लीला गोपाल की, वाह! कितनी कमाल की

Saturday, Oct 31, 2015 - 10:04 AM (IST)

अरे! सुनो-सुनो, अापको सुनाएं लीलाएं नंद लाल की।
एक इनकी अौर इनके साथी ग्वाल बाल की।।
अंत करोड़ ब्रहाम्ण्डों के मालिक हैं ये।
चोर-महाचोर, चोरी में माहिर हैं ये।
न उंहे भूख लगती, न प्यास लगती, न सोते हैं ये।
मगर भक्त देखकर, खाते हैं, पाते हैं, हंसते हैं।
हम तो देखते हैं, केवल मूरत हैं कुछ बोलते नहीं हैं ये।
अरे! तुम क्या जानो! मुकद्द में मे गवाही देते हैं ये।
भूख नहीं फिर भी चोरी करेंगे गोपी घर की।
माखन कहां रखा है जान जाएंगे नटवर जी।
खाते हैं थोड़ा, बाकी बंदरों को बांट देते हैं ये।
मिलेगा नहीं तो बच्चे रुलाते अौर मटकियां फोड़ देते हैं ये।
ऊंचा हो तो काम इनका कंधे पे चढ़के उतार लेना।
यदि फिर भी न पहुंचा हाथ तो मुरली से फोड़ देना।
गर अा गर्इ ग्वालिन तो नहीं डरते हैं ये।
झूठ बोलने में माहिर, झट बहाना बना देते हैं ये।
कहते हैं, मैं तो तेरे माखन की मक्खीया उड़ा रहा था।
खाता नहीं, मैं तो चींटियां निकाल रहा था।
मन-मन हंसती है, पर चेहरे पर गुस्सा दिखाती हैं ये।
सच तो यह है इसी बहाने उनको बुलाती हैं ये।
हम छुपाएंगी माखन, यदि ये न पाएंगे।
इनको क्या गरज है जो हमारे घर अाएंगे।
अरी!इसी बहाने श्याम हमारे घर तो अाएंगे।
अौर बहाने शिकायत के हम भी दर्शन को जाएंगे।
 
सुन यशोदा! हम सुनाएं शिकायत गोपाल की।
एक इनकी अौर इनके साथी ग्वाल बाल की।
कहती हैं, यशोदा! तेरा कन्हैया शैतान है।
बच्चे रुलाना है, चीर-चीर देता है अौर चाोरी में महान है।
बोल जाता बीच में कन्हैया, माता! ये सब झुठ है।
मेरी पिटार्इ कराने वास्ते, इनकी काली करतूत है।
सच ये है कि मुझे पकड़ ले जाती हैं ये।
गाना गंवाती हैं अौर मुझको नचाती हैं ये।
कभी माखन देती हैं, कभी मिश्री दे जाती हैं ये।
मैया! मारो इंहे, मुझको सताती हैं ये।
कितना सताती हैं, क्या-क्या शिकायत करुं इनकी।
 
देखा पाठको! कितनी चालाकी है, गोपाल की।
जैसी चालाकी इनकी वैसी इनके साथी ग्वाल बाल की।
सुनी अापने कैसी अदभुत लीलाएं नंदलाल की। 
फिर मिलेंगे, फिर सुनाएंगे लीलाएं नंदलाल

श्रीचैतन्य  गौड़ीय मठ की ओर से

श्री बी.एस. निष्किंचन जी महाराज 

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