गुजरात: इन मुद्दों के कारण हुई आनंदीबेन की विदाई, BJP इनमें से एक को चुनेगी अगला CM

Tuesday, Aug 02, 2016 - 02:56 PM (IST)

अहमदाबाद: गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। आनंदीबेन ने दोपहर बाद इस्तीफा देने की पेशकश की थी। उन्होंने फेसबुक पोस्ट पर लिखकर यह जानकारी दी। उन्होंने लिखा कि नवम्बर में वह 75 वर्ष की हो जाएंगी। इसलिए वह पार्टी नेतृत्व से आग्रह करती हैं कि उन्हें पदमुक्त किया जाए। वहीं दूसरी ओर गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे देने की पेशकश के साथ ही चर्चा शुरू हो गई कि अब राज्य का नया मुख्यमंत्री कौन बनेगा। पिछले दिनों जिस तरह आनंदीबेन को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की खबरों ने जोर पकड़ा था, तभी ये तय हो गया कि आनंदीबेन के नेतृत्व में 2017 के विधानसभा चुनाव नहीं लड़े जाएंगे। ऐसी स्थ‍िति बड़ा सवाल यही है कि आनंदीबेन का उत्तराधि‍कारी कौन होगा?

ये नेता हैं सीएम पद की रेस में
सियासी गलियारे में इस पद के दावेदार के लिए कुछ नामों पर चर्चा चल रही है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने की रेस में सबसे ऊपर गुजरात भाजपा के अध्यक्ष विजय रूपानी का नाम लिया जा रहा है। विजय रूपानी के लिए कहा जाता है कि संगठन में उनकी अच्छी पकड़ है।
आनंदीबेन के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में पार्टी का संगठन कमजोर हो रहा था। भाजपा की अंदरूनी उठा-पठक हाईकमान के पास जा रही थी। यही वजह थी कि संगठन को मजबूत बनाने के लिए विजय रूपानी को अध्यक्ष बनाया गया। हालांकि विजय रुपानी खुद सरकार में भी परिवहन मंत्री की भूमिका में हैं, ऐसे में सरकार चलाने का अनुभव भी उनके पास करीब एक साल का है। दूसरी ओर रूपानी अमित शाह के काफी करीबी बताए जाते हैं। 

-वहीं आनंदीबेन के उत्तराधि‍कारी के तौर पर दूसरा नाम नितिन पटेल का आ रहा है। नितिन पटेल एक तो पाटीदार समुदाय से आते हैं, साथ ही वे लंबे वक्त से सरकार में मंत्री बने हुए हैं। नरेंद्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे, उस वक्त नितिन पटेल मोदी के करीबी नेताओ में से एक थे। हालांकि पाटीदार आंदोलन के वक्त पर नितिन पटेल को अपने ही पाटीदार समाज के गुस्से का शिकार होना पड़ा था। यहां तक कि पाटीदारों ने नितिन पटेल को समुदाय में हासिये पर लाकर खड़ा कर दिया था, ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या नितिन पटेल भाजपा की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।

-इनके अलावा तीसरा नाम भीखू दलसानिया का भी है। भीखू दलसानिया पिछले लंबे वक्त से भाजपा के संगठन में काम कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तब भीखू की संगठन में काफी अच्छी पकड़ थी। वे RSS के भी काफी करीबी रहे है। साफ-सुथरी छवि और जातिवादी समीकरण भी भीखू के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। पुरुषोत्तम रुपाला और सौरभ पटेल के नाम पर पूर्ण विराम लगता दिख रहा है। रुपाला को हाल ही में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया है और उन्हें केन्द्र में मंत्री पद भी दिया गया है।

-दूसरी ओर, अंबानी परिवार के दामाद होने की वजह से सौरभ पटेल के भी मुख्यमंत्री बनने की कोई उम्मीद नहीं दिखती। अगर सौरभ पटेल को सीएम बनाया जाता है तो 2017 में पहली बार गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ने का प्लान बना रही आम आदमी पार्टी को बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल जाएगा, जो विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए घाटे का सौदा भी बन सकता है।


