(Birthday Special) आसमा से ऊंची कल्पना को सलाम

Tuesday, Mar 17, 2015 - 02:06 AM (IST)

जालंधर. हरियाणा के करनाल आज के दिन भारत की पहली अतरिक्ष में जाने वाली बेटी कल्पना चावला ने जन्म लिया था। हरियाणा के करनाल में कल्पना चावला का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था। कल्पना चालवा का जन्म 17 मार्च 1961 को हुआ था। उसके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और माता का नाम संजयोती था। वह अपने परिवार के चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। घर मे सब उसे प्यार से मोंटू कहते थे। कल्पना की प्रारंभिक पढ़ाई टैगोर बाल निकेतन में हुई थी। कल्पना जब आठवीं कक्षा में पढ़ती थी तभी से उसमें इंजिनयर तमन्ना थी। उसकी मां ने अपनी बेटी की भावनाओ को समझा और आगे बढऩे में मदद की। पिता उसे चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे। किंतु कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थी। कल्पना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण था, उसकी लगन और जुझार प्रवृति। कलपना न तो काम करने में आलसी थी और न असफलता में घबराने वाली थी। उनकी उड़ान में दिलचस्पी जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा, से प्रेरित थी जो एक अग्रणी भारतीय विमान चालक और उद्योगपति थे। 
 
प्रारंभिक शिक्षा टैगोर पब्लिक स्कूल करनाल से
कल्पना चावला ने प्रारंभिक शिक्षा टैगोर पब्लिक स्कूल करनाल से प्राप्त की। आगे की शिक्षा वैमानिक अभियांत्रिकी में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ से करते हुए 1982 में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 1982 में चली गईं और वैमानिक अभियांत्रिकी में विज्ञान निष्णात की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आर्लिंगटन से 1984 में प्राप्त की। कल्पना जी ने 1986 में दूसरी विज्ञान निष्णात की उपाधि पाई और 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से वैमानिक अभियंत्रिकी में विद्या वाचस्पति की उपाधि पाई। कल्पना को हवाई जहाजों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्जा हासिल था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे। अंतरिक्ष यात्री बनने से पहले वो एक सुप्रसिध नासा कि वैज्ञानिक थी।
 
1998 में अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया
कल्पना मार्च 1995 में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और उन्हें 1998 में अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया था। उनका पहला अंतरिक्ष मिशन 19 नवम्बर 1997 को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-87 से शुरू हुआ। कल्पना अंतरिक्ष में उड़ान करने वाली भारत की प्रथम व अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। इससे पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी। कल्पना ने अपने पहले मिशन में 1.04 करोड़ मील का सफर तय कर के पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं कीं और अंतरिक्ष में 360 से अधिक घंटे बिताए।
 
दूसरी यात्रा हुई असफल
एसटीएस-87 के दौरान स्पार्टन उपग्रह को तैनात करने के लिए भी जिम्मेदार थी, इस खराब हुए उपग्रह को पकडऩे के लिए विंस्टन स्कॉट और तकाओ दोई को अंतरिक्ष में चलना पड़ा था। पांच महीने की छानबीन के बाद नासा ने कल्पना चावला को इस मामले में पूर्णतया दोषमुक्त पाया। कोलंबिया अंतरिक्ष यान में उनके साथ अन्य यात्री भी थे।अन्य यात्रियों के साथ अंतरिक्ष पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई।
 
कैसे हुआ था हादसा
सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार- विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल मे अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई। नासा तथा विश्व के लिए यह एक दर्दनाक घटना थी। 1 फरवरी को 2003 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफल कहलया जाने वाला अभियान भीषण सत्य बन गया। ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा। 
 
कल्पना चावला एक जज्बा
कल्पना चावला आज अमर हो चुकी हैं। मरकर भी वह आज हजारों लड़कियों के लिए प्रेरणा का काम कर रही है। महिला सशक्तिकरण की राह में कल्पना चावला ने नई कहानी लिखी है। आशा है उनसे प्रेरित होकर कई लड़कियां अपने सपनों को नई उड़ान देंगी। इस तरह कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गए कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हंू। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूंगी। 
 
पुरस्कार
कांग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान
नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक
नासा विशिष्ट सेवा पदक
 
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