कारगिल वॉर: 15 गोलियां खाकर, टूटे हाथ को बेल्ट से बांध दुश्मन के बंकर पर टूट पड़ा था ये जांबाज

punjabkesari.in Tuesday, Jul 26, 2016 - 06:10 PM (IST)

नई दिल्ली: आज पूरा देश विजय दिवस मना रहा है। इस मौके पर अलग-अलग शहरों में खास आयोजन किए गए हैं। वहीं द्रास के वॉर मैमोरियल समेत कई जगहों पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर शहीद जवानों को नमन किया है। प्रधानमंत्री ने भी इस पर ट्वीट किया। इस मौके पर देश के पूर्व थलसेना प्रमुख और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री जनरल वी.के. सिंह ने एक ऐसी फेसबुक पोस्ट लिखी है जिसे पढ़कर हर देशवासी का सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा और दिल सम्मान से भर उठेगा। आंखें छलक पड़ेंगी और मन में आएगा कि अभी सीमा पर जाएं और दुश्मनों की धज्जियां उड़ा दें। कुछ ऐसी ही वीरता दिखाई थी।

यादव ने युद्ध में 15 गोलियां खाकर और हाथ में फ्रैक्चर होने के बावजूद टाइगर हिल पर फतह हासिल की थी। वी.के. सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा- अटल बिहारी वाजपेयी जहां पड़ोसी मुल्क जाकर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे थे, वहीं सामने वाला एक नापाक साजिश को अंजाम दे रहा था। लोग अक्सर कहते हैं कि पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाने चाहिए। ऐसा नहीं कि हम शांति नहीं चाहते। मगर अच्छे होते हैं वो बुरे लोग, जो अच्छा होने का दिखावा नहीं करते। सर्दियों में Line of Control (LOC ) से भारत और पाकिस्तान की सेनाएं अत्यंत विषम परिस्तिथियों के कारण पीछे हट जाती हैं और सर्दियों के उपरांत पुनः अपनी पुर्वोचित स्थान पर आ जाती हैं।
 

1998 की सर्दियों में भारतीय सेना के हटने के बाद पाकिस्तानी सेना और उसके सहयोगी आतंकी भारतीय सीमाओं के अंदर की पर्वत चोटियों पर जा बैठे। उन ऊंचाईयों पर बैठने से दुश्मन को एक अजेय सुविधा प्राप्त हो गई थी। नीचे से ऊपर आक्रांताओं पर हमला करती भारतीय सेना आसानी से दुश्मन के निशाने पर आ गई थी। सेना जिन ऊंचाइयों की रक्षा करती थी, वही ऊंचाइयां उनका काल बन रहीं थीं।


3 गोलिया खाकर भी की टाइगर हिल की चढ़ाई
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना के 18 ग्रेनेडियर्स का हिस्सा थे। 'घातक' कमांडो पलटन के सदस्य ग्रेनेडियर यादव को टाइगर हिल के अत्यधिक महत्वपूर्ण तीन दुश्मन बंकरों पर कब्जा करने का दायित्व सौंपा गया। सामने के हमले विफल हो रहे थे। योजना यह थी कि 18000 फीट की ऊंचाई वाले टाइगर हिल पर उस तरफ से चढ़ाई करनी होगी जो इतनी दुर्गम हो कि दुश्मन उस तरफ से भारतीय सैनिकों के आने की कल्पना भी न कर पाए। अगर चढ़ते हुए दुश्मन की नजर पड़ी, तो निश्चित मृत्यु। अगर दुश्मन नहीं भांप पाया तो 100 फीट से ज्यादा की खड़ी चढ़ाई चढ़ने की थकान की उपेक्षा कर के गोला बारूद से लैस प्रशिक्षित आतंकियों से भरे उन बंकरों पर हमला करना था जो दूसरी तरफ से आगे बढ़ने वाले भारतीय सैनिकों को बिना कठिनाई के मार गिरा रहे थे। क्या आपके मुंह से ‘असंभव’ निकल गया? यह शब्द भारतीय सैनिकों के कान खड़े कर देता है। ऐसे शब्द उनके अहम को चुनौती देते हैं।
 

