मुंबई की 10 वर्षीया स्केटर ने एवरेस्ट के आधार शिविर की चढ़ाई की
punjabkesari.in Sunday, May 22, 2022 - 08:16 PM (IST)

मुंबई, 22 मई (भाषा) मुंबई की 10 वर्षीया स्केटर रिदम ममानिया माउंट एवरेस्ट के आधार शिविर की चढ़ाई करने वाले युवा भारतीय पर्वतारोहियों में शामिल हो गई हैं।
रिदम ने 5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आधार शिविर तक की चढ़ाई 11 दिन में पूरी करके दुर्भल उपलब्धि हासिल की है।
रिदम के माता-पिता -उर्मी और हर्षल- भी इस माह के शुरू में इस अभियान के दौरान रिदम के साथ थे।
लड़की की मां उर्मी ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मुंबई के उपनगरीय इलाके बांद्रा स्थित एमईटी ऋषिकुल विद्यालय की पांचवीं कक्षा की छात्र रिदम छह मई को अपराह्न एक बजे माउंट एवरेस्ट के आधार शिविर पहुंची।’’
वर्ली की निवासी रिदम ने कहा, ‘‘स्केटिंग रिंग हो या आधार शिवर की चोटी, आपका दृढ़ संकल्प ही आपको लक्ष्य की ओर ले जाता है।’’
उसने कहा, ‘‘स्केटिंग के साथ-साथ ट्रेकिंग हमेशा से मेरा जज्बा रहा है, लेकिन इस ट्रेकिंग ने मुझे यह सीख दी कि जिम्मेदार ट्रेकर होना कितना महत्वपूर्ण है और पर्वतीय कचरा प्रबंधन की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है।’’
रिदम की मां ने कहा कि उनकी बेटी को पांच वर्ष की उम्र से ही पर्वतारोहण से प्यार था और उसकी पहली लंबी ट्रेकिंग दूधसागर की थी और उसके बाद से उसने सहयाद्री पर्वतीय रेंज में माहुली, सोनदई, करनाला और लोहगड की चोटियों की चढ़ाई की।
रिदम नेपाल की कंपनी सतोरी एडवेंचर्स के साथ आधार शिविर गयी थी। कच्छ के कुछ ट्रेकर का एक समूह भी उसके साथ था।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
रिदम ने 5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आधार शिविर तक की चढ़ाई 11 दिन में पूरी करके दुर्भल उपलब्धि हासिल की है।
रिदम के माता-पिता -उर्मी और हर्षल- भी इस माह के शुरू में इस अभियान के दौरान रिदम के साथ थे।
लड़की की मां उर्मी ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मुंबई के उपनगरीय इलाके बांद्रा स्थित एमईटी ऋषिकुल विद्यालय की पांचवीं कक्षा की छात्र रिदम छह मई को अपराह्न एक बजे माउंट एवरेस्ट के आधार शिविर पहुंची।’’
वर्ली की निवासी रिदम ने कहा, ‘‘स्केटिंग रिंग हो या आधार शिवर की चोटी, आपका दृढ़ संकल्प ही आपको लक्ष्य की ओर ले जाता है।’’
उसने कहा, ‘‘स्केटिंग के साथ-साथ ट्रेकिंग हमेशा से मेरा जज्बा रहा है, लेकिन इस ट्रेकिंग ने मुझे यह सीख दी कि जिम्मेदार ट्रेकर होना कितना महत्वपूर्ण है और पर्वतीय कचरा प्रबंधन की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है।’’
रिदम की मां ने कहा कि उनकी बेटी को पांच वर्ष की उम्र से ही पर्वतारोहण से प्यार था और उसकी पहली लंबी ट्रेकिंग दूधसागर की थी और उसके बाद से उसने सहयाद्री पर्वतीय रेंज में माहुली, सोनदई, करनाला और लोहगड की चोटियों की चढ़ाई की।
रिदम नेपाल की कंपनी सतोरी एडवेंचर्स के साथ आधार शिविर गयी थी। कच्छ के कुछ ट्रेकर का एक समूह भी उसके साथ था।
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