Success के लिए करें मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र का जाप

Monday, Oct 03, 2016 - 07:29 AM (IST)

या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


अवतरण वर्णन: पौराणिक मत के अनुरूप नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कि जाती है, आदिशक्ति दुर्गा का द्वितीय स्वरूप साधको को अनंत शक्ति देने वाला है। इनकी साधना से व्यक्ति को कर्मठता, ज्ञान, वर्चस्व, अटूट श्रद्धा प्रचुर शक्ति, प्रज्ञता तथा बुद्धिमत्ता कि प्राप्ति होती है। जीवन के मुश्किल समय में भी साधक का मन कर्तव्य निष्ठा से परिपूर्ण और अविचलित रहता है। शब्द ब्रह्मचारिणी का संधिविच्छेद कुछ इस प्रकार है के ब्रह्म का अर्थ है तप और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली आदिस्रोत शक्ति। 


स्वरुप वर्णन: मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप परम खिलते हुए कमल जैसा है जिसमें से प्रकाश निकल रहा है परम ज्योर्तिमय है, ये शांत और निमग्न होकर तप में विलीन हैं । इनके मुखमंडल पर कठोर तप के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर करने में सक्षम है। मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला (जाप माला) है और बाएं हाथ में कमण्डल है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्मत्व का स्वरूप हैं अर्थात ब्रह्मतेज का साकार स्वरूप हैं । इनके आज्ञा चक्र से तेज निकल रहा है जैसे की इनका तीसरा नेत्र (त्रिनेत्र) हो। ये गौरवर्णा है तथा इनके शरीर से हवन कि अग्नि प्रज्वलित हो रही है। इन्होंने ध्वल रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं (ध्वल का अर्थ ऐसे रंग से है जैसे किसी ने दूध में कुमकुम मिला दिया हो) । मां ने कमल को अपना श्रृंगार बना लिया है, इनके कंगन, कड़े, हार, कुंडल तथा बाली आदि सभी जगह कमल जड़े हुए हैं अतः स्वर्णमुकुट पर कमल की मुकुटमणि जड़ी हो जैसे । मां ब्रह्मचारिणी का ये स्वरुप माता पार्वती का वो चरित्र है जब उन्होंने शिव (ब्रह्म) कि साधना के लिए तप किया था । 


साधना वर्णन: मां ब्रह्मचारिणी कि साधना मनोवांछित लक्ष कि प्राप्ति के लिए कि जाती है । इनकी साधना का सर्वश्रेष्ट समय हैं मंगल उदय (ब्रह्म महूर्त) अर्थात जब मंगल ग्रह पृथवी पर सर्वाधिक दर्शनीय होता है अतः प्रातः 4 बजे से 6 बजे के बीच, इनकी पूजा लाल-सफ़ेद आभा लिए मिश्रित पुष्पों से करनी चाहिए अर्थात ब्रहमकमल का पुष्प, इन्हें गेहूं से बने मिष्ठान का भोग लगाने चाहियें जैसे के “लापसी” तथा श्रंगार में इन्हें सिंदूर अर्पित करना शुभ रहता है। इनका ध्यान इस प्रकार है “दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”


योगिक दृष्टिकोण: ब्रह्मचारिणी साधना के लिए साधक अपने मन को “स्वाधिष्ठान चक्र” में स्थित करते हैं, इनको साधने से “प्रजनन चक्र” अर्थात जननांग अपने वश में रहते है और इसी चक्र से विषियों पर विजय प्राप्त कि जाती है । अतः ब्रह्मचारिणी का दूसरा अर्थ ब्रहमचर्य का पालन भी होता है । मानव शारिरीक संरचना में इनका आधिपत्य हड्डी, रक्त और जननांग पर है।
 

ज्योतिष दृष्टिकोण: मां ब्रह्मचारिणी की साधना का संबंध अंगारक आर्थात “मंगल ग्रह” से है । कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में मंगल का संबंध प्रथम और आठवें भाव से होता है अतः मां ब्रह्मचारिणी कि साधना का संबंध व्यक्ति की बुद्धि, मानसिकता, आचरण, दैहिक सुख, भोग, सम्भोग, निष्ठा, सेहत, आयु, बुद्धिमत्ता और आर्जित ज्ञान से है । जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में मंगल अस्त अथवा अंगारक योग बना रहा है अथवा कर्क राशि में आकर नीच एवं पीड़ित है उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां ब्रह्मचारिणी की आराधना। मां ब्रह्मचारिणी कि आराधना से मंदबुद्धियों को कुशाग्रता प्राप्त होती है । कॉम्पटीशन और परीक्षाएं सफलता के साथ-साथ लक्ष्य को साधती हैं। मां ब्रह्मचारिणी कि आराधना उनके लिए खास महत्व रखती है जिनकी आजीविका का संबंध चिकित्सा, इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, सुरक्षा सेवा से हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां ब्रह्मचारिणी की साधना। 


वास्तु दृष्टिकोण: मां ब्रह्मचारिणी कि साधना का संबंध वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार “अंगारकाय” से है, इनकी दिशा दक्षिण है, निवास में बने वो स्थान जहां पर शक्ति का त्याग होता हो अथवा जहां भार अधिक हो जैसे के शयनकक्ष, स्नानघर एवं शोचालय इत्यादि । जिन व्यक्तियों के निवास स्थल दक्षिणमुखी हो अथवा जिनके घर दक्षिण कोण हल्का हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां ब्रह्मचारिणी की आराधना ।


उपाय: परीक्षा और प्रतियोगिता में सफलता हेतु मां ब्रह्मचारिणी पर “मधुपर्कं” चढ़ाएं अर्थात शहद कि शीशी अर्पित करें। 


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

Advertising