किसने निपटाये AAP के 20 विधायक?

Wednesday, Jun 06, 2018 - 03:20 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दिल्ली में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर मचे बवाल पर आयी एक पुस्तक में दावा किया गया कि कुछ छद्म विशेषज्ञों और अनुभवहीन सलाहकारों की अधकचरी सलाह के चलते न केवल ये नियुक्तियां रद्द हुयीं बल्कि सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों की सदस्यता पर बन आयी।  

पुस्तक में किए कई दावे 
लोकसभा और दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एस के शर्मा ने अपनी आने वाली पुस्तक ‘दिल्ली सरकार के संसदीय सचिवों का सच (इनसाइड स्टोरी)’ में दावा किया कि इस मामले में सलाह देने वाले विशेषज्ञ और सलाहकारों को दिल्ली की वैधानिक और संवैधानिक सीमाओं, शक्तियों, परंपराओं तथा इसके संसदीय मामलों की पृष्ठभूमि का पूर्ण ज्ञान नहीं था। परिणामस्वरूप अधपकी सलाह पर संसदीय सचिव नियुक्त किये गये और 20 विधायकों की विधानसभा की सदस्यता पर बन आयी। पुस्तक में इस सिलसिले में किसी का नाम नहीं लिया गया है लेकिन एक वरिष्ठ वामपंथी नेता और संसद सचिवालय के एक सेवानिवृति वरिष्ठ अधिकारी की ओर इशारा किया गया है। 

संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर ली ‘एक्सपर्ट राय’ 
पुस्तक में ‘किसने निपटायें आप के 20’ शीर्षक से एक अध्याय में कहा गया कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति से पूर्व आप के शीर्ष नेतृत्व ने वामनेता से किसी विशेषज्ञ का नाम सुझाने का आग्रह किया और उनकी सिफारिश पर संसद सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की ‘एक्सपर्ट राय’ ली गयी। लेखक का कहना है कि इस विशेषज्ञ को विषय का ज्ञान तो था लेकिन वह ज्ञान संसद तथा पूर्ण अधिकार संपन्न राज्यों और उनके विधानमंडलों के परिप्रेक्ष्य में था न कि संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत गठित दिल्ली जैसी विशेष और सीमित शक्ति की अनूठी व्यवस्था के संबंध में। उनका मानना है कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति के संबंध में कम से कम छह या सात ऐसे बिंदु हैं जिन पर‘एक्सपर्ट सलाह’ में परिपक्वता तथा विषय के ज्ञान का अभाव स्पष्ट झलकता है। 

गोपनीय रखा गया यह निर्णय 
दिल्ली सरकार द्वारा मार्च 2015 में 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति और उनके नियुक्ति की प्रक्रिया को पुस्तक में अवैध और गैर कानूनी बताते हुये कहा गया कि ये नियुक्तियां ऐसे की गयीं मानो यह सरकार में ना होकर किसी राजनीतिक पार्टी का अंदरुनी मामला हो। इस निर्णय को पूर्णतया गोपनीय रखा गया और पार्टी तथा राजनिवास को इसकी भनक नहीं लगने दी गयी। यहां तक कि कैबिनेट से भी मंजूरी नहीं ली गयी। नतीजा यह हुआ कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने नियुक्तियों के आदेश को अगस्त 2017 में रद्द कर दिया। बाद में यह मामला चुनाव आयोग पहुंचा जिसने मामले पर गहन विचार विमर्श के बाद संसदीय सचिव बनाये गये विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का फैसला सुना दिया हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश पर आयोग इस मामले पर फिर से विचार कर रहा है। 
 

vasudha

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