अमरीकी रिफाइनरियां भारत को बेच रहीं अपने तेल का कचरा

Friday, Dec 01, 2017 - 11:43 PM (IST)

नई दिल्लीः अमेरिका की तेल शोधन कंपनियां अपने देश में जिस गंदे तेल, अपशिष्ट उत्पाद को बेच पाने में असफल रहती हैं उसे बड़े पैमाने पर भारत मेें निर्यात कर रही हैं। पता चला है कि अमेरिकी कंपनियां उनके देश में खपत नहीं होने वाले उत्पादों को खपाने के लिए उन देशों का रुख कर रही हैं जहां ऊर्जा की भारी मांग है।

भारत उनके लिए बड़े आयातक के तौर पर उभरा है। एजेंसी की जांच में पता चला है कि पिछले साल दुनियाभर में भेजे गए अमेरिकी पेटकोक का एक चौथाई हिस्सा भारत को ही बेचा गया। 2016 में अमेरिका ने भारत को 80 लाख मीट्रिक टन से भी ज्यादा पेटकोक भारत भेजा। यह मात्रा 2010 की तुलना में 20 गुना ज्यादा है। यह मात्रा इतनी ज्यादा है कि न्यू यॉर्क शहर में स्थित एंपायर स्टेट बिल्डिंग को 8 बार भरा जा सकता है। 

पेट्रोलियम कोक काफी सस्ता होता है और कोयले से ज्यादा तेज जलता है लेकिन धरती को गर्म करने वाला कार्बन भी इसमें काफी ज्यादा होता है। इतना ही नहीं, फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले सल्फर की मात्रा भी काफी ज्यादा पाई जाती है। यह पेट्रोलियम कोक कनाडा के टार सैंड्स क्रूड और दूसरे हैवी ऑइल्स को रिफाइन करने के बाद बैरल में नीचे रह जाता है। 

नई दिल्ली के नजदीक एक प्रयोगशाला में हुए परीक्षण में पता चला है कि अमेरिका से आयातित इस ईंधन में कोयले के लिए तय सीमा से भी 17 गुना अधिक सल्फर मौजूद रहता है। देश के पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण (ईपीसीए) की सूचना के मुताबिक पेट्रोलियम कोक में डीजल से 1380 गुना अधिक सल्फर होता है। यह गंदा तेल भारत में कई समस्याएं पैदा कर रहा है।

उद्योग जगत से जुड़े लोगों के मुताबिक पेट्रोलियम कोक काफी लंबे अर्से से एक महत्वपूर्ण ईंधन के रूप में जाना जाता रहा है। इसका इस्तेमाल अमूमन अपशिष्ट उत्पाद को रिसाइकल करने के लिए होता है। जबकि सेहत और पर्यावरण के लिहाज से यह काफी खतरनाक है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और फेफड़े व सांस संबंधी रोग बड़ी तेजी से बढ़ते हैं। वहीं, दिल्ली स्थित सीएसई  की प्रमुख सुनीता नारायण ने कहा, 'हमें दुनिया का डस्टबिन नहीं बनना चाहिए।' 
 

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