55 की उम्र में 17वीं बार मां बनी महिला, पति बोला- बहुत मुश्किल से होता है गुजारा, रहने को घर तक नहीं...

punjabkesari.in Wednesday, Aug 27, 2025 - 01:34 PM (IST)

नेशनल डेस्क : देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए सालों पहले सरकार ने 'हम दो, हमारे दो' का नारा दिया था। इस पर जागरूकता फैलाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च भी किए जाते हैं। लेकिन राजस्थान के उदयपुर जिले के आदिवासी अंचल झाड़ोल से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इन दावों की सच्चाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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55 साल की उम्र में 17वीं संतान

झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 55 वर्षीय रेखा कालबेलिया ने अपनी 17वीं संतान को जन्म दिया। रेखा अब तक 16 बच्चों की मां बन चुकी थीं। हालांकि, इनमें से 4 बेटे और 1 बेटी जन्म के बाद ही चल बसे। वर्तमान में उनके 5 बच्चे शादीशुदा हैं।

गरीबी और संघर्ष से जूझता परिवार

रेखा के पति कवरा कालबेलिया ने बताया कि उनके पास रहने के लिए अपना पक्का मकान तक नहीं है। परिवार जीवन-यापन के लिए कचरा (भंगार) इकट्ठा करता है। बच्चों की पढ़ाई भी छूट गई है, कोई भी विद्यालय नहीं जा सका। घर बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना से लाभ तो मिला, लेकिन जमीन उनके नाम न होने के कारण परिवार आज भी बेघर है। बच्चों को खिलाने-पिलाने और शादी-ब्याह के लिए उन्हें साहूकार से 20% ब्याज पर पैसा लेना पड़ा। लाखों रुपये चुकाने के बाद भी कर्ज पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।

हॉस्पिटल में छिपाई गई सच्चाई

झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रोशन दरांगी ने बताया कि जब रेखा भर्ती हुईं तो परिवार ने इसे उनकी चौथी संतान बताया। बाद में पता चला कि यह उनकी 17वीं संतान है। अब स्वास्थ्य विभाग की ओर से उन्हें नसबंदी और परिवार नियोजन के लिए जागरूक किया जाएगा।

बड़ा सवाल – विकास के दावे या हकीकत?

एक ओर जहां सरकारें देश को 21वीं सदी में विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प ले रही हैं, वहीं दूसरी ओर आदिवासी इलाकों की यह हकीकत सरकारी प्रयासों पर सवाल खड़े करती है। यह घटना दिखाती है कि जब तक अशिक्षा, गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी को दूर नहीं किया जाएगा, तब तक आंकड़ों में भले ही विकास दिखाई दे, लेकिन जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी।


 


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Content Editor

Mehak

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