न केवल हिंदू शास्त्र बल्कि इस्लाम में भी ‘गौ माता’ का है विशेष स्थान

punjabkesari.in Saturday, Jul 30, 2016 - 03:17 PM (IST)

अनादिकाल से ही दूध देने वाले चौपायों में गाय का महत्व सर्वोपरि है। केवल भारत या भारतीय संस्कृति में ही नहीं वरन् भारत के अलावा अन्य सभी धर्मों एवं संस्कृति में भी गाय का विशेष महत्व है। एक व्यक्ति से लेकर पूरे राष्ट्र एवं विश्व को पुष्ट कर हित प्रदान करने में समर्थ गाय है। पूरी कौम की रग-रग में गाय का खून दौड़ रहा है। इसलिए भारतीय इसे ‘गौ माता’ कहते हैं। माता जैसी परम पवित्र उपाधि केवल गाय को ही प्राप्त है।

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गाय के संबंध में इस्लाम का दृष्टिकोण सदा से ही श्रद्धास्पद व उदार रहा है। कुरान शरीफ में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘बिना शक तुम्हारे लिए चौपायों से भी सीख है। उनके (गाय के) पेट की चीजों में से गोबर और खून के बीच से बना साफ दूध जो पीने वालों के लिए स्वाद वाला है, हम तुम्हें पिलाते हैं।’’

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हजरत मोहम्मद साहब ने हजरत आयशा से कहा, ‘‘गाय का दूध खूबसूरती और तंदरुस्ती बढ़ाने का बहुत बड़ा नुस्खा है।’’

 

‘तफसीर दुर्रे-मंसूर’ में कहा गया है कि ‘‘गाय की बुजुर्गी का एहतराम किया करो क्योंकि वह तमाम चौपायों की सरदार है, तुम्हें दूध देती है।’’ गाय दौलत की रानी है। 

देश की आर्थिक समृद्धि का आधार है गाय

अच्छी तरह पाली हुई 9 गाएं 16 वर्षों में न सिर्फ 450 गाएं पैदा करती हैं बल्कि उनसे हजारों रुपए का दूध और फसल के लिए गोबर की अच्छी खाद भी मिलती है। इमाम जाफर सादिक के कथनानुसार ‘गाय का दूध हदा है, इसके मक्खन में शिफा (बंदुरुस्ती) है और मांस में बीमारी। स्वर्गीय हकीम अजमल खां के शब्दों में, ‘न ही कुरान शरीफ और न ही अरब की प्रथा ही गाय की कुर्बानी की इजाजत देती है।

 

मौलाना फारुकी द्वारा लिखित- ‘खैर व बरकत’ में लिखा है ‘‘मक्का में गौकशी पर पाबंदी लगाई थी।’’

 

बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, मोहम्मद शाह आलम, शाहजहां, औरंगजेब आदि बादशाहों तथा अब्दुल मलिक, इब्ने-मखान, दूबेदार ईराकवाली हुकूमत अफगानिस्तान ने भी गाय की कुर्बानी पर पाबंदी लगाई थी।

 

100 से अधिक उलेमाए अहले सुन्नत (धर्माचार्यों) ने भी इसके पक्ष में फतवा दिया था कि (हदीस में कहा गया है) ‘गौ के हत्यारे को कभी माफ नहीं किया जाना चाहिए। इस फतवे पर मोहम्मद शाह, गाजीशाह, शाह आलम, बादशाह, सैयद अताउल्ला खां, पीर मौलवी कुतुबुद्दीन, काजी मितां, असगर हुसैन, वल्द मुंशी इलाही खां, दरोगा आतिश खां, हुजूर पुरनूर आदि बुजुर्गों के दस्तखत थे। 

 

ब्रिटिश शासनकाल में अनेक स्वतंत्र रियासती शासकों, नवाबों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में गौ हत्या बंद करवाई थी जिनमें उल्लेखनीय हैं नवाब रामपुर, नवाब मंगलौर, नवाब दुजाना (करनाल), नवाब गुडग़ांव, नवाब मुर्शिदाबाद। भारत में गौवध का प्रश्र दुर्भाग्य से हिन्दुओं एवं मुसलमानों में मतभेद का कारण बना हुआ है। इस प्रश्न का हल खोजना आवश्यक है।

—डा. पुष्पा देवी  


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