श्रीमद्भगवद्गीता: ब्रह्मभूत अवस्था प्राप्त करने पर निश्चित है भगवद्धाम जाना

punjabkesari.in Saturday, Jul 23, 2016 - 02:49 PM (IST)

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद अध्याय 5 (कर्मयोग) 
पूर्ण पुरुष
 योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्र्योतिरेव य:।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।। 24।। 
 
य:—जो; अंत:सुख:—अंतर में सुखी;  अंत:आराम:—अंतर में रमण करने वाला अंतर्मुखी; तथा—और; अन्त:ज्योति:—भीतर-भीतर लक्ष्य करते हुए; एव—निश्चय ही; य:—जो कोई; स:—वह; योगी—योगी; ब्रह्म-निर्वाणम्—परब्रह्म में मुक्ति; ब्रह्म-भूत:—स्वरूपसिद्ध; अधिगच्छति—प्राप्त करता है। 
 
अनुवाद
जो अंत:करण में सुख का अनुभव करता है, जो कर्मठ है और अंत:करण में ही रमण करता है तथा जिसका लक्ष्य अंतर्मुखी होता है वह सचमुच पूर्णयोगी है। वह परब्रह्म में मुक्ति पाता है और अंतत: ब्रह्म को प्राप्त होता है। 
तात्पर्य
जब तक मनुष्य अपने अंत:करण में सुख का अनुभव नहीं करता तब तक भला बाह्यसुख को प्राप्त करने वाली बाह्य क्रियाओं से वह कैसे छूट सकता है? मुुक्त पुरुष वास्तविक अनुभव द्वारा सुख भोगता है। अत: वह किसी भी स्थान में मौनभाव से बैठकर अंत:करण में जीवन के कार्यकलापों का आनंद लेता है। ऐसा मुक्त पुरुष कभी बाहरी भौतिकसुख की कामना नहीं करता। यह अवस्था ब्रह्मभूत कहलाती है, जिसे प्राप्त करने पर भगवद्धाम जाना निश्चित है।  
 (क्रमश:) 

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