ये मुद्दे बने आनंदीबेन की विदाई का कारण
मई 2014 से अब तक की घटनाओं पर सरसरी नजर डाली जाए, तो एक के बाद एक ऐसी घटनाएं गुजरात में होती गईं, जिनसे आनंदीबेन की नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान खड़े हुए। इन घटनाओं से 1998 से सूबे की सत्ता पर काबिज भाजपा की किरकिरी तो हुई ही, केंद्र सरकार के मुखि‍या के तौर पर पीएम मोदी को भी काफी फजीहत झेलनी पड़ी।

1. पटेल-पाटीदार आंदोलन
आनंदीबेन को सत्ता संभाले अभी सालभर ही बीता था कि अगस्त 2015 में राज्य में बड़ा आंदोलन हुआ। आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल की अगुवाई में शुरू हुए इस आंदोलन ने विशाल रूप ले लिया। राज्य में तमाम जगहों पर हिंसा हुई, बड़े पैमाने पर सरकारी संपत्त‍ि को नुक्सान पहुंचा।

2. भ्रष्टाचार के आरोप
राज्य में विपक्षी कांग्रेस ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी के सीएम रहने के दौरान आनंदीबेन ने भ्रष्टाचार किया, जब वे मोदी कैबिनेट में राजस्व मंत्री थीं। कांग्रेस का आरोप है कि गुजरात सरकार ने 2010 में मोदी के मुख्यमंत्री रहते आनंदीबेन की बेटी अनार पटेल के बिजनैस पार्टनर को औने-पौने दाम पर जमीन दी थी। आरोप लगे कि गिर लायन सैंक्चुरी के पास मौजूद 125 करोड़ रुपए की जमीन को महज डेढ़ करोड़ में बेच दिया गया। सैंक्चुरी के पास कुल 400 एकड़ जमीन में से 250 एकड़ जमीन को 60 हजार रुपए प्रति एकड़ के रेट पर बेचा गया, जबकि उस समय जमीन का सरकारी रेट 50 लाख रुपए प्रति एकड़ था।

3. बेटे-बेटियों ने भी डुबाया
बतौर सीएम मोदी के कार्यकाल से आनंदीबेन के कार्यकाल की तुलना करें, तो इस दौरान आनंदीबेन पर भाई-भतीजावाद के भी आरोप लगे। आरोप लगे कि आनंदीबेन की बेटी अनार पटेल और बेटे श्वेतांक का प्रशासन के काम में दखल रहता है।

4. पंचायत चुनावों में हार
दिसंबर 2015 में राज्य में स्थानीय निकाय के चुनावों में भाजपा को भारी नुकसान हुआ और सूबे से जनाधार खो रही कांग्रेस को फायदा हुआ। नगर निगम चुनावों में हालांकि भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा और नगरपालिका के 56 सीटों में से 40 पर पार्टी को जीत हासिल हुई लेकिन जिला पंचायत चुनाव की 31 सीटों में से कांग्रेस ने अप्रत्याशित 21 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि भाजपा को सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा।

5. उना विवाद
गुजरात समेत भाजपा शासित कई राज्यों में गौरक्षा के नाम पर अत्याचार की घटनाएं हाल में सामने आई हैं लेकिन राज्य में उना में दलितों की पिटाई के मामले ने खासा तूल पकड़ लिया। इन घटनाओं से विपक्षी कांग्रेस को भाजपा पर हमला करने का मौका तो मिला ही, दिल्ली में सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी ने भी मोदी पर निशाना साधने का मौका हाथ से जाने नहीं दिया। यूपी की पूर्व सीएम मायावती सहित तमाम दलित संगठन भी इस घटना के विरोध में उतर पड़े। यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में पार्टी को आशंका है कि ऐसी घटनाओं से दलित वोट बैंक खिसक सकता है।

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