की थी, लेकिन उनकी मौत के रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है। 

 नेताजी की मौत को लेकर देश में कई तरह की किवदंतियां बन चुकी हैं। नेताजी से जुड़ी कुछ फाइले सरकार के पास हैं जिन्हें वह यह कह कर सार्वजनिक करने से इन्कार करती रही है कि ऐसा करने से मित्र देश के साथ संबंधों पर असर पड़ सकता है।  इस फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग एक बार फिर उठी है। लेकिन उनके सार्वजनिक होने से भी पता चल पाएगा कि क्या वाकई नेताजी उस विमान दुर्घटना में मारे गए थे या साइवेरिया की जेल में भेज दिए गए थे या गुमनामी बाबा के रूप में भारत में आजादी के बाद जीवन व्यतीत करते रहे। 

 मोदी सरकार ने सरकारी गोपनीय फाइलों को सूचना के अधिकार के तहत सार्वजनिक करने पर विचार करने के लिए एक समिति गठित कर दी है और गत दिनों उसकी पहली बैठक भी हो चुकी है।  पिछले दिनों मीडिया में आयी रिपोर्टो के अनुसार देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में लंबे समय तक गुप्तचर ब्यूरों के लोग नेताजी के परिजनों की जासूसी करते रहे। इससे लोगों की यह भावना मजबूत हुई है कि विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत नहीं हुई थी। 

 ब्रिटिश भारत में ही लार्ड माउंटबेटन ने इसकी नेताजी की मौत की जांच के लिए सर कर्नल जान फिग्स को नियुक्त किया था और 25 जुलाई 1946 को उन्होंने अपनी रिपोर्ट भी पेश की पर वह सार्वजनिक नहीं की गई। यहां तक कि 1977 में ब्रिटिश लायब्रेरी में जब भारतीय दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया तो उसमें भी फ्रिग्स की रिपोर्ट नहीं थी।  लेकिन बाद में ब्रिटिश लायब्रेरी को उस रिपोर्ट की फोटोकॉपी मिली जिसमें नेताजी की विमान दुर्घटना में मौत की बात कही गयी थी। लेकिन इससे भी लोगों के मन का संदेह नहीं गया था।  आजादी के बाद जब नेताजी की मौत को लेकर अफवाहे फैलीं तो सरकार ने आजाद हिन्द फौज में लेिटनेंट कर्नल रह चुके शाह नवाज खान की अध्यक्षता में 1956मे तीन सदस्यीय आयोग गठित किया जिसमें आई.सी.एस अधिकारी एस.एन मैत्रा तथा नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस भी सदस्य थे।

 इस समिति के दो सदस्यों ने माना कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में हुई थी पर श्री सुरेश चंद्र बोस ने यह कहकर जाँच आयोग की अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था कि आयोग ने कुछ महत्वपूर्ण सबूतों को उनसे छिपा लिया ताकि रिपोर्ट में नेताजी की मौत का कारण विमान दुर्घटना बताया जाए। नेताजी के भाई का यह भी कहना था कि पश्चिम बंगाल के मुयमंत्री विधान चंद्र राय तथा जाँच आयेाग के अन्य सदस्यों ने भी अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए उनपर दवाब डाला था।  इसके 14 साल बाद 1970 में नेताजी की मौत को लेकर विवाद फिर गहराया क्योंकि रूस के नेता ख्रुश्चेव ने भी तब कहा था कि पंडित नेहरू के अंतिम संस्कार में नेताजी भी आए थे।

 1970 में पंजाब उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश जी.डी. खोसला की अध्यक्षता में जाँच आयोग गठित किया गया। उसने 1974 में रिपोर्ट दी थी और उसने पिछली रिपोर्टों को सही माना। इसके बाद 1999 में अदालत के निर्देश पर वाजपेयी सरकार ने उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एम. के. मुखर्जी को नेताजी की मौत की जाँच करने को कहा। मुखर्जी आयोग जापान , रूस तथा ताइवान भी गया। उसने 8 नवबर 2005 को रिपोर्ट दी कि नेताजी की विमान दुर्घटना में मौत होने का कोई प्रमाण नहीं है और जापान के रेंकोजी मंदिर में उनकी जो अस्थि रखी गयी थी, वह दरअसल जापान के एक सैनिक की थी।  

यह रिपोर्ट 17 मई 2006 को संसद में पेश भी की गयी पर सरकार ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया लेकिन न्यायमूर्ति मुखर्जी बाद में भी अपनी बात पर अडिग रहे।  संप्रग सरकार के दौरान सुभाष अग्रवाल नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक कर नेताजी की रहस्यमय मौत की जानकारी मांगी तो सरकार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मुखर्जी आयोग ने भी नेताजी संबंधित गोपनीय फाइलें नहीं देखी थी। 

अब नेताजी की मौत को लेकर फिर विवाद खड़ा हुआ है। देश की जनता के मन में यह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है कि क्या मोदी सरकार नेताजी की रहस्यमय मौत से पर्दा उठाएगी या यह सारी कवायद केवल राजनीति का ही हिस्सा बनकर रह जाएगी।  इस पूरे प्रसंग में नेताजी का कद जनमानस में लगातार बढ़ता गया है और इतिहास में नए सिरे से उनके मूल्यांकन की भी जरूरत महसूस की जा रही है।  

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