ग्रेनेडियर यादव ने स्वेच्छा से आगे बढ़ कर उत्तरदायित्व संभाला जिसमे उन्हें सबसे पहले पहाड़ पर चढ़कर अपने पीछे आती टुकड़ी के लिए रस्सियों का क्रम स्थापित करना था। 3 जुलाई 1999 की अंधेरी रात में मिशन आरंभ हुआ। कुशलता से चढ़ते हुए कमांडो टुकड़ी गंतव्य के निकट पहुंची ही थी कि दुश्मन ने मशीनगन, RPG, और ग्रेनेड से भीषण हमला बोल दिया जिसमे भारतीय टुकड़ी के अधिकांश सदस्य मारे गए या तितर-बितर हो गए, और स्वयं यादव को तीन गोलियां लगीं। मैं चाहूंगा कि कमजोर दिल वाले इसके आगे न पढ़ें। इस हमले से ग्रेनेडियर यादव पर यह असर हुआ कि वह एक घायल शेर की तरह पहाड़ी पर टूट पड़े।
 

यादव ने तीन गोलियां लगने के बावजूद खड़ी चढ़ाई के अंतिम 60 फीट अकल्पनीय गति से पार की। ऊपर पहुंचने के बाद दुश्मन की भारी गोलाबारी ने उनका स्वागत किया। अपनी दिशा में आती गोलियों को अनदेखा करके दुश्मन के पहले बंकर की तरफ यादव ने धावा बोल दिया। निश्चित मृत्यु को छकाते हुए बंकर में ग्रेनेड फेंक कर यादव ने आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया। अपने पीछे आती भारतीय टुकड़ी पर हमला करते दूसरे बंकर की तरफ ध्यान केंद्रित किया। जान की परवाह न करते हुए उसी बंकर में छलांग लगा दी जहां मशीनगन को 4 सदस्यों का आतंकी दल चला रहा था। ग्रेनेडियर यादव ने अकेले उन सबको मौत के घाट उतार दिया।

टूटे हाथ से किया दुश्मनों के बंकर को ध्वस्त
ग्रेनेडियर यादव की साथी टुकड़ी तब तक उनके पास पहुंची तो उसने पाया कि यादव का एक हाथ टूट चुका था और करीब 15 गोलियां लग चुकी थीं। ग्रेनेडियर यादव ने साथियों को तीसरे बंकर पर हमला करने के लिए ललकारा और अपनी बेल्ट से अपना टूटा हाथ बांध कर साथियों के साथ अंतिम बंकर पर धावा बोल कर विजय प्राप्त की।

विषम परिस्तिथियों में अदम्य साहस, जुझारूपन और दृढ़ संकल्प के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। घोषणा होने के बाद अधिकारियों को पता चला कि योगेंद्र शहीद नहीं हुए थे, वे जिंदा थे क्योंकि सभी को यही लगा था कि 15 गोलियों के बाद वे शहीद हो गए हैं। पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दिए जख्मों को भरने में 16 महीने का समय लगा। वे परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले सबसे यंग रिसीपिएंट हैं। विजय दिवस पर ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव जैसे महावीरों को मेरा सलाम जिन्होंने कारगिल युद्ध में भारत की विजय सुनिश्चित की।
 

बता दें कि कारगिल की जंग 1999 में हुई थी। कारगिल जंग को 17 साल बीत चुके हैं लेकिन इस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की दिलेरी की दास्‍तां आज भी देशवासियों की जुबान पर है। पाकिस्‍तानी सैनिक मई 1999 में कारगिल सैक्‍टर में घुसपैठियों की शक्‍ल में घुसे और नियंत्रण रेखा पार कर हमारी कई चोटियों पर कब्‍जा कर लिया। दुश्‍मन की इस नापाक हरकत का जवाब देने के लिए आर्मी ने 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया, जिसमें 30,000 भारतीय सैनिक शामिल थे।


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