डॉक्टर की जिद ने बदल दी भारत के इस गांव की जिंदगी!

punjabkesari.in Monday, Aug 01, 2016 - 07:24 PM (IST)

भोपालः मध्यप्रदेश के खजुराहो का आदिवासी बाहुल्य ग्राम कुंदरपुरा कभी कुपाेषण से जकड़ा हुअा एक गांव था। 1200 की आबादी वाले इस गांव में 2 साल पहले आधा दर्जन कुपोषित मिले थे। लेकिन अब गांव की हर मां स्वस्थ बच्चे को जन्म दे रही है। घर-घर में खुशहाली है और यह सब एक डॉक्टर की जिद और मेहनत का नतीजा है।

वरदान बनी नि:शुल्क डिस्पेंसरी
जानकारी के मुताबिक, गांव का आंगनबाड़ी केंद्र खुलता नहीं था। स्वास्थ्य केंद्र की काेई सुविधा नहीं थी। ऐसे अभावों से जूझ रहे कुंदरपुरा गांव काे गोद लेकर बीएचएमएस डॉ. राघव पाठक ने खुद के खर्च से नि:शुल्क डिस्पेंसरी खोली, जाे गांव के लिए वरदान साबित हुई। डिस्पेंसरी में इलाज के लिए केवल एक बार 10 रुपए देकर रजिस्ट्रेशन कराने की व्यवस्था है। इसके बाद इलाज से लेकर सभी तरह की दवाएं मुफ्त मिलती हैं। 

गांव काे बदलने की कैसे सूझी
डॉ. राघव यहां सप्ताह में तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को पहुंचकर इलाज करते हैं। बाकी दिनों में उनके क्लीनिक के कर्मचारी गांव में दवाएं वितरित करते हैं। डॉ. राघव 2 साल से मुफ्त में इलाज करते आ रहे हैं। इस गांव काे बदलने का विचार डाक्टर के मन में तब अाया, जब उनकी मुलाकात एक अादिवासी महिला सीता से हुई।सीता की नवजात बच्ची आरती बेहद कमजोर और कुपोषित थी। सीता का पति जम्मू में मजदूरी के लिए गया तो लौटकर नहीं आया। इस आदिवासी महिला की यह दर्दभरी कहानी डॉ. राघव ने सुनी तो वे भावुक हो गए। उन्होंने सीता का इलाज शुरू किया। एक साल तक पोषण आहार के साथ डॉ. राघव की देखरेख में रहने के बाद आरती पूरी तरह स्वस्थ्य हो गई। 

गांव ने भी दिया साथ
डॉ. राघव के सेवाभाव को देखकर गांव के लोगों ने भी डिस्पेंसरी खोलने के लिए उन्हें समाज भवन दे दिया, जहां उन्हाेंने एक हिस्से में गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए क्लास भी बना रखी है। समय मिलने पर बच्चों को पढ़ाते भी है। 6 महीने पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन्हें सम्मान पत्र देकर उनके सेवा कार्य को सराहा है।


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