नंगा हो रहा अरावली का सीना! 300 क्रशर और 150 खदानों ने ली अरावली की बलि, जानिए कैसे खत्म हो रही है अरावली रेंज?
punjabkesari.in Wednesday, Dec 24, 2025 - 01:58 PM (IST)
नेशनल डेस्क: हरियाणा के भिवानी जिले का तोशाम इलाका इन दिनों पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय निवासियों के लिए दर्द का कारण बना हुआ है। यहाँ का छोटा सा गाँव 'खानक', जो कभी अरावली की हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा होता था, अब धूल के गुबार और भारी मशीनों के शोर में दफन हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों के बावजूद इस इलाके में अरावली पर्वतमाला को जिस बेरहमी से काटा जा रहा है, वह किसी डरावनी फिल्म के दृश्य जैसा लगता है। मात्र 4 किलोमीटर के दायरे में फैले इस गाँव में करीब 300 क्रशर मशीनें दिन-रात पहाड़ियों का सीना छलनी कर रही हैं। यहाँ 150 से अधिक खनन साइट्स सक्रिय हैं, जहाँ हर वक्त 500 से ज्यादा डंपर मिट्टी और पत्थरों को ढोते नजर आते हैं। यह पूरा मंजर किसी फिल्म KGF के सेट जैसा आभास देता है, जहाँ इंसान और प्रकृति दोनों ही विकास की अंधी दौड़ में पिस रहे हैं।
मजदूरों की मौत के बाद भी जारी है अवैध खेल
इस विनाश का सबसे खौफनाक पहलू यह है कि यहाँ खनन के नियम केवल कागजों तक सीमित रह गए हैं। सरकारी आदेशों के अनुसार खनन की एक निश्चित सीमा तय है, लेकिन स्थानीय युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अवैध रूप से अरावली को 500 फीट की गहराई तक खोद दिया गया है। साल 2022-23 में हुए कुछ हादसों, जिनमें मजदूरों की जान चली गई थी, के बाद कुछ खदानें बंद तो हुईं लेकिन अवैध खेल अब भी जारी है। अरावली रेंज के चरखी दादरी और भिवानी जिले के कुल 12 पहाड़ों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। खानक, डाडम, धारड़ और निगाड़ा जैसे दर्जनों गांवों में साल 1996 से पहले कभी खनन नहीं होता था, लेकिन राजनीतिक फैसलों और व्यावसायिक पट्टों की नीलामी ने इस पूरे क्षेत्र को एक बंजर मरुस्थल में तब्दील कर दिया है।
धीरे- धीरे गायब हो रही हैं पहाड़ियां
गाँव की स्थिति यह है कि 10 हजार की आबादी वाले इस छोटे से क्षेत्र में 20 पेट्रोल पंप खुल चुके हैं, जो यहाँ चल रहे डंपरों और भारी मशीनों की तादाद को दर्शाते हैं। खानक गाँव के करीब 1500 घरों की दीवारों में गहरी दरारें पड़ चुकी हैं, क्योंकि यहाँ होने वाली भारी ब्लास्टिंग से जमीन और दीवारें थरथरा उठती हैं। स्थानीय सरपंच संजय कुमार ग्रोवर और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक मलिक का कहना है कि प्रशासन और पुलिस को बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। ब्लास्टिंग की आवाजों से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है और प्रदूषण के कारण बुजुर्गों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। अरावली की वे पहाड़ियाँ जो सदियों से इस क्षेत्र के लिए कवच थीं, अब धीरे-धीरे गायब हो रही हैं और उनके साथ ही यहाँ के लोगों का सुरक्षित भविष्य भी दरक रहा है।
