नजरिया: भारत की देश-विदेश नीति के लिए अगले दो दिन अहम

Wednesday, Jun 26, 2019 - 03:33 PM (IST)

संजीव शर्मा (नेशनल डेस्क ): यह महज संयोग हो सकता है। आज गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर के दौरे पर हैं और  अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पंपियो  दिल्ली के दौरे पर।  लेकिन यह दोनों दौरे भारत की देश और विदेश नीति के लिहाज़ से बहुत अहम हैं।  कश्मीर पर नई भूमिका में अमित शाह  और  दोबारा सत्तासीन होने के बाद  मोदी सरकार का क्या रुख है यह  तय होना है।  उधर जिस ट्रम्प प्रशासन ने चुनावों में मीडिया रिपोट्र्स से उत्साहित होकर  मोदी को झटका दिया था भारत पर ट्रेड अटैक करके, उसका रुख अब क्या है यह भी अगले दो दिन में तय होगा। दोनों ही मामलों में  समानता यह है कि रिश्ते नाजुक मोड़ पर हैं। और वो समय लगभग आ गया है जब इन रिश्तों को लेकर कोई  निर्णायक फैसला हो सकता है या फिर यूं कहें कि  कर लिया जाना चाहिए।  ऐसे में में भारत -अमरीका रिश्तों और भारत -कश्मीर रिश्तों को लेकर यह दौरे अहम् हो सकते हैं।  

कश्मीर पर क्या होगी शाह नीति 
हालांंकि यह अटल सत्य है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसे लेकर न कोई दुविधा कभी रही है न रहेगी।  लेकिन अमित शाह  का गृहमंत्री बनने के बाद पहला दौरा यह तय करेगा कि   यह अंग  एक नासूर के रूप में आगे भी रिसता  रहेगा या फिर इसका  कोई इलाज  होगा? कोई दो राय नहीं कि  पिछले मोदी काल में कश्मीर में आतंक पर सख्ती से लगाम कसी गयी थी। लेकिन इसके बावजूद समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। दक्षिणी कश्मीर में अभी भी हिंसा और आतंकवादी वारदातें  बदस्तूर  हो रही हैं।  ऐसे में नई सरकार  के गृहमंत्री अमित शाह का पूरा फोकस भी कश्मीर में शांति पर ही होगा और दुनिया का फोकस उनकी हर  नीति और  कदम पर। अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष  के रूप में कश्मीर पर जो राय रखते थे उससे पूरा देश वाकिफ है। प्रखर राष्ट्रवाद के उनके तत्कालीन विचार और सिद्धांत अब गृहमंत्री के रूप में लागू होंगे यह कोई जरूरी नहीं है। 


सरकारें और पार्टियां अलग-अलग  ढंग से  काम करती हैं। चूंकि सरकार देश की होती है लिहाज़ा अमित शाह भी अब देश के गृहमंत्री हैं।  ऐसे में  उनकी बीजेपी अध्यक्ष वाली सख्त राष्ट्रवेदी सोच कश्मीर मसला सुलझा लेगी इसपर अब कई किन्तु परन्तु हैं। अब उनके सामने सभी वर्गों को लेकर चलने और सर्वमान्य हल निकालने की चुनौती है।  उनके दौरे से पहले महबूबा मुफ़्ती और फारूक अब्दुल्ला ने सुर में सुर मिलाते हुए अलगाववादियों से बातचीत की पैरवी की है। कांग्रेस बीजेपी के विचारों से  पहले ही इत्तेफाक नहीं रखती। राजयपाल सत्यपाल मालिक ने दो दिन पहले ही बातचीत के संकेत दिए हैं।  क्या वे संकेत अमित शाह के यहां  से आए थे ? यह भी देखना होगा।  देखना यह भी होगा कि अगर अब बातचीत  की पहल होती है तो उसपर हुर्रियत और अलगाववादियों का क्या रुख रहता है  क्योंकि  केंद्रीय दल से मिलने से इंकार कर दिया था।  लेकिन इस बीच झेलम में काफी पानी बह चुका  है।  केंद्र ने अलगाववादियों पर शिकंजा कसा है। आतंक के लिए पैसा मुहैया कराने वालों को कसा गया है।  इस लिहाज़ से शाह के दौरे से कई चीज़ें तय होनी हैं। पत्थरबाजों और  अलगाववादियों पर शिकंजा कसेगा या   ढीला होगा यह अगले दो दिन में तय हो जाएगा।  


क्या बनी रहेगी  भारत-अमरीका दोस्ती?
अगले दो दिन में यह भी तय हो जायेगा कि ट्रम्प और मोदी  प्रशासन के रिश्ते  क्या दिशा लेंगे। ट्रम्प  ने अपनी  तरफ से भारत को पिछले दो माह में कई बड़े झटके दिए हैं। ट्रम्प प्रशासन चाहता है कि  भारत उसकी शर्तों के अनुसार चले।  जाहिर है जब ऐसा नहीं हुआ तो  उसने भारत  को अपनी विशेष तरजीह सूची से बाहर कर दिया है। इस सूची से हटाए जाने के बाद भारत के लिए अमरीका से आने वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे। अमरीका ने पहले भारत को ईरान से तेल आयात  के मामले में छूट दे रखी थी जिसे अब  समाप्त कर दिया गया है।हालांकि भारत ने इसकी परवाह किये बगैर आयात  जारी रखा है।  भारत ने अमरीका जाने वाले सामान पर  भी निर्यात शुल्क बढ़ाया है।  इन सब चीज़ों से रिश्तों में खिंचाव और तनातनी बढ़ी है। तो क्या भारत पंपियो के साथ कोई नयी शुरुआत करेगा ?? क्या ट्रैम्प भारत की ताकत  को पहचान कदम पीछे हटाएंगे?यह भी दो दिन में तय हो जाएगा।  

Anil dev

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