लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पास

Tuesday, Mar 10, 2015 - 11:40 PM (IST)

नई दिल्ली: आखिरकार लोकसभा में विवादित भूमि अधिग्रहण बिल दो दिनो तक चली चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित हो गया। बता दें इस विधेयक पर जारी गतिरोध को तोडऩे के लिए सरकार ने नौ संसोधन किए हैं। हालांकि विपक्ष के अधिकांश संसोधन नामंजूर हुए ,इसको लेकर कांग्रेस ने संसद से बर्हिगमन कर दिया। शिवसेना और अकाली दल को सरकार ने भरोसा दिलाया कि उनकी मांगो को विधेयक में जगह दी गई है। एनडीए के अन्य दल स्वाभिमानी पक्ष ने एक संशोधन पेश किया जिसे अस्वीकार कर दिया गया।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल, राजद, सपा ने विधेयक के पारित होने के समय सदन से वॉकआउट किया, जबकि बीजू जनता दल के सदस्य विधेयक पर खंडवार चर्चा के दौरान ही वॉकआउट कर गए थे और शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। सरकार ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि उसने पुराने कानून में आत्मा डालकर ग्रामीण विकास और किसानो के उत्थान का महत्वपूर्ण माध्यम बनाया। सरकार ने ये भी आश्वासन दिया कि विपक्ष के अलावा किसी के भी सुझावों को अपनाने के लिए सरकार तैयार है। विधेयक पर अंदर और बाहर विपक्ष के कड़े तेवर को देखकर सरकार ने बीच का मार्ग निकालते हुए विपक्ष और सहयोगियों के सुझावों को नए संसोधनों के जरिए विधेयक के साथ दो उपबंध भी जोड़े। विपक्ष ने हालांकि आरोप लगाया कि उनकी कोई भी मांग नहीं मानी गई।

सरकार नौ इन नौ संसोधनों के साथ विधेयक को लाई-
स्कूल और अस्पताल के लिए जमीन लेने से पहले 70 फीसदी किसानों की पूर्व अनुमति लेना जरूरी बनाना।
जिन सामाजिक सुविधाओं के लिए जमीन दी जाएगी, उनका समाज पर क्या असर पड़ा, इसके आकलन को जरूरी बनाने पर सरकार सहमत हो गई है।
जिन किसानों की जमीन ली जाएगी, उनकी शिकायतों को दूर करने की बेहतर व्यवस्था और जमीन अधिग्रहण से बेरोजग़ार हुए लोगों के रोजगार की व्यवस्था करने से जुड़े संशोधन को भी सरकार ने स्वीकार कर लिया है।
किसी परियोजना के लिए कम से कम जमीन का अधिग्रहण हो और कितनी जमीन ली जाए, यह राज्य सरकार ही तय करेगी।
औद्योगिक गलियारों का क्षेत्रफल तय करने संबंधी संशोधन को सरकार ने स्वीकार कर लिया है।

 निजी परियोजना की परिभाषा बदलने पर भी सरकार राजी हो गई है ताकि कोई इस सुविधा का गलत फायदा न उठा सके।
राष्ट्रीय राजमार्गों और रेलवे लाइनों के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर तक ही जमीन का अधिग्रहण किया जा सकेगा।
किसानों को अपने जिले में ही शिकायत या अपील करने का अधिकार होगा।
बंजर जमीन का अलग रिकॉर्ड रखा जाएगा।






 

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