'रिजल्ट के बाद फिर मिलेंगे और जश्न मनाएंगे', Vijay Rupani ने विदेश रवाना होने से पहले बोले थे यह आखिरी बोल
punjabkesari.in Friday, Jun 13, 2025 - 05:13 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 9 जून की दोपहर, लुधियाना के हलका पश्चिम में जब भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब प्रभारी विजय रूपाणी कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंचे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह मुलाकात आखिरी होगी। चुनावी जोश से लबरेज, हर कार्यकर्ता से हाथ मिलाते हुए उन्होंने जाते-जाते कहा था, “23 जून को रिज़ल्ट आएगा, फिर मिलते हैं और जीत का जश्न मनाते हैं।” मगर किस्मत को शायद कुछ और मंज़ूर था। 13 जून को अहमदाबाद विमान हादसे में रूपाणी की मृत्यु की खबर ने न सिर्फ गुजरात बल्कि पूरे भाजपा संगठन को शोक में डुबो दिया।
पारिवारिक यात्रा की तैयारी थी, मगर लौटे नहीं
विजय रूपाणी ने जाते-जाते कहा था कि वह पारिवारिक कार्य से विदेश जा रहे हैं, और रिज़ल्ट के बाद पंजाब लौटेंगे। भाजपा जिला अध्यक्ष रजनीश धीमान भावुक होकर कहते हैं, “हमें अंदेशा होता तो हम उन्हें गुजरात जाने ही नहीं देते।" कार्यकर्ताओं के लिए यह केवल एक नेता की नहीं, बल्कि अपने मार्गदर्शक की अंतिम यात्रा थी।
उपचुनाव में उनकी संजीदगी आखिरी पल तक
पंजाब के हलका पश्चिम उपचुनाव को विजय रूपाणी ने बेहद गंभीरता से लिया था। नॉमिनेशन के बाद से लेकर प्रचार अभियान तक वे खुद हर गतिविधि पर नज़र रख रहे थे। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार जीवन गुप्ता को चुनाव जीतने के मंत्र दिए, और कार्यकर्ताओं को एकजुट रहने का संदेश दिया। दफ्तर उद्घाटन से लेकर व्यापारियों से मुलाकात तक उन्होंने संगठन को सक्रिय बनाए रखा।
राजनीतिक सफर: ज़मीन से शिखर तक
➤ उम्र: 68 वर्ष
➤ राज्यसभा सदस्य: 2006 से 2012
➤ गुजरात के मुख्यमंत्री:
➤ पहला कार्यकाल: अगस्त 2016 – दिसंबर 2017
➤ दूसरा कार्यकाल: दिसंबर 2017 – सितंबर 2021
➤ मुख्यमंत्री कार्यकाल: कुल 5 वर्ष और 37 दिन
➤ पंजाब और चंडीगढ़ भाजपा प्रभारी: सितंबर 2022 से
एक अधूरी योजना, एक अधूरा वादा
वह लौटने वाले थे, परिणाम का जश्न मनाने, पर वह जश्न अब श्रद्धांजलि में बदल गया है। भाजपा के हर कार्यकर्ता की आंखें नम हैं, और दिल में बस एक सवाल—“अगर पता होता, तो क्या उन्हें रोक सकते?” विजय रूपाणी का जाना सिर्फ एक राजनीतिक नुकसान नहीं, बल्कि संगठन के एक स्तंभ के ढहने जैसा है।
श्रद्धांजलि
विजय रूपाणी – एक सच्चे जनसेवक, जिनकी आखिरी बातों में भी संगठन के लिए विज़न और उम्मीद थी।
"23 जून को मिलेंगे" अब एक वाक्य नहीं, एक स्थायी स्मृति बन गया है।