सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता

Monday, Feb 23, 2015 - 11:02 AM (IST)

* समय का सदुपयोग ही उन्नति का मूलमंत्र है।

* संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।

* सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊंचा है।

* स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।

* स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती है।

* सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।

* सद्गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।

* सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओत-प्रोत है वह ईश्वर के उतना ही निकट है।

* सारी शक्तियां लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिएं।

* समान भाव से आत्मीयतापूर्वक कर्तव्य-कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है।

* सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है।

* सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाए। 

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