आध्यात्मिक जिज्ञासा को शांत करने के लिए पढ़ें...

Thursday, Oct 20, 2016 - 03:20 PM (IST)

1. मैं’ से भागने की कोशिश मत करना। उससे भागा ही नहीं जा सकता, क्योंकि भागने में भी वह साथ ही है। उससे भागना नहीं है बल्कि समग्र शक्ति से उसमें प्रवेश करना है। खुद के अहंकार में जो जितना गहरा होता जाता है उतना ही पाता है कि अंहकार की कोई वास्तविक सत्ता है ही नहीं।


2. परमात्मा का प्रमाण पूछते हो? क्या चेतना का अस्तित्व पर्याप्त नहीं है? क्या जल की बूंद ही समस्त सागरों को सिद्ध नहीं कर देती है। 


3. यह मत कहो कि मैं प्रार्थना में था क्योंकि इसका मतलब आप प्रार्थना के बाहर भी होते हो। जो प्रार्थना के बाहर भी होता है वह प्रार्थना में नहीं हो सकता। प्रार्थना क्रिया नहीं है प्रार्थना तो प्रेम की परिपूर्णता है। 


4. जीवन की खोज में आत्म तुष्टि से खतरनाक और कुछ भी नहीं। जो खुद से संतुष्ट है वह एक अर्थ में जीवित ही नहीं है और जो खुद से असंतुष्ट है वही सत्य की दिशा में गति करता है। 


5. मृत्यु से घबराकर तो तुमने कहीं ईश्वर का आविष्कार नहीं कर लिया है? भय पर आधारित ईश्वर से असत्य और कुछ भी नहीं है। 


6. जो सदा वर्तमान में है वही सत्य है। निकटतम जो है वही अंतिम सत्य है। दूर को नहीं निकट को जानो क्योंकि जो निकट को ही नहीं जानता है वह दूर को कैसे जानेगा? और जो निकट को जान लेता है उसके लिए दूर शेष ही नहीं रह जाता है।


7. सबसे बड़ी मुक्ति है स्वयं को मुक्त करना क्योंकि साधारणतया हम भूले ही रहते हैं कि स्वयं पर हम स्वयं ही सबसे बड़ा बोझ हैं।


8. मनुष्य को मनुष्यता बनी बनाई नहीं प्राप्त होती है। उसे तो मनुष्य को स्वयं निर्मित करना होता है। यही सौभाग्य भी है और दुर्भाग्य भी। सौभाग्य क्योंकि स्वयं को सृजन की स्वतंत्रता भी है लेकिन स्वयं को निर्मित किए बिना नष्ट हो जाने की सम्भावना भी।

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