17 दिन बाद मेधा पाटकर ने जेल में तोड़ा अनशन

Sunday, Aug 13, 2017 - 07:51 AM (IST)

धार (मध्यप्रदेश): धार जिला जेल में बंद नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर (62) ने शनिवार को शरबत पीकर 17वें दिन अपना अनिश्चितकालीन अनशन समाप्त कर दिया। धार जिला जेल के अधीक्षक सतीष कुमार उपाध्याय ने यह जानकारी दी है। मेधा सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र के प्रभावितों के लिए उचित पुनर्वास की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में 27 जुलाई से अनशन पर बैठी थीं।

पुलिस ने धरना स्थल से बलपूर्वक उठाया
अनशन के 12वें दिन सात अगस्त को पुलिस ने उन्हें धरना स्थल से बलपूर्वक उठा दिया था और इंदौर के एक अस्पताल में तीन दिन तक उपचार के बाद छोड़ दिया था। लेकिन उसी दिन नौ अगस्त को उन्हें उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वह अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद दोबारा चिखल्दा अनशन स्थल की ओर जा रही थीं।  उपाध्याय ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मेधा पाटकर ने आज जेल में शरबत पीकर अपना अनशन समाप्त कर दिया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘धार जिला जेल में पहले नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े विभिन्न संगठनों के 15 सदस्य पहुंचे। यहां पर करीब 7 सदस्य मेधा पाटकर से मिले तथा उनसे अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया गया। इसके बाद मेधा ने जेल में शरबत पीकर अनशन समाप्त किया।’’ इस दौरान उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता संजय पारिक, पश्चिम बंगाल के पूर्व सांसद हनन मोला, नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन वूमन के एनी राजा, कृषक मुक्ति संग्राम समिति के अखिल गोगोई, पूर्व विधायक डॉ. सुनील सुनीलम, वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र, प्रमोद बागड़ी, सरोज मिश्र, मीरा आदि उपस्थित थे।

मेधा सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र के प्रभावितों के लिये उचित पुनर्वास की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में 27 जुलाई को अपने 11 अन्य साथियों के साथ अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी थीं। मेधा की मांग है कि विस्थापितों के उचित पुनर्वास के इंतजाम पूरे होने तक उन्हें अपनी मूल बसाहटों में ही रहने दिया जाए और फिलहाल बांध के जलस्तर को नहीं बढ़ाया जाए।

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश की नर्मदा घाटी में पुनर्वास स्थलों का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका है। ऐसे कई स्थानों पर पेयजल की सुविधा भी नहीं है। लेकिन प्रदेश सरकार हजारों परिवारों को अपने घर-बार छोड़कर ऐसे अधूरे पुनर्वास स्थलों में जाने के लिए कह रही है। यह ​स्थिति विस्थापितों को कतई मंजूर नहीं है और ज्यादातर विस्थापित अब भी घाटी में डटे हैं।

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