शाह की चालों से PM मोदी को मात देने की तैयारी में राहुल गांधी!
Monday, Jun 11, 2018 - 02:54 PM (IST)
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): लोहे को लोहा काटता है। यह कहावत पुरानी है लेकिन राहुल गांधी को शायद अब समझ आई है। खैर एक और भी कहावत है देर आए दुरुस्त आए। राहुल ने इस कहावत का भी अनुसरण करना शुरू कर दिया है। राहुल गांधी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो और मराठा राजनीति के क्षत्रप शरद पवार से मिले हैं। दोनों में करीब पौने घंटे मुलाकात हुई है और भविष्य के प्रस्तावित महागठबंधन की रूपरेखा को लेकर दोनों ने अपने विचार साझा किए हैं। दिलचस्प ढंग से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चार दिन पहले ही मुंबई जाकर शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से मिले थे। उनकी यह मुलाकात बीजेपी के 'सम्पर्क से समर्थन' अभियान का हिस्सा थी।
हालांकि शाह को उद्धव का समर्थन नहीं मिला था और सेना ने अगले चुनाव में बीजेपी से अलग होने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। ऐसे में जब महाराष्ट्र चुनाव के मुहाने पर खड़ा है तो राहुल गांधी की शरद पवार से मुलाकात के गहरे सियासी अर्थ निकलते हैं। कभी कांग्रेस का हिस्सा रहे, और बाद में कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाने वाले शरद पवार निश्चित रूप से अब सत्ता पाने को लालायित हैं। बीच में उन्होंने बीजेपी को रिझाने की कोशिश भी की थी लेकिन काम नहीं बना। ऐसे में खास तौर पर विधानसभा चुनाव में शरद पवार बीजेपी-सेना सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पर चढ़कर सिंहासन चाहते हैं। लेकिन फिलवक्त उनकी पार्टी की जो स्थिति है उसके चलते बिना किसी मांझी के उनकी नैय्या पार लगने का कोई स्कोप नहीं है। ऐसे में कांग्रेस उसके लिए एक बेहतर विकल्प है। महाराष्ट्र विधानसभा में पिछले चुनाव में 21 सीटों का नुक्सान झेलने के बाद एनसीपी 41 और कांग्रेस 40 सीटों का नुकसान झेलकर 42 सीट पर पहुंच गई हैं। ऐसे में दोनों का मेल एकदूसरे के लिए संबल बन सकता है और कोई नया गुल भी खिला सकता है।
खासकर तब जब शिवसेना और बीजेपी अकेले-अकेले लड़ें। यही वजह है कि जब राहुल ने मिलने की इच्छा जताई तो शरद पवार विशेष रूप से मुंबई से दिल्ली आकर जनपथ के पथ पर दौड़े। यह एक बड़ा अंतर है। अमित शाह खुद मुंबई गए लेकिन शिवसेना ने घास नहीं डाली। दूसरी तरफ राहुल ने इच्छा जताई और पवार दौड़े चले आये। इसे भी संकेत समझिए। सियासी सूत्रों के मुताबिक पवार ने राहुल को फिलवक्त पूरा ध्यान एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर केंद्रित करने को कहा है। पवार के अनुसार यहां पर बीजेपी का विजय रथ अगर रोक लिया गया तो उसका लाभ सीधे लोकसभा चुनाव में मिलेगा। यानी पवार ने राहुल को सियासी मन्त्र भी दिया है।
राहुल गांधी के मीडिया विंग की मानें तो यह महज शुरुआत है। राहुल निकट भविष्य में लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, चंद्र बाबू नायडू और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह बसपा प्रमुख मायावती से भी मिलेंगे। इसका शेड्यूल लगभग फाइनल हो रहा है। यानी राहुल ने अमित शाह की ही तरह सम्पर्क से समर्थन साधने की नीति अपना ली है और उसे बिना किसी तामझाम के क्रियान्वित करने में भी लगे हुए हैं। दिलचस्प ढंग से इससे पहले गुजरात के चुनाव में राहुल ने मंदिर दर्शन शुरू किया था। तब जाहिरा तौर पर बीजेपी कुलबुलाई थी क्योंकि मंदिर की सियासत को वह अपना पेटेंट मानकर चल रही थी। गुजरात में मंदिर पॉलिटिक्स के बूते बड़ी सेंध लगाने के बावजूत राहुल गांधी सत्ता से चूक गए थे ,लेकिन कर्नाटक में उन्होंने सुधार किया और जीडीएस के साथ मिलकर कमल को खिलने से पहले मुरझाने पर मजबूर कर दिया। यानी साफ है कि राहुल ने बीजेपी को उसी की रणनीति से मात देने का चक्रव्यूह रचा है। देखना दिलचस्प होगा की कहाँ और कितनी सफलता उनको मिलती है।