विजय दिवसः आज के दिन भारतीय सेना के सामने 93000 पाक सैनिकों ने टेके थे घुटने(Pics)

Friday, Dec 16, 2016 - 12:28 PM (IST)

नई दिल्लीः 16 दिसंबर 1971 को एक लंबे संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर विजय पाई थी। पाकिस्तानी सेना प्रमुख अामिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने बिना शर्त के अपने सैनिकों के साथ समर्पण किया और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को आजाद करने के बाद इस युद्ध का अंत हुआ था। उस दिन को पूरा भारत विजय दिवस के रूप में मनाता है।

PM मोदी ने दी शदीदाें काे श्रद्धांजलि
इस विजय में भारतीय सेना ने अपने अनेक सैनिक खो दिए। वास्तव में ये दिन पूरे देश के लिए गर्व का है। उस वक्त चीन से युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान पर विजय पूरे देश के मनोबल बढ़ाने वाली थी। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ऐसा पहला मौका था जब इतनी बड़ी सेना ने किसी के सामने समर्पण किया हो। इस दिन भारत के रक्षा मंत्री इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति में तीनों सेना प्रमुखों के साथ मिलकर शहीदों को श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं। विजय दिवस पर अाज पीएम मोदी ने भी वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। 

युद्ध का कारण बांग्लादेश की रिहाई
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध का मुख्य कारण बांग्लादेश की रिहाई था। वर्ष 1970 में पाकिस्तान में हुए चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने 169 में से 167 सीटों पर जीत दर्ज की और शेख मुजीबुर रहमान ने संसद में सरकार बनाने की पेशकश की। मगर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसका विरोध किया और हालात इतने गंभीर हो गए कि राष्ट्रपति को सेना बुलवानी पड़ी। फौज में शामिल अधिकतर लोग पश्चिमी पाक के थे। पूर्वी पाक की सेना को यहां हार का सामना करना पड़ा और शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। बस यहीं से युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

PAK को टेकने पड़े घुटने
भारतीय सेना और बांग्लादेश मुक्तिबाहिनी ने मिलकर पाक सेना से लंबा संघर्ष किया और पाक सेना के समर्पण के साथ ही युद्ध समाप्त हो गया। इसके साथ ही बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना। वह विश्व का तीसरा ऐसा देश भी बना जहां सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी थी। इस युद्ध और विजय का श्रेय जांबाज भारतीय सेना के साथ निश्चित रूप से भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जाता है। उन्होंने पड़ोसी मुल्क में शांति बहाली और अपनी सीमाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए युद्ध का फैसला लिया। उनकी सूझ-बूझ की बदौलत पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े और एक गर्व का अध्याय हमारे इतिहास में जुड़ गया।

Advertising