इंसानों की तरह जानवरों में भी होती हैं भावनाएं : सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी

Saturday, Jun 10, 2023 - 06:27 PM (IST)

नेशनल डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा कि जानवरों में इंसानों के समान भावनाएं होती हैं और जानवरों की क्रुरता से संबंधित मामलों को बड़ी संवेदनशीलता के साथ निपटाया जाना चाहिए। जस्टिस जीए सनप की सिंगल जज बेंच ने कहा कि चूंकि जानवर बोल नहीं सकते इसलिए वे अपने अधिकारों की मांग नहीं कर सकते

कानून के तहत उनके अधिकारों को मान्यता
बॉम्बे हाई कोर्ट के जज ने कहा, "जानवरों में इंसान के समान भावनाएं होती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जानवर बोल नहीं सकते हैं, हालांकि कानून के तहत उनके अधिकारों को मान्यता दी गई है, वे इसका दावा नहीं कर सकते हैं। जानवरों के अधिकार, जानवरों के कल्याण और जानवरों की सुरक्षा का ध्यान कानून के अनुसार संबंधितों को रखना होगा। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जानवरों के प्रति किसी भी रूप में क्रूरता के मामले पर विचार करते समय मामले को संपर्क किया जाना चाहिए और बड़ी संवेदनशीलता के साथ फैसला किया जाना चाहिए"।

याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां की गईं
39 गोवंश की कस्टडी के लिए आवेदन करने वाले कुछ लोगों की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां की गईं और दावा किया कि उनके पास उन जानवरों की बिक्री और खरीद का लाइसेंस है। अवैध रूप से अमानवीय तरीके से ट्रकों में ले जाए जा रहे पशुओं को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत पकड़ा गया और जब्त किया गया। याचिकाकर्ता, हालांकि अपराधों के आरोपी नहीं थे, उन्होंने जानवरों की कस्टडी के लिए आवेदन किया और दावा किया कि उनके पास जानवरों की बिक्री और खरीद के लिए लाइसेंस है।

याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का रुख किया
नागपुर के मजिस्ट्रेट ने याचिका को खारिज कर दिया और इसे सत्र न्यायालय ने बरकरार रखा, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का रुख किया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि मामले पर अंतिम निर्णय लेने में समय लग सकता है, जानवरों को अंतरिम रूप से उन्हें वापस सौंप दिया जा सकता है ताकि याचिकाकर्ता भी भैंसों को दुहने से होने वाली आय का आनंद उठा सकें। कोर्ट ने कहा कि परिवहन किए जा रहे पशुओं की संख्या वाहनों की क्षमता और पशु परिवहन नियम, 1978 के तहत निर्धारित सीमा से अधिक थी।

ट्रकों में नियमानुसार चारे-पानी की भी व्यवस्था नहीं थी। दुधार देने वाली भैंसों को बहुत ही क्रूर स्थिति में ले जाया गया था। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि इन मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मालिकों को आरोपी नहीं बनाया गया है। जस्टिस सनप ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि जानवरों के प्रति क्रूरता के आरोपों से जुड़े मामलों में, जानवरों के मालिकों को हिरासत सौंपना उचित नहीं था।

मां फाउंडेशन को पशु को अपने कब्जे में लेने का निर्देश
तदनुसार, उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को जानवरों को हिरासत में देने से इनकार कर दिया। इसने मां फाउंडेशन, पंजीकृत गौशाला को मामले के अंतिम फैसले तक पशु को अपने कब्जे में लेने का निर्देश दिया। न्यायालय ने संबंधित थानाधिकारी को यह भी निर्देश दिया कि वे पशु चिकित्सा अधिकारी के साथ महीने में दो बार गौशाला का दौरा करें और ऐसे दौरों की रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत करें। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता लाइक हुसैन, राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक एचडी दुबे पेश हुए। गौशाला की ओर से अधिवक्ता डीआर गलांडे व राजू गुप्ता पेश हुए।

rajesh kumar

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