रहस्य: तो इस कारण मना है शास्त्रों में प्याज और लहसुन खाना

Thursday, Sep 03, 2015 - 09:51 AM (IST)

वही भोजन खाएं जो सात्त्विक हो। लहसुन और प्याज के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते हैं। प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप विषय-वासना में वृद्धि होती है। इनके सेवन से दैहिक ताप और काम भावना बढ़ती है। 
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वैष्णव धर्म में भगवान के प्रशाद में प्याज व लहसुन चढ़ाना वर्जित है क्योंकि इन्हें मांस की संज्ञा दी गई है। सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार प्याज व लहसुन जैसी सब्जियां प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देकर अध्यात्मक के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती हैं, व्यक्ति की चेतना को प्रभावित करती हैं इसलिए इन्हें नहीं खाना चाहिेए।
 
गीता जी के सत्रहवें अध्याय के दसवें श्लोक में दुर्गन्धयुक्त भोजन को तमोगुणी लोगों की पसन्द बताया है और तमोगुणी की अधोगति होती है (गीता 14/18)।
 
अर्थात दुर्गंध लिए हुए पदार्थ जैसे की प्याज लहसुन निषेध कहे गए हैं।
 
सत्, रज व तम, माया के ये त्रिगुण हर जीव में मौजूद होते हैं। सतगुण धीरज, संयम, पवित्रता व मानसिक शांति को दर्शाते हैं। लालच व कामुकता रजगुण हैं। सारे अवगुण तमस के अंतर्गत आते हैं जैसे गुस्सा, क्रोध, अहंकार व विनाशकारी सोच आदि। साधना काल रज व तम गुणों का कम होना चाहिए ताकि सात्विक गुणों में वृद्धि हो सके। बहुत से खाद्य व पेय पदार्थ मानसिक व शारीरिक स्थितियों को प्रभावित करते हैं जिससे जीव में सत्, रज व तम, जैसे गुणों की मात्रा भी प्रभावित होती है। उदाहरण के तौर पर शराब का सेवन व्यक्ति की बर्दाश क्षमता को कम करता है और वासना जैसे राजसिक गुणों को बढ़ाता है।
 
इसी प्रकार प्याज व लहसुन क्रोध व काम जैसे गुणों को बढ़ाते हैं। जब राजसिक और तामसिक गुणों में वृद्धि होती है तो जीव का चित्त अशांत होता है अतः इन स्थितियों में व्यक्ति का मन अशांत होकर ईश्वरीय साधना से दूर हो जाता है शास्त्रनुसार स्वाद (जिव्हा) को मिलाकर सारी इन्द्रियां जीव के वश में होने पर ही पवित्र रही जा सकती हैं।
 
विष्णु पुराण में प्याज व लहसुन का भक्षण साधक हेतु वर्जित कहा गया है क्योंकि मोहिनी अवतार के समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से जिस अमृत पान किए दैत्य का सिर अलग किया था उनकी अमृत मिले रक्त की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि प्याज व लहसुन अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं परंतु इन्हें कर्मकांडी ब्राह्मण व साधकों हेतु खाना निषेध है। 
 
जिस दैत्य का सिर धड़ से अलग हुआ था वह भारतीय ज्योतिष में विद्यमान नवग्रह में से दो ग्रह राहू व केतू हैं। शास्त्रीय मान्यतानुसार राक्षसों के अमृत मिले रक्त से उत्तपन्न होने के कारण प्याज व लहसुन से तेज गंध आती है तथा इन्हें अपवित्र माना जाता है इसलिए यह राक्षसी प्रवृति के भोजन कहलाते हैं। मान्यतानुसार प्याज व लहसुन कर्मकांडी ब्राह्मण व साधकों को भोजन के रूप में कदापि ग्रहण नहीं करना चाहिए अन्यथा अशांति, रोग और चिन्ताएं व कामवासना जीवन में घर करती हैं।
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com
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