कारगिल विजय दिवसः घुटनों तक उड़ गया था पैर, कपड़े से बांधा और जीत तक लड़े युद्ध

Tuesday, Jul 26, 2016 - 01:42 PM (IST)

सीकर: 26 जुलाई को कारगिल में भारत ने पाकिस्तान को खदेड़ कर जंग जीती थी। इस जीत को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल की जंग 1999 में हुई थी। कारगिल जंग को 17 साल बीत चुके हैं लेकिन इस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की दिलेरी की दास्‍तां आज भी देशवासियों की जुबान पर है। पाकिस्‍तानी सैनिक मई 1999 में कारगिल सैक्‍टर में घुसपैठियों की शक्‍ल में घुसे और नियंत्रण रेखा पार कर हमारी कई चोटियों पर कब्‍जा कर लिया। दुश्‍मन की इस नापाक हरकत का जवाब देने के लिए आर्मी ने 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया, जिसमें 30,000 भारतीय सैनिक शामिल थे।

एयरफोर्स ने आर्मी को सपोर्ट करने के लिए 26 मई को 'ऑपरेशन सफेद सागर' शुरू किया, जबकि नौसेना ने कराची तक पहुंचने वाले समुद्री मार्ग से सप्लाई रोकने के लिए अपने पूर्वी इलाकों के जहाजी बेड़े को अरब सागर में ला खड़ा किया। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने करगिल को पाकिस्‍तानी सैनिकों के कब्‍जे से पूरी तरह मुक्‍त करा लिया। इसके बाद से हर साल 26 जुलाई को 'करगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

जवानों के जज्बे की कहानी कर देगी रोंगटे खड़े
राजस्थान में सीकर के राजेंद्र सिंह ने कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी दुश्मनों को करारा जवाब दिया था। जिस समय यह युद्ध हुआ वे दोहरी चिंता में थे। एक तरफ घर पर घर में प्रेग्नेंट वाइफ और बॉर्डर पर सामने दुश्मन। ये समय उनके लिए बड़ा ही मुश्किलभरा था लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर उन्हें कुछ हुआ तो परिवार तो संभल जाएगा लेकिन अगर दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब न दिया तो देश के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। बस इसी जज्बे के साथ वे बॉर्डर पर डटे रहे।

राजेंद्र बताते है 12 जून 1999 को वे कारगिल की तोलोलिंग की पहाड़ी पर तैनात थे। वे इस दिन को कभी नहीं भूल सकते। वे बताते हैं कि मोर्चे पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए उन्हें एक पैर गंवाना पड़ा। उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और दुश्मनों से लड़ते रहे। राजेन्द्र के मुताबिक ताेलोलिंग हिल पर कब्जा पाने में भारतीय सेना सफल नहीं हो रही थी। आखिर तोलोलिंग मोर्चा फतह के लिए राजपूताना राइफल्स को जिम्मेदारी मिली और 12 जून देर रात को इस टुकड़ी ने जीत की गाथा लिखी। इसमें कैप्टेन सहित कई जवान शहीद हो गए। वहीं कई जवान घायल भी हुए। उस समय राजेंद्र के पिता सुरजन सिंह देहरादून में थे।
 

राजेंद्र का दायां पांव बिछाई गई माइन पर पड़ा तो उनका पैर घुटनों तक उड़ गया लेकिन उन्होंने कपड़े से उसे बांधा और दुश्मनों का सामना करने कि लिए आगे बढ़े। राजेंद्र का एक बेटा गजेंद्रसिंह (16) और बेटी रीतू (15) अभी पढ़ रहे हैं लेकिन वे दोनों भी पिता की तरह सेना में जाना चाहते हैं और दुश्मनों से लोहा लेना चाहते हैं।

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