इलाज का बोझ उठाना गरीबों के लिए नहीं आसान

Friday, Nov 17, 2017 - 11:07 AM (IST)

नई दिल्ली: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार के लिए आने वाले मरीजों की राह आसान नहीं है। एक गरीब मरीज को भी यहां इलाज के लिए न्यूनतम 4 हजार से ज्यादा का खर्च करना पड़ता है। वहीं अगर मरीज दिल्ली का निवासी है तो उसे 1900 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। इसमें मरीज के अस्पताल आने, रुकने, खाने और वापस घर जाने के अलावा तिमारदार का खर्चा भी शामिल है। नतीजतन एम्स में होने वाले 500 रुपये तक के मेडिकल टेस्ट मरीजों के लिए शीघ्र फ्री करने की सलाह दी गई है। यह खुलासा खुद एम्स ने ही अपनी स्टडी के हवाले से किया है। संस्थान में इलाज और जांच शुल्क की समीक्षा करने वाली कमेटी ने यह अध्ययन किया है।

ऐसे किया अध्ययन 
स्टडी में 456 मरीजों से बातचीत की गई है। इसमें दिल्ली के 222 और बाहरी राज्यों से एम्स आए 234 मरीजों से बातचीत की गई। बातचीत के आधार पर इस निष्कर्ष तक पहुंचा गया।  कमेटी के प्रमुख और गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अनूप सराया ने बताया कि एम्स में इलाज और 500 रुपए तक होने वाली जांच शुल्क की समीक्षा के लिए बीते दिनों कमेटी बनाई गई थी। मरीजों और उनके परिजनों से बातचीत करके कमेटी ने मौजूदा रिपोर्ट तैयार की है। याद रहे कि पहले भी एक स्टडी में गरीब मरीजों के इलाज में पडऩे वाले बोझ का उल्लेख किया गया था। 

इससे पहले किए गए अध्ययन में डॉ. सराया के नेतृत्व में बल्लभगढ़ स्थित एम्स के सेंटर से भी मरीजों की बातचीत थी। इसमें एम्स प्रबंधन को प्राइवेट वार्ड का शुल्क बढ़ाने का मशविरा दिया गया था। माना गया था कि शुल्क बढऩे से होने वाले वार्षिक आय से गरीबों को निशुल्क उपचार मुहैया करवाया जा सकेगा। डॉ. अनूप सराया ने बताया कि इलाज के खर्च के कारण मरीजों के परिवार को खानपान, बच्चों की पढ़ाई व स्वास्थ्य के खर्च में कटौती कर अपनी जरूरतों से समझौता करना पड़ता है।

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