मोदी के मास्टरमाइंड पर भारी पड़ा सोनिया के मास्टरमाइंड का 'हिडिन स्ट्रोक'

Wednesday, Aug 09, 2017 - 04:41 PM (IST)

नई दिल्लीः करीब 10 घंटे का हाईवोल्टेज ड्रामा और आधे घंटे के फैसला। हम बात कर रहे है मंगलवार को हुए गुजरात राज्यसभा सीटों के चुनावों की। जिसे अहमद पटेल ने जीत कर एक बार फिर साबित कर दिया कि वे इस खेल के पुराने माहिर खिलाड़ी हैं। दरअसल ये लड़ाई राज्यसभा सीटों की थी ही नहीं थी। ये जंग तो देश के दो बड़े दलों के मास्टरमाइंडों के बीच की थी। एक ओर थे बीजेपी के अजय योद्धा अमित शाह तो दूसरी ओर कांग्रेस के आला दर्जे के सिपह सलाहकार अहमद पटेल थे। अब उनकी जीत के बाद राजनीतिक गलियारोंं में चर्चा आम हो चुकी है कि क्या इसी मास्टरमाइंड के कहने पर ही दो विधायकों को अपने वोट कराए थे।

शाह की सह को मिली पेटल की करारी मात
बीजेपी की नजर लंबे समय से कांग्रेस से नाराज चल रहे शंकर सिंह वाघेला पर पहले से ही थी। राज्यसभा चुनावों की अधिसूचना के बाद बीजेपी ने दो सीटों की जगह तीसरी पर अपना उम्मीदवार उतारने का मन बना लिया था इसलिए बीजेपी ने बलवंत सिंह राजपूत को नाम सामने किया। मजेदार बात यह थी कि बलवंत सिंह राजपूत को कभी अहमद पटेल ने ही गुजरात कांग्रेस में आगे बढ़ाया था और अब वे उनके सामने ही चुनाव लड़ रहे थे। अपने जन्मदिन के दिन वाघेला के पार्टी छोड़ने के ऐलाने के बाद विधायकों के ताबड़तोड़ इस्तीफों से कांग्रेस खेमा क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं को भाप चुका था।

क्रॉस वोटिंग संयोग नहीं, था रणनीति का हिस्सा
अहमद पटेल को पांचवी बार राज्यसभा में जाने के लिए सिर्फ 45 वोटों की जरूरत थी। इस्तीफों से घबराई कांग्रेस ने अपने विधायकों को सबसे पहले बेंगलुरू भेज दिया। इधर राज्यसभा, लोकसभा से लेकर चुनाव आयोग और सड़कों तक उसने बीजेपी पर 'हॉर्स ट्रेडिंग' का आरोप लगाना शुरू कर दिया। एनसीपी और जेडीयू के विधायकों के भरोसे पटले चुनाव जीते का रिस्क नहीं ले सकते थे। सूत्रों के अनुसार, इसलिए अहमद पटेल ने विधायक भोला भाई गोहिल व राघव जी को अपना वैलेट अवैध कराने को कहा। एेसे में दोनों विधायकों का भाजपा को वोट देने से पहले शक्तिसिंह गोहिल को बैलेट पेपर दिखाना और कुछ सेकंड के लिे यही पेपर अमित शाह को दिखाना को संयोग नहीं था।
ताकि उनका वोट रद्द कराया जा सके। 

जेडीयू-एनसीपी के विधायक अपनी ओर किए
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के एक विधायक ने नेतृत्व द्वारा भाजपा को वोट करने का निर्देश ठुकरा कर अहमद पटेल के प्रति अपना समर्पण दिखाया। इसी तरह एनसीपी के दो में से एक विधायक ने उन्हें वोट दिया। इस पूरे खेल में 176 विधायकों ने वोट किया था, जिसमें अमित शाह व स्मृति ईरानी को 46-46 वोट मिले, जबकि अहमद पटेल को 44 वोट मिले। वहीं, भाजपा के तीसरे उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत को 38 वोट मिले। 

इसलिए कहते हैं गुजरात का चाण्क्य
अहमद पटेल ऐसी मुश्किल लड़ाई पहली बार नहीं जीते हैं। उन्होंने 28 साल की उम्र में 1977 में भरूच से लोकसभा का चुनाव तब जीत लिया था, जब देश भर में इमरजेंसी के कारण इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर चल रही थी। इसके बाद भी उन्होंने 1980 व 1984 में यहां से जीत हासिल की लेकिन 1980 के दशक के अंत से गुजरात में बही हिंदुत्व की लहर के कारण भाजपा मजबूत स्थिति में आ गई, ऐसे में पटेल ने पाया कि उनके लिए सीधे चुनाव जीतना मुश्किल है।  वह वर्ष 1990 में लोकसभा चुनाव हार गए थे।  उन्होंने वर्ष 1993 में दिल्ली आने के लिए राज्यसभा का मार्ग चुना। उन्हें 1999, 2005 और 2011 में भी उच्च सदन में पुन: चुना गया। इसके बाद के दिनों में राज्यसभा से संसद में प्रवेश करने लगे और कल की जीत के बाद उच्च सदन में उनकी पांचवी पारी होगी।

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