‘हेरवाड की विधवाओं के लिए समाज में सम्मान, आर्थिक स्वतंत्रता जरूरी’

punjabkesari.in Sunday, May 22, 2022 - 02:46 PM (IST)

मुंबई, 22 मई (भाषा) महाराष्ट्र के हेरवाड गांव की एक विधवा वैशाली पाटिल के लिए 2013 में अपने पति की मृत्यु के बाद जीवन काटना आसान नहीं था। उन्हें न केवल अपने परिवार के वित्तीय मामलों में भेदभाव का सामना करना पड़ा, बल्कि उन्हें सामाजिक कार्यों से भी दूर रखा गया।

लेकिन, 42 वर्षीय वैशाली पाटिल ने विधवाओं के लिए सदियों पुराने रीति-रिवाजों को छोड़कर रंगीन साड़ी पहनी और माथे पर ‘बिंदी’ भी लगाई। इतना ही नहीं, उन्होंने समाज में सम्मान हासिल करने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए भी प्रयास किया।

अब उन्हें खुशी है कि कोल्हापुर जिले की शिरोल तहसील स्थित हेरवाड गांव ने चार मई को महिलाओं के चूड़ियां तोड़ने, माथे से कुमकुम पोंछने और विधवा के मंगलसूत्र को हटाने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया। इस प्रकार ऐसी प्रथा को प्रतिबंधित करने वाला यह महाराष्ट्र का पहला गांव बन गया।

पाटिल अब स्थानीय स्तर की नेता हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मुझे याद है कि एक बार मैं एक महिला समारोह के आयोजकों में शामिल थी, तब मैंने इस कार्यक्रम में विजेताओं को देने के लिए दो साड़ियां खरीदी थी। लेकिन, मुझे विधवा होने के कारण सम्मान प्रदान करने की अनुमति नहीं थी। मैं इस सार्वजनिक अपमान को सहन नहीं कर सकी और बहुत रोई। विडंबना यह है कि जिन लोगों ने मुझे सम्मान समारोह आयोजित करने से मना किया, वे स्वयं महिलाएं थीं।’’
पाटिल ने कहा कि उन्हें पारिवारिक विरासत और सामाजिक कार्यों के मामलों में भी भेदभाव का सामना करना पड़ा है। उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी महिला उस यातना का सामना नहीं करे जिसका अनुभव मैंने 2013 में अपने पति की मृत्यु के बाद किया।’’ पाटिल ने कहा कि उन्होंने भी अन्य विधवाओं की तरह सिंदूर पोंछने, अपनी चूड़ियां तोड़ने और मंगलसूत्र और पैर की बिछिया निकालने की रस्म निभाई थी।

उन्होंने कहा, ‘‘जिन महिलाओं के पति जीवित हैं, वे समर्थन के लिए आपके पास नहीं आती हैं। जब आप अपने पति के खोने का शोक मना रही होती हैं तो यह अपमानजनक होता है।’’
हालांकि, इस महीने की शुरुआत में इस तरह के रिवाज पर प्रतिबंध लगाने के ग्राम पंचायत के फैसले से पहले ही पाटिल ने इस तरह की प्रथाओं को मानने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने रंगीन साड़ी पहनी और बिंदी भी लगाई। लेकिन, मैं मंगलसूत्र और पैर में बिछिया नहीं पहनती।’’
पाटिल ने कहा कि जब उनके पति जीवित थे, तो वह काम करने के लिए बाहर जाती थीं क्योंकि वह हमेशा सामाजिक कार्यों में रुचि रखती थीं। बाद में, 2017 में उन्होंने ग्राम पंचायत चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 100 वोट से हार गईं। उन्होंने तीन साल तक भारतीय जनता पार्टी की शिरोल तालुका अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था, लेकिन उनका कहना है कि अब वह एक साधारण भाजपा कार्यकर्ता हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘कोई क्या पहनता है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि एक महिला के रूप में सम्मान दिया जाए, भले ही आपके पति का निधन हो जाए या वह जीवित हों।’’ पाटिल ने कहा कि अगर लोग एक विधवा को धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सम्मान के साथ भाग लेने की अनुमति देते हैं तो इसके बारे में और जागरूकता आएगी।

हेरवाड की एक अन्य विधवा सुनीता बरगले, जिनके दो बच्चे हैं, पाटिल की तरह इस बात से सहमत हैं कि उन्हें अच्छे कपड़े पहनने और आभूषण पहनने की अनुमति से अधिक, समाज में सम्मान की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘ग्राम सभा का प्रस्ताव एक अग्रणी सामाजिक सुधार की दिशा में पहला कदम है, जिस पर मुझे गर्व है।’’ बरगले ने कहा कि आठ साल पहले अपने पति की मृत्यु के बाद भी वह अपने माथे पर बिंदी लगाती हैं, हालांकि वह मंगलसूत्र नहीं पहनती हैं।

ग्राम पंचायत सदस्य अनीता कांबले ने कहा कि वह एक विधवा हैं, इसलिए उन्हें अपने बच्चों की शादी की रस्मों में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पीछे रहकर अतिथि की तरह सारी कार्यवाही देखनी पड़ी। मुझे अब भी किसी सांस्कृतिक और धार्मिक समारोह के लिए आमंत्रित नहीं किया जाता है।’’
उन्होंने याद किया कि जब उन्होंने ग्राम पंचायत चुनाव लड़ा और जीत हासिल की तो ग्रामीणों ने उन्हें कैसे ताना मारा। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे विधवा होने को लेकर ताने दिए गए। लेकिन, मैं चाहती हूं कि विधवाओं के साथ अन्य महिलाओं की तरह व्यवहार किया जाए और उन्हें सम्मान दिया जाए।’’


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