सुप्रीम कोर्ट ने दी ‘बाली उमर’ के प्यार को हरी झंडी

Thursday, Jan 29, 2015 - 05:54 PM (IST)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेमी युगल को आखिरकार तीन साल बाद इकट्ठे रहने की इजाजत दे दी। दरअसल, उत्तर प्रदेश के बहराइच के रहने वाले इस प्रेमी जोड़े के मिलन में देरी की वजह युवती का नाबालिग होना था, लेकिन न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों को वैवाहिक जीवन बिताने की इजाजत दे दी है। अदालत में मामला लंबित रहने तक युवती लखनऊ के नारी निकेतन में रह रही थी।
 
जानकारी के मुताबिक, बालिग युवक और नाबालिग युवती में प्यार हुआ और बात शादी तक जा पहुंची। लेकिन, उनके परिवार को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। वजह थी उनका अलग-अलग जाति का होना। युवक दलित है जबकि लड़की ब्राह्मण। दोनों ने अपना घर बसाने का निर्णय लिया और वर्ष 2011 में मंदिर में शादी कर ली। इस बात से गुस्साएं युवती के परिवारवालों ने शादी के करीब एक महीने बाद युवक के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया। इसके बाद पुलिस ने युवक को हिरासत में ले लिया।
 
कई महीने सलाखों के पीछे बिताने के बाद आखिरकार युवक को जमानत मिल गई, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुकदमा निरस्त करने से इंकार कर दिया। लिहाजा युवक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पूरी कहानी जज के समक्ष रख दी। इसके बाद वर्ष 2013 में अदालत ने युवक के खिलाफ चल रहे मुकदमे पर रोक लगा दी और घरवालों की प्रताडऩा से बचाने के लिए लड़की को लखनऊ के नारी निकेतन में रहने का आदेश दिया। 
 
गत 20 जनवरी को मामले की सुनवाई के वक्त कोर्ट ने युवक को सज-धज कर आने को कहा। लड़का भी दुल्हे के लिवास में कोर्ट पहुंचा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने युवक से पूछा कि क्या वह लड़की को हमेशा खुश रखेगा। कभी उसे परेशान तो नहीं करेगा। इस पर हामी भरने पर कोर्ट ने दोनों की शादी को मंजूरी दे दी। अदालत ने यह भी कहा कि अब जब युवती बालिग हो गई है, तो लड़के के खिलाफ मुकदमा जारी रखने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए अदालत ने युवक के खिलाफ चल रहे मुकदमे को भी निरस्त कर दिया।
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