10 साल बाद मिला आंख का तारा

Wednesday, Mar 04, 2015 - 07:40 AM (IST)

चरखी दादरी(पंकेस): जो बिछड़ों को मिलाए, जो रोते को हसाएं, रूठी किस्मत जगाए यह लाइनें भले ही किसी फिल्मी कव्वाली की हो पर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के गांव बरूवा कालेंजर मयंकी देवी के जीवन में यह हकीकत बनकर सामने आई है। 10 साल बाद मयंकी को खोया हुआ गुंगा बेटा सुरेश कुमार गांव रानीला में मिल गया। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के गांव बरूवा निवासी रजोल राजपूत का बड़ा बेटा सुरेश करीब 10 वर्ष पूर्व गांव के साथ लगते कालेंजर कस्बे में गांव के अन्य लड़कों के साथ मेला देखने गया था। गुंगा-बहरा होने के कारण सुरेश मेले में बिछड़ गया।

उस समय सुरेश की उम्र करीब 12 वर्ष थी। मेले में भटकने के बाद देर रात सुरेश किसी गाड़ी में बैठ गया। किसी तरह घूमते-घूमते वह शहर के रेलवे स्टेशन पहुंच गया। जहां उसे गांव का ही एक अन्य व्यक्ति मिला और उसे घर ले जाने की बात कह रात के अंधेरे में अपने साथ दिल्ली के साथ लगते एक ईंट-भट्ठे पर ले गया। यहां कुछ दिन काम करने के बाद वह सुरेश को भिवानी जिले के बामला गांव के एक अन्य भट्ठे पर लेकर पहुंचा और ईंट पथाई का काम शुरू कर दिया।

फरिश्ता बनकर आए शास्त्री :
गांव रानीला में प्रजापत मोहल्ले  में  उत्तर प्रदेश के कालेंजर क्षेत्र से ही पधारे गिरीश शास्त्री श्रीमद् भागवत कथा में प्रवचन दे रहे थे। इसी दौरान सुरेश भी कथा में पहुंच गया और शास्त्री के समक्ष रोने लगा। शास्त्री ने कथा समाप्त होने के बाद सुरेश के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि सुरेश करीब 10 वर्ष पूर्व का बिछुड़ा हुआ है। शास्त्री ने सुरेश के इशारे समझ लिए और उससे कुछ लिखवाया तो पूरा मसला समझ आ गया। लिखाई में जब कालेंजर का जिक्र आया तो शास्त्री ने तुरंत अपने गांव फोन कर भाई से पूछताछ की।

2 दिन बाद जानकारी मिली कि करीब 10 वर्ष पूर्व शास्त्री के गांव का ही एक लड़का माता-पिता से बिछड़ गया था जो गूंगा-बहरा भी था। शास्त्री ने ग्रामीणों से मिलकर सुरेश के फोटो मेल के माध्यम से भिजवाए तो उसके माता-पिता ने तुरंत सुरेश को पहचान लिया। बेटे को पाकर मयंकी देवी व राजोल राजपूत शास्त्री के भाई के साथ गांव रानीला पहुंचे। रानीला के प्रजापत मोहल्ले में सतबीर व अजीत के घर 10 साल बाद बेटे ने दूर से ही अपने माता-पिता को पहचान लिया।

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