संसार में महामंत्रों की संख्या सात करोड़, दो अक्षर का नाम है दिव्यशक्ति पुंज

punjabkesari.in Tuesday, Jun 28, 2016 - 02:25 PM (IST)

भक्ति परम्परा में आराध्य के नाम स्मरण का बहुत ही महत्व है। दैहिक, वैदिक और भौतिक इन त्रयतापों को दूर करने हेतु राम नाम सुलभ साधन है। इतना ही नहीं, अखिल विश्व में सर्वश्रेष्ठ एवं ग्राह्य वस्तु राम नाम सारे वेदों और शास्त्रों का सार है। संतों, पुराणों और उपनिषदों ने राम नाम के असीम प्रभाव का गान किया है। 
 
राम नाम ही तीनों लोकों में दिव्य शक्तिपुंज है। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ श्री रामचरित मानस में स्पष्ट वर्णन किया है कि राम नाम ही महामंत्र है। भगवान शंकर का कथन है कि संसार में महामंत्रों की संख्या सात करोड़ है पर इनमें यह दो अक्षर का राम नाम ही प्रधान है। सारस्वत तंत्र में कहा भी गया है:-
सप्तकोटी महामंत्राश्चित विभ्रम कारका:।
एक एव परो मंत्र: राम इत्यक्षरद्वयम।। 
 
मानस में भी गोस्वामी जी ने कहा है:-
ब्रह्मा राम से नामु बड वर दायक बर दानि।
राम चरित सत कोटि मह लिए महेस खियजानि। (1/25) 
 
गोस्वामी के शब्दों में राम नाम की महिमा अपार है:-
बंदऊ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।
विधि हरि हरमय वेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो।। (रा.च.मा. 1/19/1)
  
अर्थात मैं श्री रघुनाथ जी के नाम राम की वंदना करता हूं जो कृशानु (अग्रि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चंद्रमा) का हेतु है। यह राम नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण उपमारहित और गुणों का भंडार है। 
 
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी।। (1/24/2)
निसचर निकल दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन।। (1/24/4)
नामु राम को कल्परू कलि कल्यान निवासु।। (1/26)
नाम काम तरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जगजाला।
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता।। (1/27/3) 
 
कहने का अभिप्राय यह है कि इस भयंकर कलिकाल में श्री रामचंद्र जी के नाम में कल्पवृक्ष और कल्याण का निवास है। इस राम नाम से सभी ने अपने-अपने मनोरथ पाए और आज तक पाते चले जाते हैं। यह नाम धर्म, अर्थ, काल और मोक्ष का प्रदाता है। अर्थात आज चारों पुरुषार्थों को प्राप्ति के लिए किसी दु:साध्य तप एवं साधन की आवश्यकता नहीं है, उसकी उपलब्धि राम नाम से ही हो जाती है। 
 
इसमें भी मुख्य बात यह है कि किसी तरह से भी नाम जपने से कल्याण ही होता है।
भायं कुभायं अनख आलसहू। नाम जपत मंगल दिसि दसहू।। (1/28/1)
राम-राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाही। (2/194/3) 

-त्रिलोकी सिंह  


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