इच्छामृत्यु मांगने वाली अनामिका कोर्ट के फैसले से खुश

Friday, Mar 09, 2018 - 02:11 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने आज इच्छा मृत्यु पर अहम फैसला सुनात हुए कहा कि सम्मान के साथ मरना हर इंसान का हक है। मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कुछ दिशा-निर्देशों के साथ इसकी इजाजत दी जा सकती है। वहीं कोर्ट के इस फैसले से मुंबई के चरनी रोड निवासी एक बुजुर्ग दंपति खुश नहीं है। इच्छा मृत्यु की मांग करने वाले बुजुर्ग दंपत्ति ने कहा कि 75 साल की आयु से ऊपर वाले लोगों को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वे इच्छा मृत्यु ले सकें। उन्होंने कहा कि कई ऐसे लोग है जो इस उम्र में इच्छा मृत्यु चाहते हैं और इसकी लिस्ट डॉक्टरों और पुलिस के पास मौजूद होगी। उन्होंने कहा कि सरकार को इन मामलों में एक नीति के आधार पर काम करना चाहिए। वहीं साल 2017 में अनामिका मिश्रा ने इच्छा मृत्यु के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द्र को खून से खत लिखा था। आज कोर्ट का फैसला आने के बाद अनामिका ने कहा कि इससे एक बार फिर से नई उम्मीद मिली है कि उन्हें भी इच्छा मृत्यु की इजाजत मिल सकती है। अनामिका ने कोर्ट के फैसले की सराहना की है।

जानिए कौन है अनामिका
कानपुर की रहने वाली अनामिका और उसकी मां मस्कुलर डिस्ट्रॉफी घातक बीमारी से ग्रसित हैं। अनामिका ने खून से रामनाथ कोविंद को खत लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी। मां-बेटी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा था कि या तो उनका इलाज कराया जाए या फिर इच्छा मृत्यु दी जाए। उसके पिता की भी इसी बीमारी से मौत हो चुकी है। अनामिका ने इससे पहले प्रधाममंत्री नरेंद्र मोदी को भी खत लिखा था जिसके बाद उन्हेें 50 हजार की वित्तीय सहायता दी गई थी। हालांकि अनामिका का कहना था कि उसे जॉब दी जाए। साथ ही उसने इलेक्ट्रानिक बेड, इलेक्ट्रानिक व्हील चेयर की भी मांग की थी। अनामिका ने पिछले 5 साल से बाहर की दुनिया नहीं देखी है।

बुजुर्ग दंपति ने भी मांगी इच्छामृत्यु
मुंबई के बुजुर्ग दंपति ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिख कर इच्छामृत्यु की मांग की थी। 86 वर्षीय नारायण लवाते जो 1989 में ही राज्य परिवहन निगम की सेवा से रिटायर हो चुके हैं, ने अपने खत में कहा था कि हम लोग निःसंतान हैं, किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं हैं। लेकिन हमारे जीने का कोई मतलब नहीं है। भविष्य में हो सकता है कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या उन्हें हो जाए तो कौन उनकी देखभाल करेगा। दूसरों के लिए मुश्किलें पैदा करने से बेहतर है कि हम मर जाएं।

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