यहां की खीर खाने से होती है संतान की प्राप्ति, मन्नत मांगने दूर दूर से आते हैं लोग

punjabkesari.in Saturday, Feb 29, 2020 - 05:13 PM (IST)

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मध्य प्रदेश (रतलाम): यूं तो दुनियाभर मे ऐसे कई शिव मंदिर हैं जिनका इतिहास बहुत ही अनोखा व अद्भुत है। मगर मध्यप्रेदश के रतलाम में देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे अनोखा शिव मंदिर स्थापित है। जिसे भूल भुलैय्या वाले शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। आज तक आप ने प्राचीन शिव मंदिरों के बारे में तो कई किवदंतियां सुनी होंगी लेकिन रतलाम के बिलपांक गांव में एक शिव मंदिर ऐसा भी है जिसे भूल भुलैय्या वाला शिव मंदिर कहा जाता है। जी हां, इसका मूल नाम है विरुपाक्ष महादेव मंदिर। कहा जाता है इस मंदिर की स्थापना मध्ययुग से पहले, परमार राजाओं ने की थी। बताते चलें इस मंदिर का नाम भोलेनाथ के ग्यारह रुद्र अवतारों में से पांचवें रूद्र अवतार के नाम पर वित रूपाक्ष महादेव मंदिर रखा गया था। बताया जाता है मंदिर के चारों कोनों में चार मंडप भी बनाए गएं हैं जिसमें भगवान गणेश, मां पार्वती और भगवान सूर्य की प्रतिमा को स्थापित किया गया है।
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64 खंभों पर की गई नक्काशी
इस मंदिर को भूल भुलैय्या वाला शिव मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर में लगे खंभों की एक बार में सही गिनती करना किसी के बस की बात नहीं है। 64 खंभों पर की गई ये नक्काशी देखने योग्य है। पंजाब केसरी के रिपोर्टर समीर खान की रिपोर्ट के मुताबिक इस प्राचीन विरुपाक्ष महादेव मंदिर के अंदर 34 खंभों का एक मंडप है और सभी चारों कोनों पर, खंभों की गिनती 14-14 बनती है जबकि 8 खंभे अंदर गर्भगृह में हैं। ऐसे में एक बार में इन खंभों की सही गिनती करना मुश्किल है। जिसके चलते लोग इस मंदिर को भूल भुलैय्या वाला शिव मंदिर भी कहते हैं।

शिवरात्रि पर यहां होती है खास रौनक
महाशिवरात्रि के मौके पर हर साल यहां मेला लगता है और भगवान विरूपाक्ष के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर दूर से यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि बाबा भोले नाथ के दर से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता। यहां की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में आयोजित हवन के बाद बंटने वाले खीर के प्रसाद से, माँओं की सूनी गोद भी भरती है जिसके लिए दूर दूर से, बड़ी संख्या में महिलाएं विरुपाक्ष महादेव के दर्शन के लिए आती हैं।
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नि:संतान दंपति प्रसाद लेने आते हैं यहां 
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां यज्ञ किया जाता है। यज्ञ की आहुति के बाद अमावस्या पर यहां निसंतान महिलाओं में खीर का प्रसाद वितरण किया जाता है। जिसे लेने के लिए रतलाम जिले के अलावा अन्य जिलों के तकरीबन 10 से 15 हज़ार लोग यहां पर आते हैं। बताया जाता है खीर का प्रसाद ग्रहण करने के बाद जब महिलाओं को संतान प्राप्त हो जाती है तो वह अपने बच्चों को लेकर यहां माथा टेकने ज़रूर आते हैं। जिन्हें मिठाई, शक्कर , गुड़  या अन्य सामग्रियों से  तोला जाने की परंपरा प्रचलित है।  

प्रशासन ने रतलाम के समीर बिलपांक का विरूपाक्ष मंदिर भी संरक्षित घोषित किया हुआ है। स्थापत्य कला की दृष्टि से ऊन व उदयेश्वर के शिव मंदिर व इसमें काफी साम्यता है। यहां 5.20 वर्गमीटर के गर्भगृह में पीतल की चद्दर से आच्छादित 4.14 मीटर परिधि वाली जलाधारी व 90 सेमी ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। 64 स्तंभ वाले सभागृह में एक स्तंभ मौर्यकालीन भी है। यहां 75 वर्षों से हर शिवरात्रि पर महारुद्र यज्ञ होता है जिसमें खीर का प्रसाद ग्रहण करने दूर-दूर से बड़ी संख्या में नि:संतान दंपति आते हैं।
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इसलिए खास है यह मंदिर
मंदिर में 64 खंभे, गर्भगृह, सभा मंडप व चारों और चार सहायक मंदिर हैं। सभा मंडल में नृत्य करती हुईं अप्सराएं वाद्य यंत्रों के साथ हैं। मुख्य मंदिर के आसपास सहायक मंदिर भी मौजूद हैं। पूर्व सहायक मंदिर के उत्तर में हनुमानजी की ध्यानस्थ प्रतिमा, पूर्व दक्षिण में जलाधारी व शिव पिंड, पश्चिम के उत्तर में विष्णु भगवान गरुड़ पर विराजमान हैं। पश्चिम में दांयीं सूंड वाले गणेशजी की प्रतिमा है। मंदिर में शिवरात्रि पर लाखों लोग महादेव के दर्शन के लिए आते हैं।


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Jyoti

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