MBA के बाद मोटा वेतन छोड़ कर रहा है खेती

Sunday, Feb 01, 2015 - 01:33 PM (IST)

पटना: ठंड के इस मौसम में अगर गांव की पगडंडियों के बीच खेतों में जिंस और जैकेट पहने कोई स्मार्ट युवक काम करते मिल जाए तो आपको आश्चर्य जरूर होगा, लेकिन बिहार के शेखपुरा जिला के केवटी में यह आम बात है। केवटी के रहने वाले अभिनव वशिष्ठ ने एमबीए की पढ़ाई के बाद खेती को ही अपने जीवनयापन का जरिया बनाया है। 

 
वशिष्ठ ने गाजियाबाद के आईएमटी से एमबीए की पढ़ाई पूरी की है, लेकिन नौकरी के लिए कभी कोई प्रयास न कर अपने पूर्वजों के गांव आकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती बाड़ी शुरू कर दी। 
 
उनके इस प्रयास को देखकर न सिर्फ गांव के लोग इनकी प्रशंसा कर रहे हैं, बल्कि इलाके के कई व्यवसायी और नौकरी करने वालों ने भी कृषि को अपना आर्थिक आधार बना लिया है। 
 
 वशिष्ठ ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, ‘‘उन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर सुगंधित और औषधीय पौधों की खेती शुरू कर दी है। पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2004 में पांच एकड़ जमीन पर सुगंधित पौधों की खेती की शुरुआत की थी, परंतु आज यह दायरा बढ़कर 10 एकड़ से ज्यादा हो गया है।’’ 
 
33 वर्षीय वशिष्ठ ने बताया कि शुरुआत से ही उनकी नौकरी में रुचि नहीं थी, वह अपने आप को कभी मशीन नहीं बनाना चाहते थे। वह खुद और समाज को कुछ देना चाहते थे। 
 
बकौल वशिष्ठ, ‘‘जहां जन्मभूमि हो वहां के लिए भी अपना कोई कर्तव्य होता है। आज मुझसे बिहार और उसके आसपास के करीब 400 किसान जुड़े हुए हैं।’’ 
 
वह बिहार औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं और वशिष्ठ पंचानन हर्बल इंडस्ट्रीज के जरिए मार्केटिंग और कंसल्टेंसी का भी कार्य देख रहे हैं। वह बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान ही उन्हें एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान देहरादून जाने का मौका मिला और वहीं उन्होंने औषधीय पौधों के बारे में जानकारी प्राप्त की थी, जो आज काफी मदद कर रहा है। 
 
उनके इस प्रयास को राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटील, पूर्व राष्ट्रपति ए$ पी$ जे$ अब्दुल कलाम और बिहार के पूर्व राज्यपाल देवानंद कुंवर भी सराह चुके हैं जबकि 2007 में उन्हें बिहार सरकार ने सर्वश्रेष्ठ किसान के रूप में ‘किसान श्री’ का पुरस्कार दिया था। 
 
उनका दावा है कि आज जो भी किसान उनसे जुड़े हैं उनकी आमदनी औषधीय खेती के बाद बढ़ी है। उन्होंने मुख्य रूप से तुलसी, लेमन ग्रास और मेंथा (जापानी पुदीना) पर ही ध्यान केन्द्रित रखा है। 
 
वशिष्ठ को हालांकि, इस बात का मलाल है कि सरकार द्वारा स्थानीय मजदूरों के पलायन को रोकने के कोई कारगर उपाय नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर मजदूरों का पलायन रुके तो कृषि के क्षेत्र में बिहार देश में अग्रणी बन सकता है। 
 
पूर्णिया न्यायालय में वकील के रूप में कार्य कर रहे विक्रम लाल शाह आजकल खेती पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। शाह कहते हैं चार वर्ष पूर्व उन्हें औषधीय पौधों की जानकारी मिली थी और तब उन्होंने 40 हजार रुपये की लागत से तीन एकड़ भूमि में लेमनग्रास की खेती प्रारंभ की थी लेकिन आज वह 15 एकड़ में औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। 
 
वशिष्ठ से जुडऩे के बाद वैशाली के यदुनंदन राय और मनोज कुमार भी औषधीय खेती से जुड़े हैं। ये लोग पांच से छह एकड़ भूमि पर औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैंं। औषधीय और सुगंधित पौध उत्पादन संघ के बिहार इकाई के सचिव गिरेन्द्र नारायण शर्मा भी वशिष्ठ के इस प्रयास की सराहना करते हैं। 
 
वह कहते हैं, ‘‘किसानों की आर्थिक तंगी को व्यावसायिक खेती से दूर की जा सकती है। कई किसानों में जागरूकता का अभाव है जिस कारण अधिकांश किसान व्यावसायिक खेती और उसके उत्पाद की बिक्री से अनभिज्ञ हैं। राज्य में औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती में विस्तार की असीम संभावनाएं मौजूद हैं।’’ 
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