राम मंदिर: आस्था, आत्मगौरव और पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत की सांस्कृतिक पहचान की अद्भुत कहानी

punjabkesari.in Friday, Jun 06, 2025 - 07:09 PM (IST)

नेशनल डेस्क : अयोध्या की हवा इन दिनों कुछ खास है। चंदन और गुलाब जल की खुशबू के साथ माहौल में एक खास उत्सुकता है, जैसे पूरी नगरी कुछ महान घटित होने की प्रतीक्षा कर रही हो। गुरुवार को राम मंदिर के पहले तल पर राम दरबार की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही मंदिर परिसर में छह अन्य देवालयों में भी पूजन और प्रतिष्ठा की रस्में पूरी हुईं। यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि भारत की आत्मा और उसकी आधुनिक आकांक्षाओं के बीच एक नया सेतु बनते हुए देखा गया।

सदियों की प्रतीक्षा का प्रतीक

राम मंदिर कोई सामान्य इमारत नहीं है। यह उन असंख्य पीढ़ियों की प्रतीक्षा, तपस्या और बलिदान का प्रतीक है जिन्होंने प्रभु श्रीराम के मंदिर के लिए वर्षों तक प्रार्थनाएं कीं। जहां कभी विवादों और संघर्षों का केंद्र रहा यह स्थान, आज वहां भव्य और शांतिपूर्ण रूप से खड़ा है एक भव्य मंदिर, रेत पत्थर और संगमरमर से निर्मित, जिसकी सुनहरी कलशें आकाश को चीरती हुई प्रतीत होती हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका निर्माण कार्य है जो असाधारण गति से पूरा हुआ। 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने के बाद, महज पांच वर्षों में यह भव्य निर्माण लगभग पूरा हो गया। यह भारत की एकजुटता और सामूहिक इच्छाशक्ति का जीवंत उदाहरण है।

PunjabKesari

प्रधानमंत्री मोदी की निर्णायक भूमिका

इस तेज़ गति से निर्माण का श्रेय काफी हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उन्होंने इसे सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि राष्ट्र के एक व्रत की तरह देखा। उन्होंने इस कार्य की निगरानी के लिए अपने पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का प्रमुख नियुक्त किया, जो अपनी कार्यकुशलता और नीतिगत स्पष्टता के लिए जाने जाते हैं। देशभर से आए शिल्पकारों ने परंपरागत तकनीकों से मंदिर निर्माण में भाग लिया। प्रधानमंत्री ने फंडिंग से लेकर प्रशासनिक अड़चनों को दूर करने तक हर पहलू पर कड़ी नजर रखी। उन्होंने यह संदेश दिया कि यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि भारत की प्रतिष्ठा का सवाल है और इसमें कोई ढिलाई नहीं होगी।

भारत की सांस्कृतिक चेतना का प्रतिबिंब

राम मंदिर भारत की बदलती सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बन गया है। लंबे समय तक भारत के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने धार्मिक आस्था को संकीर्णता और पिछड़ेपन से जोड़कर देखा, पर राम मंदिर उनके इस भ्रम को तोड़ता है। यह मंदिर आधुनिकता को नकारता नहीं, बल्कि सनातन परंपरा के साथ संतुलन बनाकर एक नई सांस्कृतिक पहचान गढ़ता है।

PunjabKesari

एक मंदिर, अनेक देवी-देवताओं का घर

राम मंदिर परिसर में केवल श्रीराम नहीं हैं, यहां शिव, हनुमान, गणपति, सूर्य देव, माता भगवती, अन्नपूर्णा और शेषावतार जैसे अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। यह सनातन धर्म की विविधता और समावेशिता का जीवंत उदाहरण है। यहां हर जाति, हर समुदाय और हर विचारधारा के लोगों के लिए स्थान है।

धर्म और राजनीति: नया राजनीतिक हिंदू जागरूक हुआ है

राम मंदिर आंदोलन हमेशा से केवल धार्मिक नहीं था— यह बहुत ही राजनीतिक था। यह मंदिर भारत की सभ्यता की उस जिजीविषा का प्रतीक है जो अन्याय के विरुद्ध सैकड़ों वर्षों तक लड़ती रही। बाबर द्वारा मंदिर का ध्वंस एक स्पष्ट अधर्म था, और उसका पुनर्निर्माण धर्म की पुनर्स्थापना है। राम मंदिर का निर्माण 'राजनैतिक हिंदू' की जागरूकता का प्रतीक बन चुका है, एक ऐसा हिंदू जो अब खुद को वोट बैंक की राजनीति में नजरअंदाज नहीं होने देना चाहता। जो अब भारत की प्राचीन संस्कृति पर गर्व करता है, और पश्चिमी 'धर्म-निरपेक्षता' की अवधारणाओं से अंधे रूप से प्रभावित नहीं है।

PunjabKesari

मोदी की विरासत और भारत का आत्मगौरव

राम मंदिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक बन चुका है। उन्होंने इस ऐतिहासिक पीड़ा के स्थल को एकता और गरिमा का प्रतीक बना दिया। उनका नेतृत्व दिखाता है कि भारत अपनी परंपराओं का सम्मान करते हुए आधुनिकता की ओर भी आत्मविश्वास से बढ़ सकता है।

सामूहिक प्रयास की मिसाल

इस मंदिर का निर्माण किसी एक व्यक्ति या सरकार का काम नहीं था। इसमें कारीगरों, इंजीनियरों, स्थानीय व्यापारियों, किसानों और देश-दुनिया के करोड़ों लोगों का योगदान है। लाखों भक्तों के दान से यह भव्य मंदिर खड़ा हुआ है। यह एक ऐसी संरचना है जो एक साथ अतीत और वर्तमान की गाथा कहती है।

राम मंदिर अब केवल अयोध्या में नहीं है, वह भारत के हर दिल में धड़क रहा है, आस्था, आत्मगौरव और एक साझा भविष्य के संकल्प के रूप में।

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Mehak

Related News